आईसीएआर ने तैयार की बायोफर्टिलाइजर की विशेष किस्में, इनसे 25% तक बढ़ सकती है उत्पादकता
आईसीएआर ने बायो फर्टिलाइजर की विशेष किस्मों का विकास किया है। यह बायोफर्टिलाइजर अलग-अलग फसलों और विभिन्न तरह की मिट्टी के अनुकूल हैं। आईसीएआर ने ‘सॉयल बायोडाइवर्सिटी बायो फर्टिलाइजर’ पर नेटवर्क प्रोजेक्ट के तहत इन्हें तैयार किया है। इसके अलावा आईसीएआर ने फॉस्फर-नाइट्रो और फॉस्फर-सल्फर जैसे कंपोस्ट भी तैयार किए हैं।
भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) ने बायो फर्टिलाइजर की विशेष किस्मों का विकास किया है। यह बायोफर्टिलाइजर अलग-अलग फसलों और विभिन्न तरह की मिट्टी के अनुकूल हैं। आईसीएआर ने ‘सॉयल बायोडाइवर्सिटी बायो फर्टिलाइजर’ पर नेटवर्क प्रोजेक्ट के तहत इन्हें तैयार किया है। इसके अलावा आईसीएआर ने फॉस्फर-नाइट्रो और फॉस्फर-सल्फर जैसे कंपोस्ट भी तैयार किए हैं। इनका इस्तेमाल ऑर्गेनिक खाद के तौर पर किया जा सकता है। आईसीएआर का कहना है कि यह बायोफर्टिलाइजर फसलों की उत्पादकता 10 से 25% तक बढ़ा सकते हैं। अगर इन्हें रासायनिक उर्वरकों के साथ इस्तेमाल किया जाए तो यह 20 से 25% तक पूरक के तौर पर काम कर सकते हैं।
केंद्रीय कृषि और किसान कल्याण मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने लोकसभा में बताया कि सरकार परंपरागत कृषि विकास योजना तथा मिशन ऑर्गेनिक वैल्यू चेन डेवलपमेंट इन नॉर्थ ईस्ट रीजन (MOVCDNER) के तहत 2015-16 से ऑर्गेनिक खेती को बढ़ावा दे रही है। इन स्कीमों के तहत किसानों को ऑर्गेनिक खाद तथा अन्य ऑर्गेनिक इनपुट का इस्तेमाल करते हुए खेती करने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है। किसानों को उत्पादन से लेकर मार्केटिंग तक, हर क्षेत्र में मदद भी मुहैया कराई जाती है।
किसानों को खेत में ही ऑर्गेनिक खाद तैयार करने तथा उनका इस्तेमाल करने का प्रशिक्षण देना इस स्कीम का अभिन्न हिस्सा है। किसानों को परंपरागत खेती विकास योजना के तहत हर 3 साल में प्रति हेक्टेयर 31000 रुपए की सब्सिडी दी जाती है। उत्तर पूर्वी राज्यों की योजना के तहत यह रकम 32500 रुपए है। यह सब्सिडी खेत में ऑर्गेनिक इनपुट तैयार करने तथा ऑर्गेनिक इनपुट की बाहर से खरीद करने के लिए मिलती है।
राष्ट्रीय कृषि विकास योजना की सॉयल हेल्थ कार्ड स्कीम के तहत राज्यों को एकीकृत पोषण प्रबंधन (इंटीग्रेटेड न्यूट्रिएंट मैनेजमेंट) को बढ़ावा देने के लिए मदद मुहैया कराई जाती है। इस योजना में ऑर्गेनिक खाद के साथ रासायनिक उर्वरकों का कम इस्तेमाल करने के बारे में बताया जाता है। इस स्कीम के तहत तरह-तरह के प्रशिक्षण और प्रदर्शन कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं। किसान मेला और वर्कशॉप का भी आयोजन होता है।
सरकार गंगा बेसिन और अन्य वर्षा आधारित इलाकों में 7.5 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में प्राकृतिक खेती को बढ़ावा देने के लिए मिशन मोड पर काम कर रही है। इसके लिए 15 हजार क्लस्टर में करीब एक करोड़ किसानों को प्राकृतिक खेती के लिए तैयार किया जा रहा है। बीजामृत, जीवामृत, नीमस्त्र जैसे मवेशी आधारित प्राकृतिक इनपुट की निरंतर आपूर्ति के लिए 10000 बायो इनपुट रिसोर्स सेंटर भी बनाए जा रहे हैं। इस कार्यक्रम से रासायनिक उर्वरकों की खपत कम होगी।
अच्छी क्वालिटी के बायोफर्टिलाइजर, ऑर्गेनिक खाद और बायोस्टिम्युलेंट उपलब्ध कराने के लिए केंद्र सरकार फर्टिलाइजर कंट्रोल ऑर्डर (1985) के तहत गुणवत्ता का नियमन करती है। सरकार ने गुणवत्ता नियंत्रण बेहतर बनाने के लिए 32 क्वालिटी टेस्टिंग लैबोरेट्री नोटिफाई किए हैं। हर तरह के उर्वरकों के ऑनलाइन रजिस्ट्रेशन को आसान बनाने के लिए इसने पोर्टल भी तैयार किया है। ऑर्गेनिक खाद के उत्पादन और प्रयोग को बढ़ावा देने के लिए सरकार ने फर्मेंटेड ऑर्गेनिक खाद (एफओएम) के लिए बाजार विकास सहायता (मार्केट डेवलपमेंट असिस्टेंट) के तहत प्रति टन 15000 रुपए की मंजूरी दी है।
मिट्टी की उर्वरता बढ़ाने और दीर्घकालिक स्तर पर उत्पादन में वृद्धि के मकसद से उर्वरकों की कुल खपत कम करने के लिए सरकार ने किसानों को इंसेंटिव देने की घोषणा की है। इसके लिए पीएम प्रणाम (पीएम प्रोग्राम फॉर रेस्टोरेशन, अवेयरनेस, नरिशमेंट एंड अमेलियरेशन ऑफ मदर अर्थ) योजना का ऐलान किया गया है। इसके तहत राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को वैकल्पिक उर्वरकों का प्रयोग बढ़ाने तथा रासायनिक उर्वरकों का संतुलित इस्तेमाल करने के लिए इंसेंटिव दिया जाएगा। इस कार्यक्रम के तहत जो राज्य सब्सिडी की बचत करेंगे, उन्हें बचत की आधी राशि दी जाएगी।