जनवरी में लंबी चली शीतलहर से सरसों को हुआ नुकसान, रिकॉर्ड बुवाई के बावजूद पैदावार कम रहने की आशंका
जनवरी और फरवरी की शुरुआत में तापमान में आए भारी उतार-चढ़ाव का सरसों के उत्पादन पर प्रतिकूल असर पड़ेगा। शीतलहर के प्रकोप से सरसों की फसल बुरी तरह से प्रभावित हुई है। इस नुकसान का पता तब चलता है जब फसल की कटाई होती है। असल में सर्द हवाओं से प्रभावित पौधों की फली में दाने ही नहीं पड़ते हैं।
तिलहन की मुख्य फसल सरसों की कटाई जल्द ही शुरू होने वाली है। 2022-23 में सरसों की रिकॉर्ड बुवाई के बावजूद बुवाई के मुकाबले पैदावार कम रहने की आशंका है। इसकी वजह जनवरी में लंबे समय तक चली शीतलहर और उस दौरान तापमान सामान्य से ज्यादा कम रहना है। इससे सरसों की फसल को नुकसान हुआ है जिससे उत्पादन पर प्रतिकूल असर पड़ सकता है। सर्द हवाओं ने सरसों को कितना नुकसान पहुंचाया है और पैदावार कितनी कम रहेगी इसका पता तो फसल की पूरी कटाई के बाद ही चलेगा।
भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) के पूर्व उप महानिदेशक, नेचुरल रिसोर्स मैनेजमेंट (एनआरएम) और नेशनल रेनफेड एरिया अथॉरिटी (एनआरए) के पूर्व सीईओ डॉ. जे. एस. सामरा ने रूरल वॉयस से बातचीत में कहा, “जनवरी और फरवरी की शुरुआत में तापमान में आए भारी उतार-चढ़ाव का सरसों के उत्पादन पर प्रतिकूल असर पड़ेगा। शीतलहर के चलते सर्दी के प्रकोप से सरसों की फसल बुरी तरह से प्रभावित हुई है। इस नुकसान का पता तब चलता है जब फसल की कटाई होती है। असल में सर्द हवाओं से प्रभावित पौधों की फली में दाने ही नहीं पड़ते हैं।” डॉ. सामरा ने बताया कि उन्होंने इस संबंध में आईसीएआर के महानिदेशक और रेपसीड एंड मस्टर्ड रिसर्च निदेशालय, भरतपुर के अधिकारियों को भी आगाह किया है। उन्होंने कहा कि सरसों को जो नुकसान होना था वह हो चुका है। अभी यह कहना मुश्किल है कि कितना नुकसान हुआ है लेकिन नुकसान हुआ है। नुकसान का आकलन अगले कुछ दिनों में सरसों की कटाई के बाद ही हो सकेगा।
2 फरवरी को आए बुवाई के अंतिम आंकड़ों के मुताबिक मौजूदा रबी सीजन (2022-23) में 98.02 लाख हेक्टेयर में सरसों की बुवाई हुई है जो 2021-22 के 91.25 लाख हेक्टेयर की तुलना में 6.77 लाख हेक्टेयर ज्यादा है। सरसों की बुवाई रकबे का यह नया रिकॉर्ड है। पिछले रबी सीजन में भी बुवाई का नया रिकॉर्ड बना था जिसकी वजह से पैदावार ने भी नया रिकॉर्ड बनाया था। 2021-22 में 117.46 लाख टन की रिकॉर्ड पैदावार हुई थी। बुवाई रकबे में आए इस तेज उछाल के पीछे सरकार द्वारा सरसों के न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) में अच्छी खासी बढ़ोतरी करने के साथ-साथ बाजार में भी इसकी कीमतें ज्यादा होना है। इसे देखते हुए ही किसानों ने सरसों की ज्यादा बुवाई की है। सरसों की बुवाई और उत्पादन के मामले में राजस्थान पहले नंबर पर है। इस सीजन में बुवाई रकबे में भी सबसे ज्यादा 4.39 लाख हेक्टेयर की बढ़ोतरी वहीं हुई है। 2021-22 के 35.33 लाख हेक्टेयर की तुलना में 2022-23 में 39.72 लाख हेक्टेयर में सरसों की बुवाई है। 2020-21 में 25.66 लाख हेक्टेयर में सरसों बोया गया था। राजस्थान के बाद मध्य प्रदेश में बुवाई के रकबे में सबसे ज्यादा बढ़ोतरी हुई है। यहां बुवाई के रकबे में 2.22 लाख हेक्टेयर की वृद्धि हुई है। चालू सीजन में यहां 14.04 लाख हेक्टेयर में सरसों की बुवाई हुई है जो 2021-22 में 11.72 लाख हेक्टेयर रही थी। 2020-21 की तुलना में यह रकबा लगभग दोगुना है। तब प्रदेश में 7.81 लाख हेक्टेयर में बुवाई की गई थी।
बुवाई के मामले में मध्य प्रदेश इस साल उत्तर प्रदेश को पछाड़ कर दूसरे नंबर पर पहुंच गया है। इसकी वजह उत्तर प्रदेश में बुवाई का रकबा पिछले साल के मुकाबले कम रहना है। 2021-22 में उत्तर प्रदेश में 14.17 लाख हेक्टेयर में सरसों की बुवाई हुई थी जो 2022-23 में घटकर 13.28 लाख हेक्टेयर रह गई है। सरसों के चौथे सबसे बड़े उत्पादक राज्य हरियाणा में भी बुवाई घटी है। यहां चालू सीजन में 7.32 लाख हेक्टेयर में सरसों बोई गई है जो 2021-22 में 7.56 लाख हेक्टेयर रही थी।
सरकार ने रबी मार्केटिंग सीजन 2023-24 के लिए सरसों के एमएसपी को 400 रुपये प्रति क्विंटल बढ़ाकर 5,450 रुपये प्रति क्विंटल कर दिया है। रबी फसलों में यह सबसे ज्यादा वृद्धि है। सरकार का मानना है कि सरसों की खेती के लिए किसानों को प्रति क्विंटल औसतन 2,670 रुपये खर्च करना पड़ता है। खुले बाजार में भी अभी सरसों का भाव 6,000 रुपये प्रति क्विंटल तक चल रहा है। तिलहन फसलों में सरसों की हिस्सेदारी 26 फीसदी है। केंद्रीय कृषि मंत्रालय के आंकड़ों के मुताबिक 2020-21 में सरसों का उत्पादन 102.10 लाख टन रहा था। तब खुले बाजार में सरसों एमएसपी से 50 फीसदी अधिक कीमत पर बिकी थी।