गन्ने का एफआरपी 25 रुपये बढ़ा, लेकिन कम रिकवरी से किसानों को पूरा लाभ मिलना मुश्किल
केंद्र सरकार ने गन्ने का का उचित और लाभकारी मूल्य (एफआरपी) 315 रुपये से बढ़ाकर 340 रुपये प्रति क्विंटल तय किया है। आर्थिक मामलों की मंत्रिमंडल समिति ने चीनी सीजन 2024-25 के लिए गन्ने के एफआरपी में 25 रुपये प्रति क्विंटल यानी करीब 8 फीसदी की बढ़ोतरी को मंजूरी दी है। गन्ने का एफआरपी चीनी की 10.25 फीसदी रिकवरी के आधार पर अक्टूबर 2024 से सितंबर 2025 सीजन के लिए तय किया गया है। अगर चीनी की रिकवरी 10.25 फीसदी से कम रहती है तो गन्ने का रेट घट जाएगा।
केंद्र सरकार ने गन्ने का का उचित और लाभकारी मूल्य (एफआरपी) 315 रुपये से बढ़ाकर 340 रुपये प्रति क्विंटल तय किया है। आर्थिक मामलों की मंत्रिमंडल समिति ने चीनी सीजन 2024-25 के लिए गन्ने के एफआरपी में 25 रुपये प्रति क्विंटल यानी करीब 8 फीसदी की बढ़ोतरी को मंजूरी दी है। गन्ने का एफआरपी चीनी की 10.25 फीसदी रिकवरी के आधार पर अक्टूबर 2024 से सितंबर 2025 सीजन के लिए तय किया गया है। अगर चीनी की रिकवरी 10.25 फीसदी से कम रहती है तो गन्ने का रेट घट जाएगा।
केंद्र सरकार द्वारा गन्ने के एफआरपी में बढ़ोतरी को किसानों के लिए बड़ी सौगत करार दिया जा रहा है। असल में ऐसा नहीं है। इसकी दो वजह हैं।
पहला, चीनी उद्योग के मुताबिक चालू सीजन में गन्ने में औसत चीनी रिकवरी 9.79 फीसदी है। इस स्थिति में गन्ने के एफआरपी में बढ़ोतरी का पूरा लाभ किसानों तक पहुंचना मुश्किल है। चीनी रिकवरी 10.25 फीसदी से अधिक होने पर प्रति 0.1 फीसदी रिकवरी पर 3.32 रुपये प्रति क्विंवटल एफआरपी बढ़ जाएगा। वहीं, अगर रिकवरी 10.25 फीसदी से कम रहती है तो इसी दर से एफआरपी में कटौती होगी। चीनी रिकवरी 9.5 फीसदी या इससे कम होने की स्थिति में गन्ना किसानों को 315.10 रुपये प्रति क्विंटल का एफआरपी मिलेगा।
चीनी रिकवरी के ताजा आंकड़ों को देखें तो देश में गन्ना किसानों को 340 रुपये का एफआरपी मिलने की स्थितियां नहीं हैं। 2023-24 सीजन में अभी तक गन्ने में चीनी रिकवरी का राष्ट्रीय औसत 9.79 फीसदी है। सभी बड़े चीनी उत्पादक राज्यों में रिकवरी 10.05 से 8.10 फीसदी है। देश के सबसे बड़े चीनी उत्पादक राज्य उत्तर प्रदेश में रिकवरी दर 10.05 फीसदी है तो दूसरे सबसे बड़े चीनी उत्पादक महाराष्ट्र में चीनी रिकवरी का स्तर 9.6 फीसदी है।
कुछ साल पहले तक एफआरपी तय के लिए 9.50 फीसदी की चीनी रिकवरी को आधार माना जाता है। लेकिन एफआरपी निर्धारण के लिए चीनी रिकवरी को चरणबद्ध तरीके से बढ़ाकर 10.25 फीसदी कर दिया गया। असल में चीनी उत्पादक राज्यों को दो हिस्सों में रखा जा सकता है। एक जहां एफआरपी के आधार पर गन्ने का दाम मिलता है और दूसरे वह राज्य जहां राज्य परामर्श मूल्य (एसएपी) के आधार पर किसानों को गन्ना मूल्य का भुगतान किया जाता है।
यही दूसरा कारण है। पिछले और मौजूदा किसान आंदोलन का असर जिन राज्यों पंजाब, हरियाणा, यूपी और उत्तराखंड में है, वहां किसानों को गन्ने का भाव एफआरपी की बजाय राज्य परामर्श मूल्य यानी एसएपी के आधार पर दिया जाता है। इसमें रिकवरी का कोई आधार नहीं है बल्कि अगैती और सामान्य प्रजातियों को आधार बनाकर कीमत तय की जाएगी। इस हिसाब से भी केंद्र द्वारा एफआरपी में की गई बढ़ोतरी का यूपी, हरियाणा, पंजाब और उत्तराखंड के गन्ना किसानों पर सीधा असर नहीं पड़ेगा। ना ही इसका उनके लिए खास महत्व है।
चालू सीजन में उत्तर प्रदेश में अगैती किस्म के गन्ने का एसएपी 370 रुपये प्रति क्विंटल, उत्तराखंड में 375 रुपये प्रति क्विंटल, हरियाणा में 384 रुपये प्रति क्विंटल है जबकि पंजाब में गन्ने का एसएपी 391 रुपये घोषित किया गया है। ऐसे में अगले सीजन के लिए तय एफआरपी से अधिक कीमत यहां गन्ना किसानों को पहले से ही मिल रही है। और वह भी एफआरपी के लिए तय चीनी की रिकवरी से कम रिकवरी के बावजूद। ऐसे में इन राज्यों के किसानों पर एफआरपी ताजा का घोषणा का कोई सीधा असर होगा, यह कहना मुश्किल है।
कुल मिलाकर स्थिति यह है कि जिन राज्यों में एफआरपी के आधार पर गन्ने का भुगतान होता है वहां रिकवरी दर कम होने से पूरा फायदा नहीं मिलेगा। जबकि यूपी जैसे प्रमुख गन्ना उत्पादक राज्य में किसानों को एफआरपी नहीं बल्कि एसएपी के आधार पर गन्ने का भाव दिया जाता है।
सरकारी विज्ञप्ति के मुताबिक, केंद्र सरकार ने गन्ने का एफआरपी लागत (ए2+एफएल) से 107 प्रतिशत अधिक है। इससे गन्ना किसानों की समृद्धि सुनिश्चित होगी। भारत पहले से ही दुनिया में गन्ने की सबसे ज्यादा कीमत चुका रहा है लेकिन इसके बावजूद सरकार भारत के घरेलू उपभोक्ताओं को दुनिया की सबसे सस्ती चीनी उपलब्ध करा रही है। सरकार का दावा है कि केन्द्र सरकार के इस फैसले से 5 करोड़ से अधिक गन्ना किसानों (परिवार के सदस्यों सहित) और चीनी क्षेत्र से जुड़े लाखों अन्य लोगों को फायदा होगा।