मानसून सामान्य से 2 फीसदी अधिक बरसा, लेकिन 25 फीसदी क्षेत्र में कम बारिश
2024 के मानसून में अब तक देश में 2 फीसदी अधिक बारिश हुई है, लेकिन 25 फीसदी क्षेत्र में कमी दर्ज की गई है। मौसम विभाग ने बताया कि जलवायु परिवर्तन के कारण मानसून में उतार-चढ़ाव बढ़ देखने को मिल रहा है।
देश में मानसून की औसत बारिश अब तक 2 फीसदी अधिक रही है। 1 जून से 30 जुलाई, 2024 तक देश में 453.8 मिलीमीटर (मिमी) बारिश दर्ज की गई, जो सामान्य के 445.8 मिमी के मुकाबले दो फीसदी अधिक है। हालांकि, देश के 25 फीसदी हिस्से में बारिश कम रही है, जिससे मौसम का मिला-जुला असर देखने को मिला है। देश के कई हिस्सों में भारी बारिश ने तबाही मचाई है। हिमाचल, उत्तराखंड, केरल समेत कई राज्यों में भारी बारिश और भूस्खलन से काफी नुकसान हुआ है। वहीं, कई हिस्सों में बारिश नहीं होने से सीधे तौर पर खेती-किसानी के कार्य प्रभावित हुए हैं। कम बारिश वाले क्षेत्रों में खरीफ फसलों की बुवाई में देरी हुई और सूखे के चलते समय पर सिंचाई नहीं हो पाई।
जुलाई में सामान्य से 9 फीसदी अधिक बरसे बादल
भारतीय मौसम विभाग (आईएमडी) के निदेशक मृत्युंजय महापात्रा ने गुरुवार को बताया कि जून में कम बारिश होने से देश में सूखे की स्थिति रही, लेकिन जुलाई में सामान्य से अधिक बारिश ने इस कमी को पूरा किया। उन्होंने कहा कि जुलाई में भारत में सामान्य से 9 फीसदी अधिक बारिश दर्ज की गई। मध्य भारत में लगातार तीसरे साल मानसून के दौरान अच्छी बारिश हुई है, जो कृषि के लिए लाभकारी साबित हो रही है। मध्य भारत में जुलाई में 33 फीसदी अधिक बारिश हुई।
महापात्रा ने कहा कि जुलाई में पूर्वी उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड, गंगीय पश्चिम बंगाल और पूर्वोत्तर के कुछ हिस्सों में काफी कम बारिश हुई। हरियाणा, पंजाब, हिमाचल प्रदेश और जम्मू-कश्मीर में बारिश की कमी 35 फीसदी से 45 फीसदी तक रही। उन्होंने कहा कि गंगा के मैदानी इलाकों और कुछ अन्य क्षेत्रों में भी सामान्य से कम बारिश हुई। जिस वजह से उत्तर-पश्चिम भारत में बारिश का सटीक अनुमान लगाना मुश्किल रहा।
अगस्त-सितंबर में अधिक बारिश का अनुमान
महापात्रा ने कहा कि अगस्त और सितंबर में सामान्य से अधिक बारिश का अनुमान है। अगस्त के अंत तक अनुकूल ला नीना स्थितियों के विकसित होने की संभावना है, जिससे देश में मानसूनी बारिश बढ़ सकती है। उन्होंने कहा कि मानसून का भारतीय कृषि परिदृश्य में महत्वपूर्ण योगदान है, क्योंकि कुल खेती योग्य क्षेत्र का 52 फीसदी हिस्सा बारिश पर निर्भर है। इसके अलावा, देश भर में पेयजल और बिजली उत्पादन के लिए महत्वपूर्ण जलाशयों को फिर से भरने के लिए मानसून की बारिश अहम है। उन्होंने कहा कि अगस्त और सितंबर में भारत में बारिश 422.8 मिमी की लंबी अवधि के औसत का 106 फीसदी होने की संभावना है।
इन क्षेत्रों में कम बारिश की संभावना
महापात्रा ने कहा कि मानसून सीजन के दूसरे हिस्से (अगस्त और सितंबर) में पूर्वोत्तर के कुछ हिस्सों, पूर्वी भारत से सटे लद्दाख, सौराष्ट्र, कच्छ, मध्य और प्रायद्वीपीय भारत के कुछ क्षेत्रों में सामान्य से कम बारिश की संभावना है। पश्चिमी हिमालयी क्षेत्र के कुछ हिस्सों में भी कम बारिश की आशंका जताई गई है। उन्होंने कहा कि देश के अधिकांश हिस्सों में सामान्य से अधिक अधिकतम तापमान रहने की संभावना है, जबकि गंगा के मैदानी इलाकों, मध्य भारत और भारत के दक्षिण-पूर्वी तट के कुछ हिस्सों में सामान्य से कम अधिकतम तापमान रहने की उम्मीद है।
जलवायु परिवर्तन और मानसून की अस्थिरता
महापात्रा ने जलवायु परिवर्तन के कारण मानसून में बढ़ते उतार-चढ़ाव और अस्थिरता के बारे में भी बताया, जिसके चलते चरम मौसम की घटनाओं और शुष्क अवधियों की संभावना बढ़ रही है। उन्होंने कहा कि यह परिवर्तनशीलता मानसून की प्राकृतिक विशेषता है, लेकिन जलवायु परिवर्तन इसे और अधिक अस्थिर बना रहा है।