मिलेट्स मैन पीवी सतीश कृषि-जैव विविधता और महिला अधिकारों को बढ़ावा देने के थे चैंपियन
देश में मिलेट्स (मोटा अनाज) को बढ़ावा देने वाले अग्रणी लोगों में से एक पीवी सतीश का निधन हो गया है। डेक्कन डेवलपमेंट सोसायटी (डीडीएस) के संस्थापक सतीश को मिलेट्स मैन के रूप में भी जाना जाता था। संयुक्त राष्ट्र ने वर्ष 2023 को अंतराराष्ट्रीय मोटा अनाज वर्ष घोषित किया है उसकी शुरुआत में ही उनका निधन हो जाना विडंबना ही है
देश में मिलेट्स (मोटा अनाज) को बढ़ावा देने वाले अग्रणी लोगों में से एक पीवी सतीश का निधन हो गया है। डेक्कन डेवलपमेंट सोसायटी (डीडीएस) के संस्थापक सतीश को मिलेट्स मैन के रूप में भी जाना जाता था। संयुक्त राष्ट्र ने वर्ष 2023 को अंतराराष्ट्रीय मोटा अनाज वर्ष घोषित किया है उसकी शुरुआत में ही उनका निधन हो जाना विडंबना ही है।
18 जून, 1945 को कर्नाटक के मैसूर में जन्मे 77 वर्षीय सतीश 18 मार्च को इस दुनिया से चल बसे। उनका पूरा नाम पेरियापटना वेंकटसुब्बैया सतीश था। वे एक प्रसिद्ध समाजिक कार्यकर्ता थे जिन्होंने दशकों पहले ग्रामीण तेलंगाना में मोटे अनाजों की खेती को बढ़ावा देने और इसके लाभों के बारे में जागरूकता पैदा करने के लिए कड़ी मेहनत की थी। तब मोटा अनाज को गरीबों का भोजन माना जाता था और उतना फैशनेबल नहीं था और न ही इसकी खेती को सरकारी समर्थन प्राप्त था। 1980 के दशक की शुरुआत में उन्होंने कुछ दोस्तों के साथ मिलकर एक गैर-सरकारी संगठन (एनजीओ) डीडीएस की स्थापना की। इसका मुख्यालय हैदराबाद से लगभग 120 किमी दूर जहीराबाद के पास पास्तापुर गांव में था। डीडीएस ने उनके नेतृत्व में कृषि-जैव विविधता, खाद्य संप्रभुता, महिला सशक्तिकरण, सामाजिक न्याय, स्थानीय ज्ञान प्रणाली, भागीदारी विकास और सामुदायिक मीडिया के मुद्दों पर महत्वपूर्ण योगदान दिया।
डीडीएस के महिला संघों और मोटा अनाज की खेती व जैविक कृषि के प्रति उनकी प्रतिबद्धता ने राष्ट्रीय स्तर पर प्रत्यक्ष विकल्प पेश करने का मार्ग प्रशस्त किया। सार्वजनिक वितरण प्रणाली में मोटा अनाजों को शामिल करने के डीडीएस के हालिया प्रयासों में उनका मार्गदर्शन महत्वपूर्ण था। डीडीएस की ओर से जारी एक बयान में बताया गया है कि इसके संस्थापक और कार्यकारी निदेशक, पीवी सतीश का 18 मार्च को लंबी बीमारी से निधन हो गया। 18 जून, 1945 को मैसूर में जन्मे पेरियापटना वेंकटसुब्बैया सतीश ने नई दिल्ली स्थित भारतीय जनसंचार संस्थान से पत्रकारिता की पढ़ाई कर पत्रकार के रूप में अपने कैरियर की शुरुआत की थी। उन्होंने नई दिल्ली और फिर हैदराबाद में दूरदर्शन के प्रोड्यूसर के रूप में लगभग दो दशक तक काम किया। इस दौरान तत्कालीन एकीकृत आंध्र प्रदेश में ग्रामीण विकास और ग्रामीण साक्षरता से संबंधित कई कार्यक्रम बनाए। उन्होंने 1970 के दशक में भी ऐतिहासिक सैटेलाइट इंस्ट्रक्शनल टेलीविजन एक्सपेरिमेंट (SITE) में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।
ग्रामीण इलाकों में गरीब और वंचित वर्गों की दुर्दशा और चुनौतियों से प्रेरित होकर उन्होंने अपने कर्तव्य से परे जाने और ग्रामीण विकास में योगदान देने का फैसला किया। इसलिए 1980 के दशक की शुरुआत में उन्होंने कुछ दोस्तों के साथ तेलंगाना के संगारेड्डी जिले के अर्द्ध-शुष्क जहीराबाद क्षेत्र में डेक्कन डेवलपमेंट सोसायटी की स्थापना की। संयोग से 1972 में स्थापित इंटरनेशनल क्रॉप्स रिसर्च इंस्टीट्यूट फॉर सेमी एरिड ट्रॉपिक्स (आईसीआरआईएसएटी) भी उसी जिले में स्थित है जो अर्द्ध-शुष्क फसलों पर काम कर रहा है।
