कृषि क्षेत्र में राज्यों की जिम्मेदारी ज्यादा बड़ी, सुधार के लिए वे कानून बनाएंः प्रो. रमेश चंद
नीति आयोग के सदस्य और जाने-माने कृषि अर्थशास्त्री प्रो. रमेश चंद ने कृषि क्षेत्र में सुधार के लिए राज्यों से अपनी जरूरत के मुताबिक कानून बनाने तथा बड़ी जिम्मेदारी निभाने का आह्वान किया है। उनका कहना है कि कृषि क्षेत्र के कुछ पहलू केंद्र के स्तर पर हैं और कुछ राज्य के स्तर पर। राज्यों की भी जिम्मेदारी उतनी ही बड़ी है, या कहें कि कृषि क्षेत्र के प्रति उनकी जिम्मेदारी ज्यादा बड़ी है। उनको इसके सकारात्मक और नकारात्मक पक्ष पर व्यापक चर्चा करनी चाहिए और सुधारों की ओर जाना चाहिए।
नीति आयोग के सदस्य और जाने-माने कृषि अर्थशास्त्री प्रो. रमेश चंद ने कृषि क्षेत्र में सुधार के लिए राज्यों से अपनी जरूरत के मुताबिक कानून बनाने तथा बड़ी जिम्मेदारी निभाने का आह्वान किया है। उनका कहना है कि कृषि क्षेत्र के कुछ पहलू केंद्र के स्तर पर हैं और कुछ राज्य के स्तर पर। राज्यों की भी जिम्मेदारी उतनी ही बड़ी है, या कहें कि कृषि क्षेत्र के प्रति उनकी जिम्मेदारी ज्यादा बड़ी है। उनको इसके सकारात्मक और नकारात्मक पक्ष पर व्यापक चर्चा करनी चाहिए और सुधारों की ओर जाना चाहिए। यह इसलिए भी जरूरी है कि भारत को विकसित राष्ट्र बनाने में कृषि क्षेत्र की भूमिका महत्वपूर्ण होगी।
प्रो. रमेश चंद ने रूरल वर्ल्ड पत्रिका को दिए एक विस्तृत इंटरव्यू में यह बातें कही। हाल ही में हरित क्रांति और अमृत काल को लेकर भारतीय कृषि पर उनका महत्वपूर्ण पेपर आया है, जिसमें उन्होंने देश के कृषि क्षेत्र के भविष्य का रोडमैप रखने की कोशिश की है। उन्होंने कहा कि बीते 10 वर्षों में कृषि उत्पादकता के क्षेत्र में भारत की ग्रोथ चीन और अमेरिका से बेहतर रही है, इसलिए पैदावार का अंतर काम हुआ है। किसानों को अपने फायदे के लिए उपलब्ध टेक्नोलॉजी को अपनाना चाहिए और राज्यों को भी इसमें भूमिका निभानी चाहिए। आजकल टेक्नोलॉजी काफी खर्चीली होती जा रही है और हमें दुनिया से प्रतिस्पर्धा करनी है, इसलिए यह महत्वपूर्ण हो जाता है।
यह पूछने पर कि क्या रद्द किए गए तीनों कृषि कानून समय की जरूरत थे, उन्होंने कहा कि जब ये कानून वापस लिए गए थे तो प्रधानमंत्री ने कहा था कि शायद हम किसानों को इन कानूनों के फायदे समझाने में असफल रहे। नीतियों में कमियां हो सकती हैं। जब किसान प्रदर्शन कर रहे थे तब मैंने नीति आयोग से पेपर जारी किया था। उसमें कोई भी देख सकता है कि इन कानूनों को लाने के पीछे सरकार के विचारकों की क्या मंशा थी।
उन्होंने कहा कि राज्य स्तरीय समितियों को अपनी परिस्थितियों के हिसाब से इन कानूनों के उन मॉडल पर चर्चा करनी चाहिए जो फायदेमंद हो सकते हैं। जैसे मॉडल एपीएमसी एक्ट आया था, मॉडल कांट्रैक्ट फार्मिंग एक्ट था, मॉडल लैंड लीजिंग एक्ट था, उन मॉडल को लेकर राज्य अपने यहां चर्चा करें। किसानों को भी खुले मन से इन पर चर्चा करनी चाहिए। इनको ठंडे बस्ते में डालना कृषि क्षेत्र और किसानों के लिए अच्छा नहीं होगा।
प्रो. रमेश चंद ने पिछले दिनों ‘हरित क्रांति से अमृत कालः भारतीय कृषि के लिए सीख और आगे की राह’ पेपर जारी किया, जिसमें हरित क्रांति से सबक लेकर कृषि की भावी रणनीति के लिए कदमों को सामने रखा है। यह पूछने पर कि इन पर अमल कैसे होगा, उन्होंने कहा कि जलवायु परिवर्तन कृषि क्षेत्र के लिए बड़ी चुनौती के रूप में सामने आया है। केमिकल के बहुत ज्यादा प्रयोग से लोगों के स्वास्थ्य पर असर पड़ा है। इन बातों को ध्यान में रखकर उस पर साइंटिफिक तरीके से रोड मैप नहीं बनाएंगे तो इधर-उधर भटकने की आशंका रहेगी। प्राकृतिक खेती की ओर जाने से हरित क्रांति के नकारात्मक प्रभावों में सुधार आएगा।
उन्होंने कहा, हमारे लिए सबसे बड़ी चुनौती यह है कि विकसित भारत का लक्ष्य लेकर अगर हम चल रहे हैं, जिसमें हर व्यक्ति की आमदनी 2100 डॉलर से बढ़कर 11-12 हजार डॉलर हो जाएगी, तो फिर लोगों को रोजगार कहां मिलेगा, लोगों की आमदनी कहां से होगी। सरकार का इन्क्लूसिव ग्रोथ का जो लक्ष्य है, उसमें हमें सिर्फ देश की आमदनी नहीं बढ़ानी, बल्कि सभी लोगों की आमदनी बढ़ानी है, और आमदनी बढ़ती है रोजगार से। हमें अब कृषि केंद्रित विकास के बारे में सोचना होगा, क्योंकि हमारा रोजगार अब भी कृषि केंद्रित है। 2022-23 का पीएलएफएस सर्वे कहता है कि 45.8 फीसदी कार्यबल कृषि क्षेत्र में ही है। उसमें बहुत धीमी गति से कमी आ रही है। इसलिए मेरा मानना है कि विकसित भारत बनाने में कृषि केंद्रीय भूमिका अदा करेगा।