अर्थव्यवस्था में एतिहासिक गिरावट लेकिन कृषि में 3.4 फीसदी बढ़ोतरी, फिर भी किसान सड़क पर
चालू वित्त वर्ष (2020-21) में देश के आर्थिक मोर्चे पर इतिहास बन रहा है। आजादी के बाद पहली बार सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में 7.7 फीसदी की सबसे अधिक गिरावट आई है।
चालू वित्त वर्ष (2020-21) में देश के आर्थिक मोर्चे पर इतिहास बन रहा है। आजादी के बाद पहली बार सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में 7.7 फीसदी की सबसे अधिक गिरावट आई है। जो अभी तक की पांच बार की गिरावट में सबसे अधिक है। अर्थव्यवस्था में गिरावट के इन मौकों में पहली बार कृषि क्षेत्र के उत्पादन में वृद्धि दर्ज की गई है। आजादी के बाद अभी तक पांच बार अर्थव्यवस्था में गिरावट आई है और इसमें चार बार गिरावट की मुख्य वजह देश के अधिकांश हिस्सों में सूखा पड़ने की वजह से कृषि क्षेत्र के उत्पादन में आई भारी गिरावट रही है लेकिन इस बार ऐसा नहीं है। अर्थव्यवस्था के सही आकलन के लिए ग्रॉस वैल्यू एडेड (जीवीए) का पैमाना ज्यादा सटीक है। इसके आकलन में उत्पादन पर लगने वाले टैक्स और सब्सिडी को घटा दिया जाता है। सरकार द्वारा 7 जनवरी को चालू साल के लिए अर्थव्यवस्था की विकास दर के पहले एडवांस एस्टीमेट के मुताबिक चालू वित्त वर्ष में जीवीए में 7.2 फीसदी की गिरावट रहेगी। यानी भारतीय अर्थव्यवस्था का उत्पादन पिछले वित्त वर्ष के मुकाबले 7.2 फीसदी घट जाएगा। लेकिन चालू वित्त वर्ष में कृषि और सहयोगी क्षेत्र के जीवीए में 3.4 फीसदी की वृद्धि होगी।
ऐसे में जब कृषि क्षेत्र अर्थव्यवस्था की फिसलन को कम करने वाला रहा है और सही मायने में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के आत्मनिर्भर भारत के आह्वान को सच साबित करता दिख रहा है तो इसे विडंबना ही कहा जा सकता है कि ठीक उसी समय देश के लाखों किसान सड़कों पर धऱना देकर आंदोलन कर रहे हैं। यह आंदोलन केंद्र सरकार द्वारा बनाये गये तीन नये कृषि कानूनों और न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) समेत दूसरे मुद्दों को लेकर चल रहा है । दिल्ली की सीमाओं पर इनके खिलाफ चालीस दिन से अधिक समय से धरना दे रहे हैं। देश के अन्य हिस्सों में किसान आंदोलन कर रहे हैं।
सरकार के उच्च अधिकारियों ने रुरल वॉयस के साथ बातचीत में स्वीकारा है कि कृषि क्षेत्र की 3.4 फीसदी की वृद्धि दर के चलते देश की जीडीपी में एक फीसदी से अधिक की गिरावट कम रही है। यानी कृषि क्षेत्र के कमजोर प्रदर्शन की स्थिति में जीडीपी में गिरावट करीब नौ फीसदी रहती। यह पहला मौका है जब गिरती अर्थव्यवस्था में कृषि क्षेत्र वजह नहीं रहा है।
