चालू सीजन में यूपी के गन्ना किसानों का 7,000 करोड़ बकाया, पिछले सीजन के भी 1,500 करोड़ बाकी
मिलों ने पेराई सत्र 2021-22 में 25 जनवरी तक 465.26 लाख टन गन्ना किसानों से खरीदा, जिससे 45.67 लाख टन चीनी का उत्पादन हुआ है। किसानों से खरीदे गए गन्ने की कीमत करीब 16,000 करोड़ रुपये बनती है, जबकि इस दौरान गन्ना किसानों को 9,157.43 करोड़ रुपये का भुगतान किया गया है
अमित शाह 26 जनवरी को जब उत्तर प्रदेश के कुछ जाट नेताओं से मिले, तो उस बैठक में कुछ जाट नेताओं ने गन्ना किसानों को देरी से भुगतान का मुद्दा भी उठाया। दरअसल पश्चिमी उत्तर प्रदेश में गन्ना किसानों का बकाया एक प्रमुख चुनावी मुद्दा बन गया है। सत्तारूढ़ भाजपा के रिकॉर्ड भुगतान के दावे के बावजूद अक्टूबर 2021 से सितंबर 2022 तक चलने वाले मौजूदा सीजन में गन्ना किसानों के करीब 7,000 करोड़ रुपये चीनी मिलों पर बकाया हो गए हैं। गन्ना किसान इस बात से भी नाराज हैं कि हाई कोर्ट के आदेश बावजूद उत्तर प्रदेश सरकार चीनी मिलों को ब्याज भुगतान से बचाने के लिए सुप्रीम कोर्ट चली गई।
उत्तर प्रदेश सरकार के गन्ना विभाग की 25 जनवरी तक की रिपोर्ट के अनुसार, चीनी मिलों ने पेराई सत्र 2021-22 में 25 जनवरी तक 465.26 लाख टन गन्ना किसानों से खरीदा, जिससे 45.67 लाख टन चीनी का उत्पादन हुआ है। किसानों से खरीदे गए गन्ने की कीमत करीब 16,000 करोड़ रुपये बनती है, जबकि इस दौरान गन्ना किसानों को 9,157.43 करोड़ रुपये का भुगतान किया गया है। यानी इस सत्र का करीब 7,000 करोड़ रुपये बकाया है।
भारतीय किसान यूनियन के राष्ट्रीय प्रवक्ता राकेश टिकैत ने सरकार के रवैये को निराशाजनक बताया। रूरल वॉयस से बातचीत में उन्होंने कहा, “सरकार ने किसानों को 14 दिनों में भुगतान का वादा था, लेकिन ऐसा नहीं हो रहा है। इससे किसानों की मुश्किलें बढ़ रही हैं। पिछली सरकार के समय जो ग्रुप समय से भुगतान नहीं कर रहे थे, वही ग्रुप अब भी भुगतान में कोताही कर रहे हैं। लेकिन उनके खिलाफ कोई सख्त कार्रवाई नहीं हो रही है।”
चौंकाने वाली बात यह है कि राज्य के गन्ना विकास और चीनी उद्योग मंत्री सुरेश राणा की विधान सभा थाना भवन और जिले की शामली मिल ने अभी तक पिछले साल का पूरा भुगतान नही किया है। इससे साफ हो जाता है कि जब उत्तर प्रदेश सरकार के संबंधित विभाग के मंत्री के गृह जिले और विधान सभा में गन्ना मूल्य भुगतान की यह स्थिति है तो इस मुद्दे पर सरकार की सख्ती की क्या स्थिति है।
शामली जिले के गांव खेड़ी बैरागी के किसान जीतेंद्र हुड्डा ने रूरल वॉयस को बताया, “इस साल के भुगतान की बात तो दूर, अभी तक पिछले साल के गन्ने का भी भुगतान नहीं हुआ है। ऐसे में हमें काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है।”
पिछले सीजन (2020-21) में 1027.50 लाख टन गन्ने की पेराई हुई और चीनी उत्पादन 110.59 लाख टन रहा था। चीनी मिलों ने गन्ना किसानों को 31,716.65 करोड़ रुपये का भुगतान किया। यह कुल गन्ना मूल्य का 96.07 फीसदी है। यानी पिछले सीजन की भी चार फीसदी रकम बकाया है, जो करीब 1,500 करोड़ रुपये बैठती है। हालांकि उससे पहले के वर्षों में प्रदेश की 119 चीनी मिलों ने गन्ने का पूरा भुगतान कर दिया है। मौजूदा सरकार के कार्यकाल में कुल 1,55,926.79 करोड़ रुपये के गन्ना मूल्य का भुगतान किया गया है।
गन्ना किसानों की नाराजगी दूर करने के लिए उत्तर प्रदेश सरकार ने पिछले साल सितंबर के आखिरी हफ्ते में गन्ने का राज्य परामर्श मूल्य (एसएपी) 25 रुपये प्रति क्विंटल बढ़ाकर 350 रुपये किया था। गन्ने की कीमत में वृद्धि की घोषणा करते समय राज्य सरकार ने कहा था कि गन्ने की रिजेक्ट की गई किस्मों को भी 310 रुपये की जगह 335 रुपये प्रति क्विंटल के भाव पर खरीदा जाएगा। हालांकि घोषणा के समय इस गन्ने का सिर्फ एक फीसदी बाकी रह गया था। राज्य सरकार का दावा था कि मूल्यवृद्धि से किसानों को 4,000 करोड़ रुपये की अतिरिक्त आमदनी होगी। लखनऊ में किसान सम्मेलन को संबोधित करते हुए मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने किसानों के बकाया बिजली बिल पर ब्याज माफ करने की भी घोषणा की थी। इसके बावजूद गन्ना किसानों की नाराजगी दूर होती नहीं लग रही है।