मौसम के बदले मिजाज ने बिगाड़ी गुड़ की मिठास, रिकवरी घटी, गन्ने का रेट भी कम

इस साल उत्तर प्रदेश में गन्ने की फसल पर कीटों के प्रकोप और रोगग्रस्त होने के कारण बड़े पैमाने पर किसानों को नुकसान उठाना पड़ रहा है। ऊपर से मौसम की मार भी पड़ी है।

मौसम के बदले मिजाज ने बिगाड़ी गुड़ की मिठास, रिकवरी घटी, गन्ने का रेट भी कम

इस साल गन्ने की फसल पर रोगों की मार और कम ठंड के कारण गुड़ व चीनी की रिकवरी पर असर पड़ा है। पश्चिमी यूपी की शुगर बेल्ट में आमतौर पर नवंबर से गुड़ बनना शुरू हो जाता है लेकिन इस बार ठंड कम पड़ने के कारण गन्ने में मिठास नहीं बन पायी। इस कारण गुड़ बनाने का जो काम नवंबर में जोर पकड़ लेता था वो इस साल दिसंबर में शुरू हो पा रहा है।  

पश्चिमी यूपी के मुजफ्फरनगर स्थित ऊन में आधुनिक शुगर क्रशर यूनिट स्थापित करने वाले केपी सिंह ने रूरल वॉयस को बताया कि इस साल नवंबर में तापमान अधिक रहा है। गन्ने में सुक्रोज बनने के लिए ठंड आवश्यक है लेकिन अभी तक गन्ने में पानी की मात्रा अधिक है। इसलिए गुड़ बन ही नहीं पा रहा था। एक महीने देरी से गुड़ बनना शुरू हुआ है। अभी भी गन्ने से गुड़ की रिकवरी 8 फीसदी से कम है।

केपी सिंह बताते हैं कि इस साल गुड़ का रेट भी पिछले साल से कम है। फिलहाल गुड़ का थोक रेट 30-33 रुपये किलो चल रहा है जो पिछले साल 37 रुपये के आसपास था। इस कारण किसानों को क्रशर और कोल्हू पर गन्ने का भाव 300-325 रुपये प्रति क्विंटल के आसपास मिल ही मिल पा रहा है जबकि पिछले साल गुड़ व खांडसारी उद्योग ने गन्ना का भाव 400 रुपये से अधिक तक दिया था। के पी सिंह असम में भी एक क्रशर चलाते हैं। वे बताते हैं कि असम में गुड़ का दाम 5 रुपये अधिक रहता था। लेकिन इस साल वहां भी दाम कम है। 

गुड़ की कीमतों में कमी की एक बड़ी वजह पिछले साल का बकाया गुड़ स्टॉक भी है। कारोबारियों ने अधिक दाम की उम्मीद में गुड़ का स्टॉक किया था लेकिन सीजन के अंत में दाम 40 रुपये प्रति किलो के उच्च स्तर से गिरकर 37 रुपये तक आ गये थे।

इस साल उत्तर प्रदेश में गन्ने की फसल पर कीटों के प्रकोप और रोगग्रस्त होने के कारण बड़े पैमाने पर किसानों को नुकसान उठाना पड़ रहा है। ऊपर से मौसम की मार भी पड़ी है। गन्ना किस्म CO-0238 में लाल सड़न (रेड रॉट) रोग और चोटी बेधक (टॉप बोरर) कीट का सर्वाधिक प्रकोप देखा जा रहा है। गन्ने की यह किस्म कई साल से रोगग्रस्त है लेकिन किसानों को इसका विकल्प नहीं मिल पाया है। इस साल अत्यधिक गर्मी के कारण बुवाई के बाद गन्ने की फसल प्रभावित हुई थी और अब फसल तैयार होने के समय ठंड कम पड़ी है।

गन्ने की फसल पर रोग और मौसम की दोहरी मार का असर अब गुड़ और चीनी उत्पादन पर भी दिखने लगा है। क्योंकि गन्ने के उत्पादन और गन्ने से चीनी या गुड़ की रिकवरी दोनों पर असर पड़ा है। पश्चिमी यूपी में गन्ना किसानों का मानना है कि रोग और मौसम की वजह से इस साल गन्ने की पैदावार 15-20 फीसदी तक प्रभावित हो सकती है। सहकारी चीनी मिलों के संगठन एनएफसीएसएफ के आंकड़ों के अनुसार, अक्टूबर से शुरू हुए गन्ना पेराई सीजन 2024-25 में 15 नवंबर तक यूपी की मिलों में गन्ने से चीनी की रिकवरी 7.85 फीसदी रही जो गत वर्ष इस अवधि तक 8.60 फीसदी थी।

एक ओर जहां गन्ने कटाई जोर पकड़ रही है वहीं, चीनी के दाम पिछले डेढ़ साल में सबसे कम 3400 रुपये प्रति क्विंटल से नीचे चल रहे हैं। चीनी उद्योग काफी दिनों से नीचे न्यूनतम बिक्री मूल्य (एमएसपी) बढ़ाने की मांग कर रहा है।

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