कृषि को आधुनिक बनाने की रणनीति विकसित करने की जरूरत, चिंतन शिविर में भविष्य की कार्ययोजना पर हुई चर्चा
जलवायु परिवर्तन के कारण मौसम में अचानक होने वाले बदलाव की वजह से हाल के वर्षों में फसलों को काफी नुकसान पहुंचा है। इस साल भी ऐसा ही देखने में आया है। इसका असर न सिर्फ किसानों और उनकी आमदनी पर पड़ता है बल्कि यह देश की खाद्य सुरक्षा के लिए भी चिंता का कारण है। इसे देखते हुए कृषि को जलवायु अनुकूल बनाने के लिए रणनीतियां विकसित करना समय की जरूरत है। इसके अलावा एकीकृत पोषक तत्व प्रबंधन से जुड़े मुद्दों व चुनौतियों का समाधान करना, उर्वरकों के संतुलित उपयोग को बढ़ावा देना, मृदा की उर्वरता को बढ़ाना और एक अनुकूल-टिकाऊ कृषि प्रणाली की स्थापना करने की जरूरत है।
जलवायु परिवर्तन के कारण मौसम में अचानक होने वाले बदलाव की वजह से हाल के वर्षों में फसलों को काफी नुकसान पहुंचा है। इस साल भी ऐसा ही देखने में आया है। इसका असर न सिर्फ किसानों और उनकी आमदनी पर पड़ता है बल्कि यह देश की खाद्य सुरक्षा के लिए भी चिंता का कारण है। इसे देखते हुए कृषि को जलवायु अनुकूल बनाने के लिए रणनीतियां विकसित करना समय की जरूरत है। इसके अलावा एकीकृत पोषक तत्व प्रबंधन से जुड़े मुद्दों व चुनौतियों का समाधान करना, उर्वरकों के संतुलित उपयोग को बढ़ावा देना, मृदा की उर्वरता को बढ़ाना और एक अनुकूल-टिकाऊ कृषि प्रणाली की स्थापना करने की जरूरत है। नई दिल्ली में आयोजित दो दिवसीय कृषि चिंतन शिविर के उद्घाटन मौके पर कृषि को आधुनिक बनाने सहित भविष्य की कार्ययोजना पर चर्चा की गई।
कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय और कृषि अनुसंधान एवं शिक्षा विभाग (डेयर), भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद् (आईसीएआर) द्वारा आयोजित कृषि पर चिंतन शिविर का शुभारंभ शुक्रवार को केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर, मंत्री कैलाश चौधरी एवं शोभा करंदलाजे तथा नीति आयोग के सदस्य रमेश चंद की उपस्थिति में हुआ। 7-8 जुलाई के इस दो दिवसीय शिविर का उद्देश्य भविष्य की आवश्यकताओं की पूर्ति, निर्यात बढ़ाने और भारतीय कृषि को आधुनिक बनाने जैसे मुद्दों पर विचार-विमर्श कर भविष्य की कार्ययोजना तैयार करना है।
चिंतन शिविर में इन मुद्दों पर भी चर्चा की गई कि वनस्पति संरक्षण के पर्यावरण-अनुकूल दृष्टिकोण में सामंजस्य स्थापित करने के लिए विभिन्न संगठनों-हितधारकों के बीच कैसे तालमेल बनाया जाए। साथ ही कृषि की स्थिरता सुनिश्चित करने के लिए उन्नत प्राकृतिक कृषि प्रणालियों को अपनाना और प्रभावशीलता व ज्यादा से ज्यादा पहुंच बढ़ाने के लिए विस्तार सेवाओं को मजबूत करना व विस्तार प्रणाली के डिजिटलीकरण पर ध्यान केंद्रित करना शामिल है। निर्यात को बढ़ावा देने व निर्यात-उन्मुख आपूर्ति श्रृंखलाओं को मजबूत करने के लिए राज्य-स्तरीय कार्यनीति तैयार करने की जरूरत है। इसके अलावा उत्पादक भागीदारी के माध्यम से कृषि क्षेत्र के हरसंभव हस्तक्षेप में संभावित निजी क्षेत्र का लाभ उठाकर फोकस को 'उत्पादन केंद्रित दृष्टिकोण' से "विपणन केंद्रित दृष्टिकोण" में परिवर्तित करने पर ध्यान दिया जाना चाहिए।
कृषि मंत्री नरेंद्र तोमर ने कहा कि देश में कृषि की अर्थव्यवस्था का महत्वपूर्ण स्थान है। वैश्विक मंदी एवं कोरोना के संकटकाल में भी कृषि क्षेत्र मजबूत बना रहा। इसे सामूहिक प्रयासों से और भी सशक्त बनाया जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री का लक्ष्य वर्ष 2047 तक भारत को विकसित भारत के रूप में प्रतिष्ठित करना है। उसी लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए यह चिंतन किया जा रहा है कि कृषि क्षेत्र में क्या-क्या बढ़ेगा, 2047 में हम कहां खड़े होंगे, उत्पादन क्षमता क्या होगी, उत्पादकता क्या होगी, फसलों के प्रकार क्या होंगे, इस बारे में सोचकर किसानों के साथ समन्वय हमारी जिम्मेदारी है। हमें समग्र रूप से विचार करते हुए तय करना पड़ेगा कि सरकार के काम की दिशा व गति क्या होगी।
कार्यक्रम में केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण राज्य मंत्री कैलाश चौधरी ने कृषि क्षेत्र की कमियों को दूर करते हुए नई टेक्नालॉजी के माध्यम से और तेज प्रगति किए जाने पर जोर दिया। शोभा करंदलाजे ने कहा कि हमें ठोस योजना बनाकर नई पीढ़ी के लिए कृषि क्षेत्र के विकास की सौगात देना है। नीति आयोग के सदस्य प्रो. रमेश चंद, केंद्रीय कृषि सचिव मनोज आहूजा, डेयर के सचिव व आईसीएआर के महानिदेशक डॉ. हिमांशु पाठक ने भी शिविर में अपने विचार रखे।