बजट में कृषि क्षेत्र के लिए आवंटन वास्तविक अर्थों में 2 साल में कम हुआ, सिंचाई को भी तवज्जो नहीं
बजट आवंटन में कटौती को कुछ लोग उचित ठहरा सकते हैं। मौजूदा वित्त वर्ष 2022-23 के लिए 1.24 लाख करोड़ रुपए के आवंटन की तुलना में मंत्रालय की तरफ से सिर्फ 1.10 लाख करोड़ रुपए खर्च किए जाने की संभावना है, जैसा कि बजट के संशोधित अनुमानों में बताया गया है। अगर मंत्रालय उसे आवंटित राशि पूरी तरह खर्च नहीं कर पाता है तो क्यों ना उसे कम राशि आवंटित की जाए?
सबसे पहले सुर्खियां। वित्त वर्ष 2023-24 के आम बजट में कृषि और किसान कल्याण मंत्रालय का आवंटन 2022-23 के 1.24 लाख करोड़ रुपए के बजट अनुमान से घटाकर 1.15 लाख करोड़ रुपए कर दिया गया है। महंगाई को समायोजित करें तो बीते 2 वर्षों के दौरान वास्तविक अर्थों में आवंटन कम हुआ है। दूसरी सुर्खी- कृषि के लिए महत्वपूर्ण सिंचाई की पूरी तरह अनदेखी की गई है। ऐसे में जाहिर है कि किसानों की आय दोगुनी करना दूर की कौड़ी होगी।
देश में कृषि विकास और किसान कल्याण की जिम्मेदारी वाले इस मंत्रालय के बजट आवंटन में कटौती को कुछ लोग उचित ठहरा सकते हैं। मौजूदा वित्त वर्ष 2022-23 के लिए 1.24 लाख करोड़ रुपए के आवंटन की तुलना में मंत्रालय की तरफ से सिर्फ 1.10 लाख करोड़ रुपए खर्च किए जाने की संभावना है, जैसा कि बजट के संशोधित अनुमानों में बताया गया है। अगर मंत्रालय उसे आवंटित राशि पूरी तरह खर्च नहीं कर पाता है तो क्यों ना उसे कम राशि आवंटित की जाए?
अब इन आंकड़ों पर गौर कीजिए। 2023-24 के बजट में कृषि और किसान कल्याण मंत्रालय को जो राशि आवंटित की गई है उतनी ही राशि (1.14 लाख करोड़ रुपए) मंत्रालय ने 2 साल पहले 2021-22 में खर्च की थी। अब अगर आप इसमें महंगाई को समायोजित करें तो नया आवंटन 2 साल पहले की तुलना में वास्तव में 10% तो कम है ही।
पिछले बजट की तरह इस बार भी कृषि में शायद ही कहीं नए सार्वजनिक निवेश की बात की गई हो, जिससे भारत में कृषि पैदावार बढ़ाई जा सके। पूरा फोकस लगता है फसल उत्पादन के बाद मार्केटिंग इंफ्रास्ट्रक्चर पर हो गया है। इसके लिए लॉजिस्टिक्स, डाटा डिजिटाइजेशन और डिस्ट्रीब्यूशन नेटवर्क पर निजी निवेश की उम्मीद जताई गई है। किसानों को बेहतर मूल्य दिलाने के लिए उत्पादन के बाद के इंफ्रास्ट्रक्चर को मजबूत करना निश्चित रूप से महत्वपूर्ण है, लेकिन क्या हम पैदावार को लेकर आश्वस्त होकर बैठ सकते हैं? दुनिया की सबसे अधिक आबादी वाले देश में जिस स्तर पर खाद्य सुरक्षा की जरूरत है क्या उसके लिए कृषि में सालाना 3 से 4 फ़ीसदी की ग्रोथ काफी रहेगी? सालाना 31.5 करोड़ टन अनाज उत्पादन के साथ भारत इस मामले में सरप्लस स्थिति में है, लेकिन क्या हम इस पर आश्वस्त होकर रह सकते हैं? समय की जरूरत अगले 25 वर्षों के विजन की है। अगर किसी सेक्टर को अमृत काल के विजन की जरूरत है तो वह है कृषि। सवाल है क्या हमारे पास वह विजन है?
सरकार ने कुछ ही महीने पहले संसद में यह जानकारी दी थी- देश में 180888 हजार हेक्टेयर कृषि भूमि है जिसमें से 153888 हजार हेक्टेयर पर खेती होती है। इसमें भी 71554 हजार हेक्टेयर सिंचित भूमि है। इसका मतलब यह हुआ कि भारत की कृषि भूमि का 40% से भी कम क्षेत्र सिंचित है। जो लोग खेती के बारे में थोड़ा-बहुत भी जानते हैं वह समझेंगे कि किसी भी फसल की पैदावार के लिए सिंचाई का कितना महत्व है। जिन इलाकों में सिंचाई की सुविधा नहीं है उनकी तुलना में नदी बेसिन अथवा नहर वाले क्षेत्रों में पैदावार दोगुनी या उससे भी ज्यादा होती है।
आर्थिक सर्वेक्षण को सरकार के मुख्य आर्थिक सलाहकार का विजन डॉक्यूमेंट माना जाता है। क्या उसमें सिंचाई में निवेश की कोई बात कही गई है? नहीं, सिवाय चुनाव वाले राज्य कर्नाटक में 5300 करोड़ रुपए वाले अपर भद्रा माइक्रो इरिगेशन प्रोजेक्ट के। यह राशि कहां से दी जाएगी यह भी स्पष्ट नहीं है। जल शक्ति मंत्रालय का कुल खर्च ही 4692 करोड़ रुपए है तथा ग्रामीण विकास मंत्रालय के भू संसाधन विभाग को सिर्फ 2419 करोड़ रुपए आवंटित किए गए हैं। फ्लैगशिप प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना को बजट अथवा आर्थिक सर्वेक्षण में ज्यादा महत्व नहीं दिया गया है।
एक समय था जब छोटी बड़ी सिंचाई परियोजनाओं को बजट भाषणों में प्राथमिकता दी जाती थी और उनके लिए काफी आवंटन भी किया जाता था। नए बजट भाषण में आपको ड्रोन, स्टार्टअप, मोर क्रॉप पर ड्रॉप (प्रति बूंद अधिक फसल) जैसे शब्द मिलेंगे। जल संरक्षण और उससे जुड़ी टेक्नोलॉजी महत्वपूर्ण है लेकिन भारतीय कृषि को जरूरत इस बात की है कि देश में कृषि भूमि 100% संचित हो। मार्केटिंग इन्फ्रास्ट्रक्चर भी महत्वपूर्ण है लेकिन इस तरह की पहल संभावनाओं के सागर में महज कुछ बूंदों की तरह है।
(प्रकाश चावला सीनियर इकोनॉमिक जर्नलिस्ट है और आर्थिक नीतियों पर लिखते हैं)