डब्ल्यूटीओ बैठक में खाद्यान्न भंडारण पर चर्चा न होना निराशाजनक, फिशरीज सब्सिडी समझौते से भी होंगी मुश्किलें
सम्मेलन के बाद जारी एमसी12 दस्तावेज़ में भंडारण मुद्दे का कोई उल्लेख नहीं है। यह इस तथ्य के बावजूद हुआ कि जी-33 (भारत सहित 47 विकासशील देशों का समूह) ने वार्ता आगे ले जाने के लिए एक प्रस्ताव पेश किया था। व्यापार मंत्रियों की मौजूदगी के बावजूद इस पर चर्चा नहीं होना निराशाजनक
विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यूटीओ) ने जिनेवा में अपना 12वां मंत्रिस्तरीय सम्मेलन (एमसी12) ऐसे समय आयोजित किया, जब यह बहुपक्षीय व्यापार व्यवस्था दो महत्वपूर्ण चुनौतियों का सामना कर रही है। पहला, दोहरे आघात के कारण विश्व अर्थव्यवस्था नाजुक दौर से गुजर रही है। इसलिए विश्व व्यापार संगठन को अपने सदस्य देशों, विशेष रूप से विकासशील देशों को यह सुनिश्चित करने के लिए सक्षम वातावरण प्रदान करना है कि वहां जल्दी रिकवरी हो। दूसरे, विश्व व्यापार संगठन पर लंबे समय से उसकी वैधता को लेकर सवाल उठ रहे हैं। लगभग चार दशक पहले इसकी स्थापना के बाद पिछले कुछ वर्षों से मुख्य रूप से निर्णय लेने में असमर्थता के कारण सवाल अधिक उठ रहे हैं। इसलिए, जब गहन विचार-विमर्श के बाद एमसी12 मंत्रिस्तरीय निर्णयों को अंततः सर्वसम्मति से स्वीकार किया गया, तो उसे उपलब्धि के तौर पर दिखाया गया। अब समय है कि सम्मेलन में लिए गए निर्मयों का निष्पक्ष रूप से विश्लेषण किया जाए और यह देखा जाए कि परिणाम किस हद तक भारत की अपेक्षाओं को पूरा करते हैं।
कृषि के अनसुलझे मुद्दे
जहां तक कृषि क्षेत्र का संबंध है, भारत को एमसी12 से दो बड़ी उम्मीदें थीं। खाद्य सुरक्षा उद्देश्यों के लिए खाद्यान्न के सार्वजनिक भंडारण (पीएसएच) पर शुरू से बादल मंडराते रहे हैं। राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम के तहत सार्वजनिक वितरण प्रणाली (पीडीएस) के संचालन के लिए यह भंडारण अनिवार्य है। इस मुद्दे का स्थायी समाधान खोजना था। पीडीएस पर किसी भी तरह का खतरा खाद्यान्न की सार्वजनिक खरीद की पूरी प्रणाली को पटरी से उतार सकता है, क्योंकि दोनों प्रणालियां एक-दूसरे से जुड़ी हुई हैं।
पीडीएस के संचालन को विश्व व्यापार संगठन में चुनौती दी गई थी, लेकिन वर्तमान में इसे 2013 में तय हुए पीस क्लॉज के तहत राहत मिली हुई है। लेकिन जब पीस क्लॉज पर सहमति हुई, तो यह निर्णय भी लिया गया था कि विश्व व्यापार संगठन के सदस्य 2017 तक पीएसएच के स्थायी समाधान के लिए एक समझौते पर बातचीत करेंगे। उस समय सीमा के पांच साल बाद भी मंत्रिस्तरीय सम्मेलन भारत के लिए इस महत्वपूर्ण मुद्दे का संज्ञान लेने में विफल रहा। सम्मेलन के बाद जारी एमसी12 दस्तावेज़ में इस मुद्दे का कोई उल्लेख नहीं है। यह इस तथ्य के बावजूद हुआ कि जी-33 (भारत सहित 47 विकासशील देशों का एक समूह जो खाद्य सुरक्षा और ग्रामीण आजीविका के मुद्दों पर ध्यान केंद्रित कर रहा था) ने वार्ता आगे ले जाने के लिए एक प्रस्ताव पेश किया था। व्यापार मंत्रियों की मौजूदगी के बावजूद इस पर चर्चा नहीं होने को निराशाजनक परिणाम के तौर पर देखा जाना चाहिए।
हालांकि पीडीएस को तत्काल कोई खतरा नहीं है, लेकिन पीस क्लॉज की एक विवादास्पद शर्त पर तत्काल ध्यान देने की आवश्यकता है जो भारत को अनाज के सार्वजनिक भंडार से निर्यात करने से रोकता है। यह शर्त तब से अधिक फोकस में है जब से भारत गेहूं और गैर-बासमती चावल के बड़े निर्यातक के रूप में उभरा है। कृषि समझौते पर नजर रखने वाली विश्व व्यापार संगठन की कृषि समिति में कई देश भारत से स्पष्टीकरण मांग रहे हैं कि क्या सरकार द्वारा खरीदे गए और बफर स्टॉक में रखे गए खाद्यान्न का निर्यात किया जा रहा है। इन देशों का तर्क है कि भारत सब्सिडी वाले अनाज को वैश्विक बाजारों में डंप कर रहा है।
