यूक्रेन पर रूस के हमले का असर, भारत के सरसों किसानों को मिल सकती है एमएसपी से काफी ज्यादा कीमत
रूस ने यूक्रेन पर हमला ऐसे समय किया है जब भारत में सरसों की नई फसल आने ही वाली है। दूसरे अग्रिम अनुमान के अनुसार 2021-22 के दौरान देश में सरसों तथा रेपसीड का उत्पादन 101.97 लाख टन के लक्ष्य की तुलना में 114.59 लाख टन रहने का अनुमान
यूक्रेन पर रूस के हमले से कच्चा तेल समेत कई कमोडिटी के दाम बढ़ गए हैं और आगे भी बढ़ने के आसार हैं, लेकिन इस पूरे घटनाक्रम से सरसों के किसानों को काफी फायदा होने की उम्मीद है। दरअसल भारत खाद्य तेलों का बड़ा आयातक है। यूक्रेन से बड़े पैमाने पर सनफ्लावर ऑयल का आयात होता है। युद्ध के कारण आयात बंद होने से आने वाले दिनों में खाद्य तेलों की कीमतें बढ़ सकती हैं। इससे देश में सरसों की खेती करने वाले किसानों को अच्छी कीमत मिलने की उम्मीद है। विशेषज्ञों का कहना है कि किसानों को सरसों की कीमत न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) से काफी ज्यादा मिल सकती है। मार्केटिंग सीजन 2022-23 के लिए सरसों और रेपसीड के लिए एमएसपी 5050 रुपये प्रति क्विटंल तय की गई है। लेकिन बाजार में भी सरसों की कीमतों से इससे काफी अधिक चल रही हैं।
मौजूदा वैश्विक घटनाक्रम से सरकार द्वारा खाद्य तेलों की कीमतों पर नियंत्रण को भी झटका लग सकता है और खाद्य तेलों की कीमतों में तेजी का दौर शुरू होने की स्थिति बन गई है।
रूस ने यूक्रेन पर हमला ऐसे समय किया है जब भारत में सरसों की नई फसल आने ही वाली है। कृषि मंत्रालय के दूसरे अग्रिम अनुमान के अनुसार 2021-22 के दौरान देश में कुल तिलहन उत्पादन 371.5 लाख टन अनुमानित है। यह 2020-21 के 359.5 लाख टन की तुलना में 12 लाख टन अधिक है। 2021-22 में सरसों तथा रेपसीड का उत्पादन 101.97 लाख टन के लक्ष्य की तुलना में 114.59 लाख टन रहने का अनुमान है। सनफ्लावर का उत्पादन 3.14 लाख टन के लक्ष्य के मुकाबले 2.66 लाख टन रहने के आसार हैं।
भारत में हर साल करीब 25 लाख टन सनफ्लावर ऑयल की खपत होती है। पाम, सोयाबीन और सरसों/ रेपसीड के बाद चौथी सबसे ज्यादा खपत सनफ्लावर ऑयल की ही होती है। लेकिन इसका घरेलू उत्पादन मुश्किल से 50,000 टन के आसपास है। बाकी जरूरत आयात से पूरी होती है। देश में पाम ऑयल की सालाना खपत करीब 80 लाख टन, सोयाबीन ऑयल की 45 लाख टन और सरसों/रेपसीड की 30 लाख टन के आसपास है।
सॉल्वेंट एक्सट्रैक्टर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष अतुल चतुर्वेदी ने रूरल वॉयस को बताया कि यूक्रेन से हर महीने करीब 2.25 लाख टन सनफ्लावर ऑयल का आयात किया जाता है। यह आयात काला सागर के बंदरगाहों के जरिए होता है और उधर अभी रूस की सेना तैनात है। वैसे भी युद्ध ग्रस्त यूक्रेन से फिलहाल आयात की कोई उम्मीद नहीं है। इस हालात में जहाजों का बीमा प्रीमियम भी काफी बढ़ जाता है। चतुर्वेदी के अनुसार रूस से भी आयात में दिक्कत होगी क्योंकि अमेरिका और पश्चिमी देशों के प्रतिबंध के चलते एलसी खुलने में दिक्कत आएगी। उन्होेंने बताया कि सनफ्लावर ऑयल का आयात अर्जेंटीना से भी होता है लेकिन उसकी मात्रा बहुत कम होती है। अर्जेंटीना यूक्रेन का विकल्प नहीं बन सकता है। उन्होंने कहा कि यह स्थिति भारत के सरसों किसानों के लिए अच्छी कही जा सकती है, क्योंकि उन्हें एमएसपी से काफी अधिक कीमत मिलने की उम्मीद है। सरसों का न्यूनतम समर्थन मूल्य 5050 रुपए प्रति क्विंटल है जबकि राजस्थान की मंडियों में यह अभी 6700 रुपए प्रति क्विंटल से अधिक पर बिक रही है।
वाणिज्य मंत्रालय के अनुसार वित्त वर्ष 2019-20 में देश में 25 लाख टन सनफ्लावर ऑयल का आयात हुआ। 2020-21 में आयात 22 लाख टन का रहा। मूल्य के लिहाज से देखें तो आयात क्रमशः 1.89 अरब डॉलर और 1.96 अरब डॉलर का रहा। 2019-20 में यूक्रेन से आयात 19.3 लाख टन का और 2020-21 में 17.4 लाख टन का रहा। इस दौरान रूस से क्रमशः 3.8 लाख टन और 2.8 लाख टन सनफ्लावर ऑयल आयात किया गया। कुछ आयात अर्जेंटीना से भी हुआ- 2019-20 में 1.7 लाख टन और 2020-21 में 1.4 लाख टन।
वैसे सनफ्लावर ऑयल की कीमत रूस के हमले से पहले ही बढ़ने लगी थी। 23 फरवरी को कच्चे सनफ्लावर ऑयल की मुंबई में आयातित कीमत 1630 डॉलर प्रति टन थी। एक सप्ताह पहले यह 1500 डॉलर और एक साल पहले 1400 डॉलर के आसपास थी। सनफ्लावर ऑयल के साथ दूसरे खाद्य तेल भी महंगे होने लगे हैं। मुंबई में पाम ऑयल की आयातित कीमत 1810 डॉलर और सोयाबीन ऑयल की 1777 डॉलर प्रति टन थी। एक सप्ताह पहले यह क्रमशः 1545 और 1625 डॉलर तथा एक साल पहले 1090 और 1125 डॉलर प्रति टन के आसपास थी।