शुरुआत में उनका ध्यान गांवों में गरीब दलित महिलाओं को उन कार्यक्रमों की एक श्रृंखला के लिए एकजुट करने पर था जो भूख, कुपोषण, भूमि क्षरण, जैव विविधता की हानि, लैंगिक अन्याय और सामाजिक अभाव को चुनौती देते थे। इसके बाद उन्होंने पीछे मुड़कर नहीं देखा। यह उनका जुनून बन गया। इस ओर पूर्णकालिक प्रतिबद्धता को देखते हुए उन्होंने दूरदर्शन से इस्तीफा दे दिया और पूरी तरह से इसी पर ध्यान केंद्रित किया। लगभग चार दशकों तक संगठन का नेतृत्व करते रहे और डीडीएस अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रशंसित एनजीओ बन गया। इसके प्रेरक उदाहरण ने देशभर में मोटा अनाजों के पुनरुद्धार और प्रचार में इसी तरह के प्रयोगों को प्रेरित किया। डीडीएस के निदेशक के रूप में सतीश के लंबे प्रयासों के परिणामस्वरूप तेलंगाना के 75 गांवों में हजारों गरीब महिलाओं की आजीविका में सुधार हुआ।
उन्होंने राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर के कई नेटवर्क का नेतृत्व किया। इनमें मिलेट नेटवर्क ऑफ इंडिया (मिनी), साउथ अगेन्स्ट जेनेटिक इंजीनियरिंग (एसएजीई) और एपी कॉलिशन इन डिफेंस ऑफ डायवर्सिटी शामिल हैं। इनके अलावा खाद्य, पारिस्थितिकी और संस्कृति के पांच दक्षिण एशियाई देशों के नेटवर्क सैनफेक (साउथ एशियन नेटवर्क फॉर फूड, इकोलॉजी एंड कल्चर) के लिए भारत के कॉर्डिनेटर भी रहे। इस नेटवर्क में 200 से अधिक पारिस्थितिक समूह हैं। एक घूमंतु व्यक्ति, स्पष्ट वक्ता के रूप में सतीश ने कई अन्य संगठनों में भी भूमिका निभाई। वह जेनेटिक रिसोर्सेज एक्शन इंटरनेशनल (GRAIN), बार्सिलोना (स्पेन) के बोर्ड सदस्य रहे और सस्टेनेबल फूड सिस्टम्स (IPES-Food), ब्रसेल्स (बेल्जियम) के विशेषज्ञों के अंतरराष्ट्रीय पैनल के सदस्य भी रहे।
उन्हें भारत के पहले कम्युनिटी मीडिया ट्रस्ट की शुरुआत का श्रेय जाता है। जमीनी स्तर के इस मीडिया केंद्र में अनपढ़ दलित महिलाओं को फिल्म निर्माण के लिए प्रशिक्षित किया गया ताकि मीडिया स्पेस का लोकतंत्रीकरण हो। साथ ही संघम रेडियो के नाम से भारत के पहले ग्रामीण, नागरिक समाज के नेतृत्व वाले सामुदायिक रेडियो की शुरुआत हुई। डीडीएस के मुख्यालय पास्तापुर में सालाना होने वाले उत्सव में स्थानीय समुदायों द्वारा हासिल की गई प्रगति, डीडीएस के योगदान और महिलाओं की सफलता की कहानियों को प्रदर्शित किया जाता है जिसने कई वर्षों तक लोगों का खूब ध्यान आकर्षित किया।
वह एनजीओ क्षेत्र के एक अथक कार्यकर्ता और नेता थे जो अपने सिद्धांतों के प्रति प्रतिबद्ध थे और युवाओं के संरक्षक थे। मिलेट्स को लोगों का एजेंडा बनाने में उनके आजीवन योगदान के लिए उन्हें हाल ही में नई दिल्ली के आरआरए नेटवर्क (रीवाइटलाइजिंग रेनफेड एग्रीकल्चर) द्वारा सम्मानित किया गया था। डीडीएस बोर्ड और महिला संग्राम ने कहा है कि यह संगठन उसी प्रतिबद्धता और समर्पण के साथ डीडीएस की गतिविधियों को आगे भी जारी रखेगा।
(एम. सोमशेखर, हैदराबाद के स्वतंत्र पत्रकार हैं। वह डेवपलमेंट से संबंधित मुद्दों, साइंस, टेक्नोलॉजी, कृषि, बिजनेस और स्टार्ट-अप पर विशेषज्ञता रखते हैं )