एनआईटी राउरकेला ने मशीन लर्निंग के उपयोग से किया सतत सिंचाई का आकलन

राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थान राउरकेला के सिविल इंजीनियरिंग विभाग की एक रिसर्च टीम ने ओडिशा के सुंदरगढ़ जिले में सिंचाई उद्देश्यों के लिए भूजल गुणवत्ता आकलन के लिए मशीन लर्निंग का उपयोग किया है

एनआईटी राउरकेला ने मशीन लर्निंग के उपयोग से किया सतत सिंचाई का आकलन

राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थान राउरकेला के सिविल इंजीनियरिंग विभाग की एक रिसर्च टीम ने ओडिशा के सुंदरगढ़ जिले में सिंचाई उद्देश्यों के लिए भूजल गुणवत्ता आकलन के लिए मशीन लर्निंग का उपयोग किया है।

इस शोध कार्य में पाँच उपकरणों से युक्त मशीन लर्निंग (एमएल) एल्गोरिदम उपयोग किए गए हैं। ये 2014-21 के दौरान उपलब्ध सुंदरगढ़ जिले के फिजियोकेमिकल भूजल गुणवत्ता डेटा से आकलित सिंचाई जल गुणवत्ता सूचकांकों के भविष्य का पूर्वानुमान बताएंगे। वे मूल रूप से सांख्यिकीय और पूर्वानुमान बताने वाली विश्लेषण तकनीक हैं जो विभिन्न प्लेटफार्मों पर कुछ गणितीय कोडिंग के उपयोग से रिस्पांस वैरिएबल और एक्सप्लेनेटरी वैरिएबल के बीच संबंध दर्शाते हैं। मनुष्य के आकलन की तुलना में एमएल तकनीकों को इसलिए प्राथमिकता दी गई है क्योंकि उसमें प्रशिक्षण डेटा को संसाधित करने की क्षमता है, जिसके परिणामस्वरूप वे वास्तविक उपयोगों में सटीक पूर्वानुमान बताने में सक्षम हैं।

ओडिशा के सुंदरगढ़ जिले में खेती के लिए पानी की बढ़ती मांग, जमीन पर पानी की सीमित उपलब्धता और जनसंख्या वृद्धि के कारण भूजल की निकासी बढ़ती जा रही है। इसके परिणामस्वरूप भूजल की मात्रा और गुणवत्ता दोनों में कमी आई है। पानी की गुणवत्ता खराब होने से फसल की पैदावार और लंबे समय में मिट्टी की उर्वरता प्रभावित हो सकती है।

इस क्षेत्र की अर्थव्यवस्था कृषि प्रधान है और जिले के केवल 1.21 प्रतिशत हिस्से में जमीन पर पानी के स्रोत हैं, इसलिए सिंचाई की मांग पूरी करने के लिए भूजल का उपयोग करना आवश्यक है। यहां कुल कृषि भूमि के 76 प्रतिशत हिस्से में धान की खेती की जाती है, जिसके लिए अधिक मात्रा में पानी की आवश्यकता होती है। इस बात का ध्यान रखते हुए किसानों के लिए भूजल की गुणवत्ता जानना जरूरी है।

इस संदर्भ में एनआईटी राउरकेला के सिविल इंजीनियरिंग विभाग के सहायक प्रोफेसर प्रो. अनुराग शर्मा ने अपने शोध विद्यार्थी श्री सौविक कुमार शॉ के साथ जिले के विभिन्न हिस्सों में पानी की गुणवत्ता के विभिन्न मानकों और विविधताओं का परीक्षण करने के लिए एडवांस डेटा विश्लेषण तकनीकों का उपयोग किया।

इस शोध कार्य में सुंदरगढ़ के 360 कुओं से एकत्र भूजल के नमूनों का परीक्षण किया गया। इन नमूनों का परीक्षण लवण और खनिज समेत विभिन्न रासायनिक गुणों के मद्देनजर किया गया, जो मिट्टी और फसल के स्वास्थ्य को प्रभावित कर सकते हैं। पानी की गुणवत्ता के रुझानों का पूर्वानुमान बताने और 2014 से 2021 तक स्थितियों में हुए बदलावों को समझने के लिए मशीन लर्निंग मॉडल और सांख्यिकीय उपकरणों का उपयोग किया गया।