उल्लेखनीय है कि भारत के निर्यात के खिलाफ झंडा उठाने वाले अधिकांश उन्नत देश हैं जो वैश्विक अनाज बाजारों में बड़ा दखल रखने वाली अपनी बड़ी कंपनियों के संचालन में मदद करते रहे हैं। इस प्रकार, जब बड़े सब्सिडी वाले देश अनाज के वैश्विक बाजार पर हावी हो रहे हैं, तो भारत के पास पीस क्लॉज में निर्यात प्रतिबंध की शर्त हटाने को कहने का एक मजबूत तर्क है। इससे भी महत्वपूर्ण बात यह है कि इस मुद्दे को शुद्ध रूप से खाद्य आयात करने वाले देशों के हित में हल किया जाना चाहिए, क्योंकि अगर भारत को निर्यात करने से रोका गया तो वैश्विक खाद्य कमी और बदतर हो जाएगी।
फिशरीज सब्सिडी समझौते की समस्या
एमसी12 में फिशरीज सब्सिडी समझौता भी संपन्न हुआ, जिसके लिए वार्ता 2001 में दोहा मंत्रिस्तरीय सम्मेलन में शुरू की गई थी। भारत के पास फिशरीज सब्सिडी पर लगाम लगाने के मुद्दे पर एक मजबूत आर्थिक और नैतिक पक्ष था। भारत लगातार यह कहता रहा है कि वैश्विक मछली स्टॉक के लिए खतरा पैदा करने वाले वाणिज्यिक हितों की सब्सिडी समाप्त करना महत्वपूर्ण है, लेकिन छोटे मछुआरों को सब्सिडी जारी रखने के लिए एक विकल्प होना चाहिए। इन मछुआरों ने आमतौर पर पर्यावरण अनुकूल तौर-तरीकों का पालन किया है। भारत का यह भी तर्क है कि छोटे मछुआरों की आजीविका की रक्षा के लिए सब्सिडी जारी रखना महत्वपूर्ण है।
फिशरीज सब्सिडी समझौते में भारत की चिंताओं को दूर नहीं किया गया है। समझौते के मुताबिक विकासशील देश अपने विशिष्ट आर्थिक क्षेत्र (ईईजेड) के भीतर अवैध, गैर-सूचित, और अनियमित (आईयूयू) तरीके से मछली पकड़ने में लगे जहाजों/ऑपरेटरों अथवा ओवरफिश्ड मछलियां पकड़ने/उससे जुड़ी गतिविधियों के लिए दो साल तक सब्सिडी दे सकते हैं। दो वर्षों के बाद मछुआरों को दी जाने वाली सब्सिडी का क्या होगा, यह अनिश्चित बना हुआ है। क्योंकि समझौते में कोई अन्य प्रावधान नहीं है जो विकासशील देशों को विशेष और अलग व्यवहार (एसएंडडीटी) की छूट देता हो, जिसका उपयोग करके भारत सब्सिडी दे सके।
मत्स्य पालन सब्सिडी समझौते में एक प्रावधान के कारण यह मुद्दा महत्व रखता है। यह प्रावधान है: "जिन स्टॉक (मछली) की स्थिति अभी अज्ञात है, उन्हें पकड़ने या उससे जुड़ी गतिविधियों के लिए सब्सिडी प्रदान करते समय सदस्य देश विशेष ध्यान रखेगा और उचित संयम अपनाएगा।" इसका तात्पर्य यह है कि आईयूयू और ओवरफिश्ड स्टॉक के अलावा बाकी मामलों में भी मछली पकड़ने और इससे जुड़ी गतिविधियों के लिए दी गई सब्सिडी को जांच के दायरे में रखा गया है।
भारत में छोटे मछुआरे न तो आईयूयू में लिप्त हैं और न ही ओवरफिश्ड स्टॉक से जुड़ी मछलियां पकड़ने की गतिविधियों में। फिर भी फिशरीज सब्सिडी समझौते में उपर्युक्त प्रावधान मत्स्य पालन क्षेत्र को सब्सिडी के निरंतर प्रावधान की दिशा में एक बाधा साबित हो सकता है। इसका कारण यह है कि विश्व व्यापार संगठन में मूड चीन और भारत को एसएंडडीटी प्रावधानों के लाभों से वंचित करने का है, जिसके उपयोग से छोटे मछुआरों को सब्सिडी जारी रखी जा सकती है। इस वजह से भविष्य की बातचीत में एसएंडडीटी प्रावधानों को शामिल करना मुश्किल लगता है।
(डॉ. बिश्वजीत धर जवाहर लाल नेहरू यूनिवर्सिटी के स्कूल ऑफ सोशल साइंसेज के सेंटर फॉर इकोनॉमिक स्टडीज एंड प्लानिंग में प्रोफेसर हैं )