कृषि बजट में यथास्थिति और अमृतकाल में प्राकृतिक खेती से उम्मीद
पांच राज्यों के विधान सभा चुनावों के करीब होने के बावजूद बजट में किसानों के लिए कोई बड़े आवंटन वाली लुभावनी योजना घोषित नहीं की गई है। प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि में बढ़ोतरी संभावनाओं को दरकिनार करने के साथ ही न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) को कानूनी गारंटी किसान आंदोलन की दूसरी सबसे बड़ी मांग पर कोई चर्चा इस बजट में नहीं की गई। साथ ही कई योजनाओं के लिए आवंटन कम करने के साथ ही खाद्य और उर्वरक सब्सिडी के प्रावधानों में भारी कटौती के साथ ही ग्रामीण रोजगार गारंटी की योजना मनरेगा का आवंटन भी करीब 25 हजार करोड़ रुपये कर दिया गया है
वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने नये वित्त वर्ष (2022-23) के बजट में कई भ्रांतियों को एक साथ तोड़ने की कोशिश की है। उन्होंने आजादी के 75वें साल से 100वें साल के अमृत काल में भारत की बेहतर आर्थिक स्थिति के लिए एक एजेंडा पेश किया है लेकिन जरूरी नहीं उनकी यह रणनीति सभी के लिए कारगर साबित हो। वैसे भी यह साल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की घोषणा के मुताबिक देश में किसानों की आय को दोगुना करने के लक्ष्य को हासिल करने वाला है। लेकिन वैसा कुछ न तो हुआ है और न ही वित्त मंत्री ने मंगलवार को पेश नये साल का आम बजट पेश करते हुए इसका कोई जिक्र किया है। यह बात अलग है कि उनके तीन साल पहले 2019-20 के बजट में इस लक्ष्य को हासिल करने के लिए जीरो बजट फार्मिंग का जिक्र किया गया था, लेकिन नये साल के बजट में नेचुरल फार्मिंग यानी केमिकल मुक्त खेती पर बहुत जोर दिया गया है। पांच राज्यों के विधान सभा चुनावों के करीब होने के बावजूद बजट में किसानों के लिए कोई बड़े आवंटन वाली लुभावनी योजना घोषित नहीं की गई है। साथ ही कई योजनाओं के लिए आवंटन कम करने के साथ ही उर्वरक और खाद्य सब्सिडी के प्रावधानों में भारी कटौती के साथ ही ग्रामीण रोजगार गारंटी की योजना मनरेगा का आवंटन भी 25 हजार करोड़ रुपये कम कर दिया गया है।
जहां तक कृषि मंत्रालय के लिए घोषित कुल परिव्यय की बात है तो आगामी वित्त वर्ष के लिए इसके तहत एक लाख 24 लाख करोड़ रुपये का बजटीय प्रावधान किया गया है जो चालू साल के संशोधित अनुमान के मुताबिक एक लाख 18 हजार 294 करोड़ रुपये से थोड़ा ज्यादा है। इस बजट में कृषि क्षेत्र में इन्नोवेशन, तकनीक, किसान ड्रोन, मिलेट को बढ़ावा, एफपीओ और एग्रीटेक स्टार्ट-अप को बढ़ावा देने की बात कही गई है। लेकिन कई पुरानी केंद्रीय योजनाओं को बंद कर उनकी जगह एक नई प्रधानमंत्री राष्ट्रीय कृषि विकास योजना और कृषोन्नति योजना के तहत कई केंद्रीय योजनाओं को शामिल किया गया है। यह सब उपर दिये गये बजटीय प्रावधान का ही हिस्सा है। जहां तक कृषि शोध और शिक्षा की बात तो उसके लिए बजट में चालू साल के संशोधित अनुमान के बराबर 8513.62 करोड़ रुपये का ही प्रावधान किया गया है यानी कृषि शोध के लिए आवंटन में कोई बढ़ोतरी नहीं की गई है। वैसे जिस प्राकृतिक खेती पर जोर दिया गया है उसका कोई रोडमैप या उसके लिए किसानों को कोई सहायता या अतिरिक्त प्रावधान नहीं किया गया है।
