थोक महंगाई नौ महीने के उच्चतम स्तर पर पहुंची, खाद्य वस्तुओं की महंगाई का असर
थोक मूल्य सूचकांक (डब्ल्यूपीआई) पर आधारित महंगाई दर दिसंबर 2023 में बढ़कर नौ महीने के उच्चतम स्तर 0.73 प्रतिशत पर पहुंच गई है। थोक महंगाई बढ़ने के पीछे मुख्य कारण खाद्य वस्तुओं की कीमतों में तेज वृद्धि है। इससे पहले खुदरा महंगाई दर भी दिसंबर 2023 में चार महीने के उच्चतम स्तर 5.69 फीसदी पर थी। यानी आम जनता पर महंगाई की मार पड़ रही है।
थोक मूल्य सूचकांक (डब्ल्यूपीआई) पर आधारित महंगाई दर दिसंबर 2023 में बढ़कर नौ महीने के उच्चतम स्तर 0.73 प्रतिशत पर पहुंच गई है। थोक महंगाई बढ़ने के पीछे मुख्य कारण खाद्य वस्तुओं की कीमतों में तेज वृद्धि है। इससे पहले खुदरा महंगाई दर भी दिसंबर 2023 में चार महीने के उच्चतम स्तर 5.69 फीसदी पर थी। यानी आम जनता पर महंगाई की मार पड़ रही है।
थोक महंगाई दर पिछले साल मार्च में 1.34 फीसदी थी। इसके बाद अप्रैल से अक्टूबर तक यह नकारात्मक रही। गत नवंबर में थोक महंगाई दर 0.26 फीसदी रही थी। दिसंबर में इसमें इजाफा हुआ और यह बढ़कर 0.73 फीसदी तक पहुंच गई। थोक महंगाई दर का यह नौ महीने का उच्चतम स्तर है।
वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय के अनुसार, दिसंबर 2023 में मुद्रास्फीति की सकारात्मक दर मुख्य रूप से खाद्य वस्तुओं, मशीनरी और उपकरण, अन्य विनिर्माण, अन्य परिवहन उपकरण और कंप्यूटर, इलेक्ट्रॉनिक्स और ऑप्टिकल उत्पादों आदि की कीमतों में वृद्धि के कारण है।
दिसंबर 2023 में खाद्य वस्तुओं की महंगाई दर नवंबर के 8.18 फीसदी से बढ़कर 9.38 फीसदी हो गई। सब्जियों की महंगाई दर 26.30 फीसदी, जबकि दालों की महंगाई दर 19.60 फीसदी रही। सब्जियों में, प्याज की मुद्रास्फीति 91.77 प्रतिशत थी जो अगस्त 2023 से लगातार दोहरे अंकों में है। दिसंबर में आलू की मुद्रास्फीति (-) 24.08 प्रतिशत रही। यानी आलू की थोक कीमतों में गिरावट आई है।
दिसंबर महीने में प्राथमिक वस्तुओं की थोक महंगाई दर बढ़कर 5.78 प्रतिशत हो गई जो नवंबर महीने में 4.76 प्रतिशत थी। इस बीच, ईंधन और बिजली व विनिर्माण क्षेत्र में मुद्रास्फीति क्रमश: शून्य से 2.41 प्रतिशत नीचे और शून्य से 0.71 प्रतिशत नीचे रही। रिजर्व बैंक ने पिछले महीने अपनी द्विमासिक मौद्रिक नीति में ब्याज दरों को स्थिर रखा और नवंबर-दिसंबर में खाद्य मुद्रास्फीति बढ़ने को लेकर चिंता जताई थी।
इस साल कमजोर मानसून और अल नीनो प्रभाव के चलते देश का कृषि उत्पादन प्रभावित हो सकता है। खरीफ के बाद अगर रबी सीजन पर भी मौसम की मार पड़ी तो महंगाई के मोर्चे पर चुनौती बढ़ जाएगी। सरकार खाद्य महंगाई से निपटने के लिए आयात बढ़ाने और निर्यात पर अंकुश लगाने की नीति अपना रही है जो किसानों के हितों पर प्रतिकूल असर डालेगी।