सोयाबीन की कीमतें 10 साल पुराने स्तर पर, मंडियों में 3500 रुपये प्रति क्विंटल रह गया दाम

मध्य प्रदेश में सोयाबीन का दाम 10 साल पुराने भाव पर पहुंच गया है। मंडियों में सोयाबीन की कीमतें 3500 से 4000 रुपये प्रति क्विंटल के बीच हैं, जो सोयाबीन के एमएसपी से भी कम हैं। सीजन शुरू होने से पहले ही कीमतों में आई गिरावट ने किसानों की चिंता बढ़ा दी है

सोयाबीन की कीमतें 10 साल पुराने स्तर पर, मंडियों में 3500 रुपये प्रति क्विंटल रह गया दाम

मध्य प्रदेश में सोयाबीन की कीमतें 10 साल पुराने स्तर पर पहुंच गई हैं। प्रदेश की मंडियों में सोयाबीन 3500 से 4000 रुपये प्रति क्विंटल के भाव में बिक रही है। सीजन शुरू होने से पहले ही सोयाबीन की कीमतों में आई गिरावट ने किसानों को चिंता बढ़ दी है। प्रदेश की मंडियों में सोयाबीन का भाव न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) से भी नीचे चल रहा है। आगामी खरीफ मार्केटिंग सीजन के लिए केंद्र सरकार ने सोयाबीन के लिए 4892 रुपये प्रति क्विंटल का एमएसपी निर्धारित किया है। यानी किसानों को प्रति क्विंटल पर सीधा 1000 से 1300 रुपये का नुकसान हो रहा है। 

उत्पादन लागत निकालना हो रहा मुश्किल 

खरीफ मार्केटिंग सीजन 2024-25 के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) तय करने के लिए केंद्र सरकार ने कृषि लागत एवं मूल्य आयोग (सीएसीपी) की जिस रिपोर्ट को आधार बनाया था उसके अनुसार, सोयाबीन की उत्पादन लागत 3261 रुपये प्रति क्विंटल है जबकि किसान इसे 3500 से 4000 रुपये प्रति क्विंटल के भाव में बेच रहे हैं। सोयाबीन प्रोसेसर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया (सोपा) के आंकड़ों के मुताबिक, 2013-14 में सोयाबीन का औसत भाव 3823 रुपये प्रति क्विंटल था, जो लगभग मौजूदा कीमतों के करीब आ गया है। 

मध्य प्रदेश कांग्रेस के किसान प्रकोष्ठ के अध्यक्ष केदार शंकर सिरोही ने रूरल वॉयस को बताया कि किसानों के लिए सोयाबीन की खेती घाटे का सौदा साबित हो रही है। प्रदेश की मंडियों में सोयाबीन का जो दाम किसानों को मिल रहा है, वो एमएसपी से भी कम है। उन्होंने कहा कि सोयाबीन की कीमतों में 30 फीसदी तक की गिरावट आई है। पिछले साल इसी समय सोयाबीन का दाम 5000 रुपये के आसपास था, लेकिन अब दाम गिरकर 3500 रुपये के आसपास आ गए हैं।

केदार सिरोही ने कहा कि प्रदेश में एमएसपी पर सोयाबीन की खरीद नाममात्र की होती है जबकि मध्य प्रदेश में सोयाबीन का सबसे ज्यादा उत्पादक राज्य है। उन्होंने कहा कि इस साल प्रदेश में सोयाबीन का अच्छा उत्पादन होने का अनुमान है। लेकिन सीजन शुरू होने से पहले ही कीमतों में आई गिरावट किसानों के लिए एक बड़ी चिंता का विषय है। उन्होंने कहा कि अगर कीमतें ऐसे ही गिरती रहीं, तो किसानों को मजबूरन  सोयाबीन की खेती छोड़नी पड़ेगी।

आयात शुल्क में कटौती से बढ़ी समस्याएं 

सिरोही ने कहा कि सोयाबीन की कीमतों में गिरावट का एक प्रमुख कारण आयात शुल्क में की गई कटौती है। पहले सोयाबीन रिफाइंड तेल पर आयात शुल्क 32 फीसदी था, जिससे आयात कम होता था। लेकिन अब इसे घटाकर 12.5 प्रतिशत कर दिया गया है, जिससे दूसरे देशों से सस्ते दामों पर आयात बढ़ा है और घरेलू बाजार में सोयाबीन की मांग कम हो गई है। इसके अलावा, अंतरराष्ट्रीय बाजार में अर्जेंटीना, ब्राजील और अमेरिका जैसे देशों का दबदबा बढ़ने से भारतीय सोयाबीन की मांग पर भी असर पड़ा है।

वैश्विक स्तर पर अर्जेंटीना, ब्राजील और अमेरिका सोयाबीन के सबसे बड़े उत्पादक देश हैं, जिनकी कुल बाजार हिस्सेदारी लगभग 95 फीसदी है। इसके मुकाबले भारत की हिस्सेदारी सिर्फ 2.5 से 3 फीसदी तक है। भारत मुख्य रूप से यूरोप को सोयाबीन निर्यात करता है, लेकिन अंतरराष्ट्रीय बाजार में प्रमुख उत्पादक देशों का बढ़ता प्रभाव भारतीय सोयाबीन की मांग पर नकारात्मक असर डाल रहा है। पिछले साल इन देशों में उत्पादन कम होने के कारण सोयाबीन की कीमतें संतोषजनक थीं, लेकिन इस साल अच्छे उत्पादन की संभावना से कीमतों में और गिरावट आने की आशंका है।

किसान सत्याग्रह मंच के संस्थापक सदस्य शिवम बघेल ने रूरल वॉयस को बताया कि सोयाबीन के दाम 10 साल पुराने रेट पर आ गए हैं। उन्होंने कहा कि 2013-14 में किसानों को जो दाम मिल रहा था, आज उसी दाम पर किसान सोयाबीन बेचने को मजबूर हैं। उन्होंने कहा कि पिछले कुछ सालों में सोयाबीन की कीमतों में लगातार गिरावट आई है। हर साल सीजन से पहले दाम कम हो जाते हैं लेकिन इस साल दाम 3500 रुपये प्रति क्विंटल तक गिर गए हैं, जिससे किसानों के लिए उत्पादन लागत निकालना भी मुश्किल हो गया है। उन्होंने सरकार से अपील की है कि किसानों को हो रहे इस नुकसान से बचाने के लिए जल्द से जल्द कोई ठोस कदम उठाए जाएं।

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