रूरल वॉयस एग्रीकल्चर कान्क्लेव में “कृषि वैज्ञानिका” काव्य पुस्तिका का विमोचन
“कृषि वैज्ञानिका - कृषि विज्ञान, नवाचार और खेती की काव्य अभिव्यक्तियां” का लेखन डॉ. डी. कुमार और प्रकाशन साउथ एशिया बायोटेक्नोलॉजी सेंटर (एसएबीसी), जोधपुर ने किया हैं। इस पुस्तक में कृषि की जटिल तकनीकियों को आसान भाषा में 75 कविताओं के संग्रह के माध्यम से प्रस्तुत किया गया है।
नई दिल्ली में आयोजित रूरल वॉयस एग्रीकल्चर कॉन्क्लेव में बड़ी तादाद में किसानों और विशेषज्ञों की मौजूदगी में "कृषि वैज्ञानिका - कृषि विज्ञान, नवाचार और खेती की काव्य अभिव्यक्तियां” पुस्तक का विमोचन किया गया। किसान दिवस के मौके पर 23 दिसंबर को नई दिल्ली के इंडिया हैबिटैट सेंटर में आयोजित कार्यक्रम में डॉ. रमेश चन्द्र, सदस्य, नीति आयोग, भारत सरकार; डॉ. चंद्रपाल सिंह यादव, चेयरमैन, कृभको; राम इक़बाल सिंह, चेयरमैन, नेकॉफ; हरवीर सिंह, प्रधान संपादक, रूरल वॉयस; डॉ. डी. कुमार, पूर्व वैज्ञानिक काजरी और डॉ. भागीरथ चौधरी, फाउंडर डायरेक्टर, साउथ एशिया बायोटेक्नोलॉजी सेंटर,जोधपुर द्वारा संयुक्त रूप से पुस्तक का विमोचन गया।
“कृषि वैज्ञानिका - कृषि विज्ञान, नवाचार और खेती की काव्य अभिव्यक्तियां” की रचना डॉ. डी. कुमार और प्रकाशन साउथ एशिया बायोटेक्नोलॉजी सेंटर (एसएबीसी), जोधपुर ने किया हैं। इस पुस्तक में कृषि की जटिल तकनीकियों को आसान भाषा में 75 कविताओं के संग्रह के माध्यम से प्रस्तुत किया गया है। भारत की आजादी के 75वें अमृत महोत्सव में किसान समाज को यह पुस्तक समर्पित है। कृषि वैज्ञानिका पुस्तक में कृषि सम्बंधित समस्याओं व उनके समाधानों को समझकर, सरल भाषा में कविताओं के रूप में पिरोकर आमजनों, किसानों तथा वैज्ञानिकों को पेश किया गया है। यह काव्य संग्रह कृषि ज्ञान का एक अद्भुत खजाना है, जो कृषक जीवन की सरलता, तरलता व निरंतरता से ओतप्रोत है। खेती संबंधित नये-पुराने ज्ञान व तकनीकियों को गुनगुनाते, गाते, खेत व खलिहानों तक ले जाने का एक अनूठा प्रयास है।
दूसरे साहित्यक रसों जैसे वीर रस, श्रृंगार रस इत्यादि के अतिरिक्त यह नया कृषि और खाद्य रस है। इस कृषि रसीली पुस्तक में प्रथम कविता नमस्ते - किसान, नमस्ते - भारत, व अंतिम कविता, मैं कृषि वैज्ञानिक हूँ का, समावेश है। कुल 75 कवितायें: मृदा, कृषी सभ्यता, गाँव, कृषक, कृषि जलवायु, फसलें, जैविक खेती, सफलतम कहानियाँ, कीट व रोग प्रबंधन, गाय माता इत्यादि पर आधारित हैं। बाजरा के गौरव, जीरे का जलवा और थार उत्पादित अनार के मिठास पर कविताओं को भी शामिल किया गया है।
पुस्तक में तीन संदेश नरेंद्र सिंह तोमर, पूर्व कृषि व किसान कल्याण मंत्री, भारत सरकार; अशोक गहलोत, पूर्व मुख्यमंत्री, राजस्थान सरकार तथा डॉ हिमांशु पाठक, सचिव, कृषि अनुसन्धान व शिक्षा विभाग, भारत सरकार एव महानिदेशक, भारतीय कृषि अनुसन्धान परिषद्, नई दिल्ली द्वारा प्रेषित हैं। पुस्तक में गाँव की कितनी सुंदर व्याख्या की गई है:
गाँव की उड़ती धूल को; प्राण वायु समझो तुम।
उपवनों की गहरी छाया को; वातानुकूलित छाया समजो तुम।।
गाँव से दूर ना भागो तुम, गाँव में, शिक्षा-व्यापार करो तुम।
गाँव को भारत मानो तुम, इस भारत से प्यार करो तुम।।
कविताओं में मृदाओं पर काफी जोर दिया गया है। उत्पादन स्थिर रखने व जलवायु परिवर्तन का सामना करने के लिए एकीकृत खेती पर जोर दिया गया है:
फल-फसल- मृदा-पशु को, एकीक्रत करना होगा।
फसल सुधार संग, भूमी प्रजनन पर विशेष जोर देना होगा।।
भूमी को माँ, फ़सलों, पशुओं को पुत्र मानना होगा।
मोह जाल से, एकीक्रत उपायोन से, एक चक्र्व्हू रचना होगा।
फसां चक्र्व्युहू में कृषि आपदाओं को, खेती करनी होगी।।
बचा खेती,भारत को, दुनिया का संकटमोचन बनाना होगा।।
सफलतम कहानियों पर आधारित कवितायें कृषकों के लिए काफी रोचक और ज्ञानवर्धन हैं। इसमें अनार पर पद्मश्री गेनाराम पटेल की कहानी, मारवाड़ में खजूर पर सादुल राम की कहानी, पोलीहाउस पर आत्माराम विश्नोई की कहानी, गेहूं और जीरे पर निर्यात की इत्यादि।
बाजरा के बारे में क्या खूब लिखा गया है:
मैं भुखमरी व कंगाली के आंशु पोंछ कर, इज्जत की मुस्कान दिलाता हूँ।
मैं कच्चे मकानों, झुग्गी, झोपडी से चल, पांच सितारा होटल पहुंच गया हूँ।।
मैं सेठो, शाहूकारों, स्टारनायकों, महानायकों की पसंद बन चुका हूँ।
सस्ते में उगाओ, खाओ मुज बाजरा को, स्वस्थ व स्वाबलंबी भारत के लिये।
बचायें मानव को कुपोषण से, भुखमरी से, बाजरा से, परिष्कृत पदार्थों से।।
आवश्यकता अनुसार अपना व्यावहारिक ज्ञान चुनकर कृषक अपने कल्याण के पथ पर अग्रसर होंगें। यह कृषी-अनुसंधान-विस्तार-कौशल का बिलकुल जुदा तरीका है।
जय जवान, जय किसान, जय विज्ञान, जय अनुसन्धान!
कृषि वैज्ञानिका की सॉफ्ट कॉपी यहां से डाउनलोड कर सकते हैं: https://lnkd.in/gsGkCKRY