किसानों और राजनीतिक विश्लेषकों को उम्मीद थी कि उत्तर प्रदेश समेत पांच राज्यों के विधान सभा चुनावों के पहले आये इस बजट में प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि में बढ़ोतरी की जाएगी। इसे छह हजार रुपये साल से बढ़ाकर कम से कम नौ हजार रुपये साल कर दिया जाएगा। यह कदम छोटे और सीमांत किसानों को राहत पहुंचाता और भाजपा के लिए वोट जुटाने में मदद करता। यह योजना दिसबंर 2018 में शुरू की गई थी जो 2019 के लोक सभा चुनावों के ठीक पहले का समय था और उसका भाजपा ने पूरा फायदा उठाया। लेकिन सरकार ने इस बार के सबसे महत्वपूर्ण चुनावों के पहले किसान आंदोलन और कृषि कानूनों की वापसी के बाद किसानों को लुभाने का मौका गंवा दिया है।
कृषि मंत्रालय के बजट का सबसे बड़ा हिस्सा प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि है और उसके लिए चालू साल के 67500 करोड़ रुपये के मुकाबले 68 हजार करोड़ रुपये का प्रावधान किया गया है। किसानों को पेंशन के लिए जोर-शोऱ से शुरू की गई योजना प्रधानमंत्री किसान मान धन योजना के लिए केवल 100 करोड़ रुपये का प्रावधान किया गया है। नई शुरू की गयी केंद्रीय प्रायोजित योजना प्रधानमंत्री राष्ट्रीय कृषि विकास योजना के तहत 10433 करोड़ रुपये और कृषोन्नति योजना के तहत 7183 करोड़ रुपये का बजटीय प्रावधान नये साल के बजट में किया गया है। इनके तहत प्राकृतिक खेती, आर्गनिक खेती, पॉम ऑयल, तिलहन उत्पादन को प्रोत्साहन देने जैसी एक दर्जन से अधिक मदों को शामिल किया गया है।
यह बजट कई मामलों में दिलचस्प है और अपने भाषण में वित्त मंत्री ने स्थिति को साफ करने की जरूरत भी नहीं समझी है। मसलन प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना के तहत चालू साल के 15,989.3 करोड़ रुपये के संशोधित अनुमान के मुकाबले नये साल में इसके तहत आवंटन को घटाकर 15,500 करोड़ रुपये कर दिया गया है। इस योजना के तहत बीमा कराने वाले किसानों की संख्या घट रही है और कई राज्य इसके बाहर हो गये हैं, लेकिन किसानों के रिस्क को कवर करने वाली इस योजना के लिए चालू साल से कम आवंटन साफ करता है कि इसे बढ़ावा देने की सरकार की मंशा नहीं है। सस्ते ब्याज वाली किसान क्रेडिट कार्ड योजना के तहत किसानों को दी जाने वाली ब्याज छूट के लिए 19500 करोड़ रुपये का प्रावधान किया गया है। चालू साल में इसके तहत 18142 करोड़ रुपये की ब्याज सब्सिडी का अनुमान है। यानी केसीसी के तहत कर्ज में किसी भारी बढ़ोतरी की संभावना नहीं दिख रही है। फसलों की कीमतों में गिरावट के समय इस्तेमाल की जाने वाली एमएआईस (पीएसएस) योजना के लिए आवंटन को मौजूदा साल के 3595 करोड़ रुपये से घटाकर 1500 करोड़ रुपये कर दिया है। कुछ साल पहले किसानों को फसलों के बेहतर काम दिलाने के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य व्यवस्था के विकल्प के रूप में पेश जाने वाली प्रधानमंत्री अन्नदाता आय सुरक्षा (पीएम आशा) योजना के लिए आवंटन को चालू साल के 400 करोड़ रुपये से घटाकर मात्र एक करोड़ रुपये कर दिया गया है।
कृषि मंत्रालय से अलग कर बनाये गये पशुपालन, मत्स्यपालन और डेयरी मंत्रालय के लिए बजटीय आवंटन में अपेक्षाकृत बेहतर बढ़ोतरी की गई है। पशुपालन और डेयरी विभाग के लिए बजटीय प्रावधान को मौजूदा 2713.75 करोड़ रुपये से बढ़ाकर 3918.84 करोड़ रुपये कर दिया गया है। वहीं मत्स्य पालन विभाग के लिए बजट को 1407.29 करोड़ रुपये के संशोधित अनुमान से बढ़ाकर 2118.47 करोड़ रुपये कर दिया गया है। इसमें 1879 करोड़ रुपये प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना के लिए दिये गये हैं।
