रिजर्व बैंक ने रेपो रेट 6.5% पर रखा बरकरार, महंगाई-विकास दर में संतुलन बनी बड़ी चुनौती
ब्याज दरें बढ़ा कर महंगाई को काबू में करने के कदम की वजह से विकास दर प्रभावित हुई है। महंगे ब्याज की वजह से निजी उपभोक्ता मांग और खपत में कमी आई है जिससे मैन्युफैक्चरिंग, रियल एस्टेट जैसे क्षेत्र प्रभावित हुए हैं। इसका असर विकास दर पर पड़ा है। वित्त वर्ष 2022-23 की तीसरी तिमाही (अक्टूबर-दिसंबर 2022) में विकास दर 4.4 फीसदी पर सिमट गई। जनवरी-मार्च 2023 के आंकड़े अभी नहीं आए हैं।
महंगाई और विकास दर में संतुलन बनाए रखना रिजर्व बैंक के लिए चुनौती बन गया है। यही वजह है कि मई 2022 के बाद लगातार छह बार ब्याज दरों में बढ़ोतरी करने के बाद रिजर्व बैंक ने ब्याज दरें बढ़ाकर महंगाई को काबू में करने के कदम को रोक दिया है। गुरुवार को आरबीआई ने चालू वित्त वर्ष 2023-24 की अपनी पहली मौद्रिक नीति का ऐलान करते हुए रेपो रेट को 6.5 फीसदी पर बरकरार रखा है।
महंगाई को काबू में करने के लिए रिजर्व बैंक मई 2022 के बाद से अब तक ब्याज दरों में 2.5 फीसदी की बढ़ोतरी कर चुका है। इससे महंगाई में कमी तो आई है लेकिन यह अभी भी रिजर्व बैंक की संतोषजनक सीमा 6 फीसदी से ऊपर बनी हुई है। इस साल फरवरी में खुदरा महंगाई 6.44 फीसदी पर रही जो जनवरी में 6.52 फीसदी थी। मार्च के आंकड़े अगले हफ्ते आएंगे। ब्याज दरें बढ़ा कर महंगाई को काबू में करने के कदम की वजह से विकास दर प्रभावित हुई है। महंगे ब्याज की वजह से निजी उपभोक्ता मांग और खपत में कमी आई है जिससे मैन्युफैक्चरिंग, रियल एस्टेट जैसे क्षेत्र प्रभावित हुए हैं। इसका असर विकास दर पर पड़ा है। वित्त वर्ष 2022-23 की तीसरी तिमाही (अक्टूबर-दिसंबर 2022) में विकास दर 4.4 फीसदी पर सिमट गई। जनवरी-मार्च 2023 के आंकड़े अभी नहीं आए हैं।
रिजर्व बैंक के गवर्नर शक्तिकांत दास ने गुरुवार को मौद्रिक नीति का ऐलान करते हुए कहा कि रिजर्व बैंक वित्त वर्ष 2022-23 में विकास दर 7 फीसदी रहने के अपने पूर्वानुमान पर कायम है। जबकि 2023-24 के विकास दर अनुमान को आरबीआई ने 6.4 फीसदी से बढ़ाकर 6.5 फीसदी कर दिया है। यह विश्व बैंक और एशियाई विकास बैंक (एडीबी) के ताजा अनुमान से ज्यादा है। अभी दो दिन पहले ही विश्व बैंक ने अपने ताजा अनुमान में भारत की विकास दर को 6.6 फीसदी से घटाकर 6.3 फीसदी कर दिया है। वहीं एडीबी ने चालू वित्त वर्ष में 6.4 फीसदी की दर से भारतीय अर्थव्यवस्था के बढ़ने का अनुमान लगाया है। रिजर्व बैंक ने अप्रैल-जून 2023 की तिमाही में विकास दर 7.8 फीसदी और जुलाई-सितंबर में 6.2 फीसदी के अपने पूर्वानुमान को बरकरार रखा है। जबकि अक्टूबर-दिसंबर में जीडीपी अब 6 फीसदी की बजाय 6.1 फीसदी और जनवरी-मार्च 2024 में 5.8 फीसदी की तुलना में 5.9 फीसदी की दर से बढ़ने का अनुमान लगाया गया है।
शक्तिकांत दास ने कहा कि अर्थव्यवस्था और महंगाई को घरेलू और वैश्विक स्तर पर कई चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। इनमें बैंकिंग संकट, प्राइसिंग प्रेशन, भू-राजनीतिक तनाव जैसी चुनौतियां शामिल हैं। इसके बावजूद एमपीसी ने रेपो रेट में कोई बदलाव नहीं करने का फैसला किया है। एमपीसी के सभी छह सदस्यों ने इस पर सहमति जताई। रेपो रेट में बढ़ोतरी से जहां कर्ज महंगा हो जाता है वहीं बैंक जमा पर भी ज्यादा ब्याज मिलता है।
विकास दर अनुमान को बढ़ाने के साथ रिजर्व बैंक ने महंगाई के अपने पूर्वानुमान में कटौती की है। वित्त वर्ष 2023-24 में महंगाई दर 5.2 फीसदी रहने का अनुमान रिजर्व बैंक ने लगाया है जिसके पहले 5.3 फीसदी पर रहने का अनुमान था। हालांकि, अप्रैल-जून तिमाही के अनुमान को 5 फीसदी से बढ़ाकर 5.1 फीसदी कर दिया गया है। जबकि जुलाई-सितंबर और अक्टूबर-दिसंबर तिमाही के अनुमान को 5.4 फीसदी पर बरकरार रखा है। जनवरी-मार्च 2024 के महंगाई अनुमान को 5.6 फीसदी से घटाकर 5.2 फीसदी कर दिया गया है।
ब्याज दर नहीं बढ़ाने के आरबीआई के फैसले पर खुशी जताते हुए उद्योग संगठन फिक्की के अध्यक्ष सुभ्रकांत पांडा ने कहा, “वैश्विक अनिश्चितता को देखते हुए रेपो रेट को स्थिर रखने का नपा-तुला कदम स्वागत योग्य है। भारतीय अर्थव्यवस्था विकास के व्यापक आधार के साथ लचीलेपन के संकेत दिखा रही है। मुद्रास्फीति धीरे-धीरे ही सही, घटने का अनुमान है। इस स्तर पर नीतिगत दर में किसी भी तरह की बढ़ोतरी से विकास प्रभावित होगा। पीएचडी चैंबर ऑफ कॉमर्स के अध्यक्ष साकेत डालमिया ने कहा कि इस कदम का मकसद महंगाई के दबावों को रोकना और अर्थव्यवस्था में वित्तीय स्थिरता सुनिश्चित करना है।