किसानों को अधिक दाम के बावजूद डेयरी कंपनियों की दूध खरीद घटी, फैट की भी किल्लत, आ सकती है आयात की नौबत
इस स्थिति की मुख्य वजह साल 2020 में कोराना के दौरान असंगठित और निजी क्षेत्र की मांग में भारी गिरावट के चलते किसानों को मिलने वाली दूध की कीमत में आई भारी गिरावट को माना जा सकता है। उस समय 3.5 फीसदी फैट वाले गाय के दूध की कीमत गिरकर 18 से 20 रुपये प्रति लीटर तक पहुंच गई थी
कई साल बाद कोआपरेटिव डेयरी फेडरेशनों और डेयरी कंपनियों द्वारा किसानों को अधिक दाम देने के बावजूद दूध की खरीद में गिरावट का सामना करना पड़ रहा है। इसके चलते पिछले एक साल से भी कम समय में देश सबसे बड़े डेयरी ब्रांड अमूल और मदर डेयरी को दूध की कीमतों में छह से नौ रुपये प्रति लीटर की बढ़ोतरी करनी पड़ी है। ऐसा करीब आठ साल बाद हुआ है। फरवरी, 2022 के बाद से अक्तूबर, 2022 के बीच अमूल ने दिल्ली-एनसीआर में दूध की कीमतों में छह रुपये प्रति लीटर की बढ़ोतरी की जबकि 26 दिसंबर, 2022 की कीमत बढ़ोतरी के साथ इस अवधि में मदर डेयरी के फुल क्रीम की दूध की कीमत में नौ रुपये प्रति लीटर की बढ़ोतरी हुई है। इसी तरह की कीमत वृद्धि दूसरे दूध ब्रांड्स में भी देश के अन्य हिस्सों में हुई है। इस दौरान मिल्क फैट के दाम बढ़ने के चलते कई बड़ी रिटेल चेन व बाजारों में घी के लोकप्रिय ब्रांड्स की उपलब्धता में भारी कमी आई है।
इस स्थिति की मुख्य वजह साल 2020 में कोराना के दौरान असंगठित और निजी क्षेत्र की मांग में भारी गिरावट के चलते किसानों को मिलने वाली दूध की कीमत में आई भारी गिरावट को माना जा सकता है। उस समय 3.5 फीसदी फैट वाले गाय के दूध की कीमत गिरकर 18 से 20 रुपये प्रति लीटर तक पहुंच गई थी। जबकि 6.5 फीसदी फैट वाले भैंस के दूध की कीमत 32 से 33 रुपये प्रति लीटर पर पहुंच गई थी। इस समय डेयरी फेडरेशंस और डेयरी कंपनियां गाय के इसी दूध के लिए 37 से 38 रुपये लीटर और भैंस के दूध के लिए 54 से 55 रुपये प्रति लीटर की कीमत दे रही हैं। इसके बावजूद दूध की खरीद में गिरावट आ रही है।
देश की एक बड़ी डेयरी फेडरेशन के एक पदाधिकारी ने रूरल वॉयस को बताया कि जहां पिछले साल तक दूध की खऱीद में वृद्धि दहाई प्रतिशत में थी, वहीं यह कई राज्यों या तो स्थिर हो गई है या इसमें गिरावट दर्ज की गई है। कर्नाटक और तमिलनाडु में कोआपरेटिव डेयरी फेडरेशनों की दूध खरीद 15 से 20 फीसदी तक कम हुई है। यह स्थिति फ्लश सीजन (जब दूध का उत्पादन अधिक होता है) में है। इसी सीजन में कंपनियां एसएमपी और फैट का उत्पादन कर गर्मियों में उपयोग के लिए स्टॉक करती हैं जो इस बार नहीं हो पा रहा है। अप्रैल के बाद शुरू होने वाले लीन सीजन (दूध उत्पादन घटने का समय) में आपूर्ति में और अधिक गिरावट आएगी।
दूध की आपूर्ति की इस स्थिति के पीछे कोरोना के दौरान किसानों को कम दाम मिलने के चलते उनका पशुओं पर निवेश घटाना मुख्य वजह है। किसानों को दोहरे संकट से गुजरना पड़ा। एक ओर जहां उनको मिलने वाली दूध की कीमत में भारी गिरावट आई, वहीं पिछले दो साल से पशुओं के चारे की कीमतों में भारी बढ़ोतरी दर्ज की गई। इस दौरान खली, हरे चारे और भूसे की कीमतों में भारी इजाफा हुआ। ऐसे में दूध देने वाले पशुओं की नई पीढ़ी का स्वास्थ्य कमजोर रहा और किसानों ने अपने पशुओं की संख्या में भी वृद्धि नहीं की। वहीं जुलाई से सितंबर के बीच गुजरात, राजस्थान, हरियाणा, पश्चिमी उत्तर प्रदेश और महाराष्ट्र में गौवंश में लंपी महामारी के चलते जहां बड़े पैमाने पर पशुओं की मौत हुई वहीं बीमार पशुओं की दूध देने की क्षमता बुरी तरह प्रभावित हुई। इसके चलते भी दूध उत्पादन प्रभावित हुआ।
यही वजह है कि दूध कंपनियों और डेयरी फेडरेशनों को दूध की आपूर्ति बकरार रखने के लिए किसानों को अधिक दाम देना पड़ रहा है। वहीं फ्लश सीजन में अतिरिक्त दूध से स्किम्ड मिल्क पाउडर (एसएमपी) और फैट (घी, मक्खन) का उत्पादन भी प्रभावित हो रहा है। इस स्थिति के चलते देश की बड़ी रिटेल चेन और बाजार में घी के कई बड़े ब्रांड की उपलब्धता कम हो गई है।
