लंपी स्किन रोग से बचाव के लिए केवल गोट पॉक्स वैक्सीन की अनुमति से वैक्सीनेशन की गति कमजोर
वैज्ञानिकों का कहना है कि देश में करीब 20 करोड़ वैक्सीन की जरूरत है, इसलिए वैक्सीनेशन में तेजी लाई जानी चाहिए। सरकार ने लंपी स्किन रोग से बचाव के लिए अभी तक केवल गोट पॉक्स वैक्सीन को पशुओं को लगाने की अनुमति है जबकि इसके देश में केवल दो उत्पादक हैं। इसी की तरह फायदेमंद शीप पॉक्स वैक्सीन को लगाने की अनुमति नहीं दी गई है जिसके करीब दर्जनभर उत्पादक हैं। उसकी अनुमति मिलने से वैक्सीन की बेहतर उपलब्धता के जरिये गौवंश को एलएसडी से सुरक्षा के लिए वैक्सीनेशन का काम तेज हो सकता है
देश के 12 राज्यों में गौवंश में महामारी की तरह फैले लंपी स्किन रोग (एलएसडी) का कोई इलाज नहीं है और केवल वैक्सीनेशन ही इसका बचाव है। वैज्ञानिकों का कहना है कि देश में करीब 20 करोड़ वैक्सीन की जरूरत है और इसलिए वैक्सीनेशन में तेजी लाई जानी चाहिए। सरकार ने लंपी रोग से बचाव के लिए अभी तक केवल गोट पॉक्स वैक्सीन को पशुओं को लगाने की अनुमति है जबकि इसके देश में केवल दो उत्पादक हैं। इसी की तरह फायदेमंद शीप पॉक्स वैक्सीन को लगाने की अनुमति नहीं दी गई है जिसके करीब दर्जनभर उत्पादक हैं। उसकी अनुमति मिलने से वैक्सीन की बेहतर उपलब्धता के जरिये गौवंश को एलएसडी से सुरक्षा के लिए वैक्सीनेशन का काम तेज हो सकता है। वहीं तीसरे विकल्प के रूप में भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) ने लंपी प्रोवैक-इंड वैक्सीन तैयार किया है जो लंपी स्किन रोग से पूर्ण सुरक्षा देता है, लेकिन अभी इसकी मंजूरी की वैधानिक प्रक्रिया पूरी होना बाकी है। हालांकि एक्सपर्ट्स का कहना है कि इसे इमरजेंसी अप्रूवल देना चाहिए जैसा कोविड-19 के समय उसके वैक्सीन को दिया गया था।
आईसीएआर के एक वरिष्ठ वैज्ञानिक ने रूरल वॉयस को बताया कि गोट पॉक्स वैक्सीन और शीप पॉक्स वैक्सीन लंपी स्किन रोग में बराबर की सुरक्षा देते हैं। यह दोनों वैक्सीन हेट्रोलॉगस वैक्सीन हैं। इनकी इफिकेसी 60 से 70 फीसदी तक है। आईसीएआर द्वारा विकसित वैक्सीन लंपी वायरस के लिए ही बना है और वह होमोलोगस वैक्सीन है, जिसके चलते यह शतप्रतिशत सुरक्षा देता है। गोट पॉक्स वायरस (जीपीवी), शीप पॉक्स वायरस (एसपीवी) और लंपी स्किन रोग (एलएसडी) वायरस तीनों कैपरीपॉक्स वायरस हैं और जेनेटिकली काफी करीब हैं। इसे एक जेनस या फैमिली वायरस भी कहा जाता है। ऐसे में जब तक लंपी प्रोवैक इंड वैक्सीन उपलब्ध नहीं है तब तक बेहतर होगा कि गोट पॉक्स वैक्सीन के साथ शीप पॉक्स वैक्सीन को भी लगाने की अनुमति देनी चाहिए। वैक्सीन की अनुमति एनीमल हसबैंडरी कमिश्नर (सीएएच) द्वारा दी जाती है। केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर और पशुपालन एवं डेयरी मंत्री परषोत्तम रूपाला ने 10 अगस्त, 2022 को एलएसडी के लिए लंपी प्रोवैक इंड वैक्सीन को रिलीज किया था। लेकिन अभी इसके इमरजेंसी उपयोग की अनुमति नहीं मिली है। इस वैक्सीन को विकसित करने की प्रक्रिया पर रूरल वॉयस ने तीन सितंबर को एक विस्तृत रिपोर्ट प्रकाशित की थी, जिसे इस लिंक को क्लिक कर पढ़ा जा सकता है। https://www.ruralvoice.in/latest-news/commercial-production-of-indigenously-developed-lumpi-provacind-vaccine-may-start-in-four-to-five-months.html
गोट पॉक्स वैक्सीन का उत्पादन हेस्टर बॉयोसाइंसेज लिमिटेड, अहमदाबाद और इंडियन इम्युनोलॉजिकल्स लिमिटेड, हैदराबाद कर रही हैं। इसके चलते इस वैक्सीन की उपलब्धता सीमित है और यही वजह है कि बड़े पैमाने पर गौवंश के एलएसडी से प्रभावित होने के बावजूद वैक्सीनेशन का काम तेज नहीं हो सका है। वहीं शीप पॉक्स वैक्सीन का उत्पादन करीब दर्जन भर उत्पादकों द्वारा किया जाता है। इनमें हेस्टर बॉयोसाइंसेज लिमिटेड अहमदाबाद, इंडियन इम्युनोलॉजिकल लिमिटेड हैदराबाद, बॉयोमेड प्राइवेट लिमिटेड गाजियाबाद, वेटरीनरी बॉयोलॉजिकल्स एंड रिसर्च इंस्टीट्यूट हैदराबाद, आईएएचवीबी बंगलुरू, ब्रिलिएंट बॉयोफार्मा प्राइवेट लिमिटेड हैदराबाद, बॉयोलॉजिकल प्रॉडक्ट डिवीजन आईवीआरआई इज्जतनगर, हरियाणा वेटरीनरी वैक्सीन इंस्टीट्यूट (एचवीवीआई) हिसार, स्टेट वेटरीनरी बॉयोलॉजिकल्स जेएंडके, क्रिएटिव बॉयोलैब्स हैदराबाद और स्टेट वेटेरीनरी बॉयोलॉजिकल्स मध्य प्रदेश शामिल हैं।
एक्सपर्ट्स का कहना है कि गोट पॉक्स वैक्सीन और शीप पॉक्स वैक्सीन दोनों एलएसडी से गौवंश को सुरक्षा देने के मामले में समान रूप से प्रभावशाली हैं। ऐसे में जिस स्तर पर गौवंश एलएसडी से प्रभावित है उसे देखते हुए दोनों वैक्सीन की अनुमति देना समय की जरूरत है।
देश में मई-जून में लंपी स्किन रोग फैलना शुरू हुआ था। इसकी चपेट में पहले गुजरात और राजस्थान आये थे। वहीं अब यह दर्जन भर राज्यों में फैल चुका है। पशुपालन और डेयरी विभाग के मुताबिक 31 अगस्त, 2022 तक एलएसडी से करीब 50 हजार गौवंश की मौत हो चुकी थी। इस बारे में रूरल वॉयस ने 2 सितंबर को रिपोर्ट प्रकाशित की थी, जिसे इस लिंक पर क्लिक कर पढ़ सकते हैं। https://www.ruralvoice.in/national/twelve-states-affected-fifty-thousand-animals-died-but-states-are-yet-to-declare-lumpi-skin-disease-a-pandemic.html