जहां तक सब्सिडी की बात तो उसमें कटौती की गई है। मसलन वित्त मंत्री ने बजट भाषण में बताया कि चालू साल में गेहूं और चावल की सरकारी खरीद में किसानों को 2.37 लाख करोड़ रुपये का भुगतान होगा। लेकिन आगामी साल के लिए खाद्य सब्सिडी को 2,86,469.11 करोड़ रुपये से करीब 80 हजार करोड़ रुपये घटाकर 2,06,831.05 करोड़ रुपये कर दिया गया है। इसी तरह चालू साल में जहां कुल उर्वरक सब्सिडी 1,40,122 करोड़ रुपये रहने का अनुमान लगाया गया है वहीं आगामी साल में उर्वरक सब्सिडी को घटाकर 1,05,222.32 करोड़ रुपये का प्रावधान किया गया है।
जहां तक ग्रामीण विकास विभाग की बात है तो उसका बजट संशोधित अनुमान 1,53,558.07 करोड़ रुपये से घटाकर 1,35,944.29 करोड़ रुपये किया गया है। महात्मागांधी मनरेगा के लिए प्रावधान 98 हजार करोड़ रुपये से घटाकर 73 हजार करोड़ रुपये कर दिया गया है।
सब्सिडी और मनरेगा प्रावधानों में कटौती की वजह को वित्त मंत्री द्वारा इन मदों में खर्च के कम होने की संभावना हो माना जा सकता है। मसलन खाद्य सब्सिडी घटने का मतलब है कि मुफ्त अनाज की योजना आने वाले साल में बंद हो सकती है। उर्वरक सब्सिडी को कम करने का मतलब है कि सरकार उर्वरकों की खपत को कम करना चाहती है या फिर उर्वरकों के दाम बढ़ सकते हैं। साथ ही विधान सभा चुनावों के बाद डीजल और पेट्रोल के दाम भी बढ़ेंगे। मनरेगा के तहत साल में 100 दिन के रोजगार की गारंटी के प्रावधान के मुकाबले रोजगार के दिनों की संख्या देश भर में काफी कम है। ऐसे में आवंटन कम करने का मतलब है कि सरकार मान रही है कि मनरेगा में ज्यादा लोगों को रोजगार देने की जरूरत नहीं पड़ेगी।
बजट में एग्री स्टार्ट-अप को बढ़ावा देने के लिए फंड बनाने, एग्रीटेक को बढ़ावा देने के लिए फसलों की स्थिति के आकलन, पेस्टीसाइड और उर्वरकों के छिड़काव के लिए किसान ड्रोन को बढ़ावा देने की बात की गई है लेकिन इस पर एक कृषि वैज्ञानिक ने रूरल वॉयस से बातचीत में टिप्पणी की कि जब नेचुरल फार्मिंग में केमिकल की जरूरत ही नहीं तो ड्रोन को बढ़ावा देना कैसे तर्कसंगत होगा। कुल 44 हजार करोड़ रुपये की केन बेतवा लिंक योजना के जरिये सिंचाई सुविधा बढ़ने और पीने के पानी सुविधा और बिजली उत्पादन होने कि बात बजट में कही गई है साथ ही कई अन्य नदियों को जोड़ने के लिए ड्राफ्ट रिपोर्ट तैयार करने की बात भी कही गई है।
असल में चालू साल में कृषि क्षेत्र द्वारा 3.9 फीसदी की आर्थिक वृद्धि दर हासिल करने का अनुमान बजट के एक दिन पहले आये आर्थिक सर्वेक्षण में लगाया गया है। कोरोना के दौर में जब अर्थव्यवस्था के बाकी क्षेत्र सिकुड़ रहे थे तब भी कृषि क्षेत्र ने वृद्धि हासिल की और अर्थव्यवस्था को बड़ा सहारा दिया। इस बीच किसान आंदोलन के चलते सरकार ने सुधारों के लिए लाये गये तीन कृषि कानूनों को भी रद्द कर दिया। ऐसे में नया बजट इस बात का संकेत है कि सरकार कृषि क्षेत्र को बिना किसी बड़े बदलाव और बड़े इंसेंटिव के उसकी मौजूदा रफ्तार पर ही बरकरार रखना चाहती है। यह बात अलग है कि पीएम किसान सम्मान योजना में बढ़ोतरी की उम्मीद और न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) को कानूनी गारंटी के मुद्दे पर बजट में कुछ संकेत ढ़ूंढ़ रहे किसानों और एक्सपर्ट्स को वित्त मंत्री ने निराश किया है। साथ ही पांच राज्यों के विधान सभा चुनावों के कुछ दिन पहले आये आम बजट में किसी तरह की लोकलुभावन घोषणा कर राजनीतिक संदेश देने से भी परहेज किया है। बजट के कई पहलू अभी आंकड़ों में छिपे हैं और धीरे-धीरे सामने आएंगे तो स्थिति का आकलन और बेहतर हो सकेगा।