दूध की कीमतों में इस तरह की बढ़ोतरी का दौर 2013-14 के बाद पहली बार देखा गया है। उस समय एक साल से भी कम समय के भीतर दूध के बड़े ब्रांड की कीमतों में आठ रुपये की बढ़ोतरी हुई थी। उस समय 2012 के सूखे का असर दूध उत्पादन में कमी और कीमत बढ़ोतरी के रूप में सामने आया था। इस बार यह सिलसिला 28 फरवरी 2022 के बाद से शुरू हुआ। तब से अब तक देश के सबसे बड़े ब्रांड अमूल के फुल क्रीम दूध की दिल्ली-एनसीआर में कीमत 58 रुपये प्रति लीटर से बढ़कर 64 रुपये प्रति लीटर हो गई है। इसमें छह रुपये प्रति लीटर की बढ़ोतरी हुई है। वहीं मदर डेयरी के फुल क्रीम दूध का दाम दिल्ली-एनसीआर में मार्च, 2022 के 57 रुपये प्रति लीटर से बढ़कर 66 रुपये प्रति लीटर पर पहुंच गया है। इसके दाम में 9 रुपये प्रति लीटर की बढ़ोतरी हुई है।
दिल्ली-एनसीआर में अमूल दूध के दाम (रुपये प्रति लीटर)
दाम बढ़ने की तिथि |
फुल क्रीम |
टोंड |
1 मई, 2013 |
42 |
32 |
15 अक्तूबर, 2013 |
44 |
34 |
25 जनवरी, 2014 |
46 |
36 |
9 मई, 2014 |
48 |
38 |
3 जून, 2016 |
50 |
40 |
11 मार्च, 2017 |
52 |
42 |
21 मई, 2019 |
54 |
44 |
15 दिसंबर, 2019 |
56 |
46 |
1 जुलाई, 2021 |
58 |
48 |
1 मार्च, 2022 |
60 |
50 |
17 अगस्त , 2022 |
62 |
52 |
15 अक्तूबर, 2022 |
64 |
52 |
स्रोतः जीसीएमएमएफ
बात सिर्फ दूध की कीमत की ही नहीं है, देश में एसएमपी की कीमत 340 रुपये प्रति किलो और घी की 525 रुपये प्रति लीटर तक पहुंच गई है। कोरोना के दौरान एसएमपी की कीमत गिरकर 140 से 150 रुपये किलो और घी की 280 से 290 रुपये प्रति किलो तक आ गई थी।
एसएमपी और घी की कीमतों में इजाफे की एक बड़ी वजह पिछले साल और चालू साल में देश से एसएमपी और मिल्क फैट का निर्यात भी रहा है। पिछले वित्त वर्ष (2021-22) में भारत से 1281.15 करोड़ रुपये के 33,017.06 टन मिल्क फैट का निर्यात हुआ, जबकि चालू वित्त वर्ष में अप्रैल से नवंबर, 2022 तक 664.82 करोड़ रुपये के 13,359.97 टन मिल्क फैट का निर्यात हुआ है। वैश्विक बाजार में बेहतर दाम और घरेलू बाजार में अधिक उपलब्धता व कम दाम के चलते यह निर्यात संभव हुआ। हालांकि इस समय वैश्विक बाजार में फैट और एसएमपी की कीमत भारतीय बाजार की कीमतों से 20 से 25 फीसदी तक कम चल रही हैं।
डेयरी उद्योग के सूत्र स्वीकार करते हैं कि कोरोना के दौरान किसानों ने पशुपालन पर खर्च कम किया, जिससे दूध उत्पादन प्रभावित हुआ है। इसके साथ ही लंपी रोग के चलते बड़े पैमाने पर गौवंश के प्रभावित होने का भी असर दूध उत्पादन पर हुआ है। यही वजह है कि कंपनियों ने दूध के ब्रिकी मूल्य में कई बार बढ़ोतरी की। यह बढ़ोतरी फ्लश सीजन में भी हुई जब दूध की आपूर्ति उच्च स्तर पर होती है। अप्रैल से लीन सीजन (दूध उत्पादन घटने का समय) शुरू होने पर यह दबाव और बढ़ेगा। इसके साथ ही उनका कहना है कि पिछले एक साल में दूध की कीमतों में की गई बढ़ोतरी के चलते कीमतों में अधिक इजाफे की गुंजाइश नहीं रह गई है। दाम बढ़ाने से मांग प्रभावित हो सकती है।
इन परिस्थितियों में दूध की कीमतों को मौजूदा स्तर पर बरकरार रखने के लिए एसएमपी और बटर ऑयल के आयात की नौबत बनती दिख रही है। वैश्विक बाजार में अभी एसएमपी और फैट की कीमत घरेलू बाजार से काफी कम है। लेकिन आयात शुल्क के चलते इनका आयात फायदेमंद नहीं है। डेयरी उद्योग के सूत्रों का कहना है कि ऐसे में सरकार को नीतिगत फैसला लेना पड़ सकता है। जिसमें घरेलू दूध किसानों के हितों का ध्यान रखते हुए संतुलित कदम उठाना होगा। इसके लिए बेहतर होगा कि अगर जरूरत पड़ती है तो यह आयात नेशनल डेयरी डेवलपमेंट बोर्ड (एनडीडीबी) जैसे सरकारी संस्थान द्वारा किया जाना चाहिए और इसका उपयोग गर्मियों के लिए बफर स्टॉक के रूप में किया जाना चाहिए। उद्योग सूत्रों का कहना है कि इस समय किसानों को बेहतर कीमत मिल रही है, ऐसे में अगले फ्लश सीजन में दूध की आपूर्ति बढ़ने की संभावना है। उसके बाद इस मोर्चे पर स्थिति सामान्य हो जाएगी।