सरकार द्वारा जारी 2019-20 के आर्थिक सर्वे के आंकड़ों के मुताबिक 1951-52 से अभी तक पांच बार देश की अर्थव्यवस्था में गिरावट दर्ज की गई है। यानी जीडीपी निगेटिव रही है। वित्त वर्ष 1957-58 में जीडीपी में 1.2 फीसदी की गिरावट दर्ज की गई थी और उस साल कृषि क्षेत्र में 4.1 फीसदी की गिरावट दर्ज की गई थी। उसके बाद 1965-66 में जीडीपी में 3.7 फीसदी की गिरावट दर्ज की गई थी, इसकी बड़ी वजह कृषि क्षेत्र की जीडीपी में आई 9.9 फीसदी की भारी गिरावट रही थी। वहीं 1972-73 में जीडीपी में 0.3 फीसदी की गिरावट दर्ज की गई थी और उस कृषि क्षेत्र में 4.4 फीसदी की गिरावट दर्ज की गई थी। वहीं 1979-80 में चालू वित्त वर्ष के पहले की अवधि की सबसे अधिक 5.2 फीसदी की गिरावट जीडीपी में दर्ज की गई थी। उस साल कृषि क्षेत्र की जीडीपी में 11.9 फीसदी की भारी गिरावट दर्ज की गई थी। इस साल अंतराष्ट्रीय बाजार में क्रूड ऑयल की कीमतों में आई भारी तेजी का भी अर्थव्यवस्था पर प्रतिकूल असर पड़ा था। इन गिरावटों के दौर में जब कृषि क्षेत्र की जीडीपी में गिरावट दर्ज की गई थी तो उन बरसों में देश को सूखे जूझना पड़ा था। जीडीपी के यह आंकड़े फैक्टर कॉस्ट पर हैं जो मौजूदा समय के जीवीए के समकक्ष हैं।
चालू वित्त वर्ष में जीवीए की गिरावट की वजह लॉकडाउन और उसके चलते अर्थव्यवस्था के विभिन्न क्षेत्रों के उत्पादन और गतिविधियों में आई भारी गिरावट रही है। इस संकट से उबरने के लिए सरकार ने जो स्टिमुलस पैकेज घोषित किये उनके साथ ही आत्मनिर्भर भारत का नारा जोड़ा है। यहां खास बात यह है कि कषि क्षेत्र में अधिकांश उत्पादों के मामले में देश आत्मनिर्भर है। खाद्य तेलों और एक आध अन्य अपवाद को छोड़ दें तो इस समय देश कृषि उत्पादों के सरप्लस की स्थिति से जूझ रहा है। जिसके चलते किसानों को बेहतर दाम मिलने में दिक्कत आ रही है। किसानों के मौजूदा आंदोलन की एक सबसे बड़ी वजह फसलों की बेहतर कीमतें न मिलना है। उसके लिए किसान न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) की कानूनी गारंटी की मांग कर रहे हैं। लेकिन सरकार ने इस दौरान कृषि मार्केटिंग सुधारों का पैकेज घोषित कर दिया। सुधारों के समर्थकों का तर्क है कि कि हमेशा संकट के दौर में ही सुधारों को लागू करना संभव हुआ है। लेकिन कृषि और सहयोगी क्षेत्र के मामले में तो हकीकत कुछ और है। अर्थव्यवस्था के बाकी क्षेत्रों में तो ताजा संकट है लेकिन कृषि क्षेत्र में तो कोई ताजा संकट पैदा नहीं हुआ, बल्कि जब अर्थव्यवस्था का जीवीए 7.2 फीसदी गिर रहा है तब कृषि व सहयोगी क्षेत्र के जीवीए में 3.4 फीसदी की वृद्धि दर्ज की गई है। यह बात भी सच है कि कृषि और गैर-कृषि क्षेत्र के बीच बढ़ते आय के अंतर और कृषि के लिए निगेटिव टर्म्स ऑफ ट्रेड के चलते कृषि क्षेत्र की स्थिति खराब होती जा रही है और किसानों की आय कम हो रही है। इसलिए मुद्दा काफी पेचीदा बन गया है। यहां आत्मनिर्भर भारत के मायने दूसरे निकालने होंगे। इसके लिए इंडिया और ‘भारत’ यानी ग्रामीण अर्थव्यवस्था के बीच के बढ़ते अंतर को रोकने के लिए सरकार को पुख्ता कदम उठाने की जरूरत है।