निष्कर्ष ये संकेत देते हैं कि रंगयिमुंडा, लेफ्रिपारा और पुटुडीही के आसपास के क्षेत्र सहित सुंदरगढ़ जिले के दक्षिणी, दक्षिण-पश्चिमी और पूर्वी हिस्सों के भूजल सिंचाई के लिए उपयुक्त हैं। इन क्षेत्रों के भूजल की गुणवत्ता में स्थिरता के साथ घुले हुए लवणों और खनिजों के स्तर भी स्वीकार्य सीमा में हैं। इनमें सोडियम एडजार्प्शन रेशियो (एसएआर), केलीज़ रेशियो (केआर), प्रतिशत सोडियम (प्रतिशत एनए), पारगम्यता सूचकांक (पीआई) और एक्सचेंजेबल सोडियम पर्सेंटेज (ईएसपी) भी स्वीकार्य सीमा में हैं। हालांकि जिले के पश्चिमी और मध्य भागों, विशेष कर क्रिंजिकेला, तलसारा और कुत्रा तथा सुंदरगढ़ शहर के कुछ हिस्सों के भूजल में कुल घुले हुए ठोस पदार्थों और सोडियम, कैल्शियम और मैग्नीशियम जैसे कुछ धनायनों की अपेक्षाकृत अधिक सांद्रता है, जो मिट्टी और फसल उत्पादन क्षमता को प्रभावित कर सकता है। यदि इन समस्याओं का उचित समाधान नहीं किया गया तो इस जिले में आलू और खीरे की पैदावार कम हो सकती है।

इस शोध के मुख्य निष्कर्षों में से एक यह है कि पानी की गुणवत्ता के महत्वपूर्ण संकेतक एक समय अंतराल में गुणवत्ता में वृद्धि/कमी के एक समान पैटर्न दिखा रहे हैं। इससे पता चलता है कि कुछ क्षेत्रों में भूजल की उपयुक्तता में और गिरावट आ सकती है।

इस शोध में सुंदरगढ़ के भूजल की गुणवत्ता में हो रहे परिवर्तन को प्रभावित करने वाले पानी के मुख्य मानकों के रूप में सोडियम (एनए⁺), क्लोराइड (सीएल⁻), सोडियम एडजार्प्शन रेशियो (एसएआर), केलीज रेशियो (केआर), पारगम्यता सूचकांक (पीआई) और संभावित लवणता (पीएस) की पहचान की गई है।

इस शोध के निष्कर्ष प्रतिष्ठित जल गुणवत्ता अनुसंधान जर्नल में प्रकाशित किए गए हैं और ये इस लिंक पर उपलब्ध हैं।

इस शोध का महत्व बताते हुए एनआईटी राउरकेला के सिविल इंजीनियरिंग विभाग के सहायक प्रोफेसर. प्रो. अनुराग शर्मा ने कहा, ‘‘मशीन लर्निंग ने हमें स्थिर आकलन के दायरे से आगे बढ़ने और पूर्वानुमानित मॉडल विकसित करने में सक्षम बनाया है। इससे किसानों और नीति निर्माताओं को आगे बढ़ कर निर्णय लेने में मदद मिलेगी। जल प्रबंधन की पारंपरिक प्रथाओं के साथ डेटा-संचालित अंतर्दृष्टि जोड़ कर हम सिंचाई और कृषि नियोजन का अधिक सस्टेनेबल रास्ता बना सकते हैं।’’

संस्थान में विकसित मॉडल का उपयोग देश भर में सिंचाई के उद्देश्यों से भूजल के दबाव के आकलन के लिए किया जा सकता है। भूजल की गुणवत्ता के आकलन के आधार पर संबद्ध प्राधिकरण जल संसाधन प्रबंधन में आ रही गिरावट रोकने के लिए सोच-समझ कर ठोस निर्णय ले सकते हैं। इसके अतिरिक्त यह रियल टाइम में पानी की गुणवत्ता की अंतर्दृष्टि दे सकता है। इसके अनुसार सुधार के कदम उठा कर देश भर में सिंचाई पर निर्भर किसान समुदायों के हितों की सुरक्षा की जा सकती है।

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