लंपी रोग फिर लौटा, चार राज्यों में फैला, बगैर वैक्सीनेशन के स्थिति बदतर होने की आशंका
पिछले साल मई और जून में देश के दर्जन भर राज्यों में करीब एक लाख गौवंश की बलि लेने वाले लंपी स्किन रोग (एलएसडी) ने इस साल भी दस्तक दे दी है। आने वाले दिनों में इसके तेजी से फैलने की आशंका है क्योंकि यह रोग इसी समय फैलता है। इस समय लंपी रोग का सबसे अधिक असर उत्तराखंड में है। हरियाणा, पंजाब और उत्तर प्रदेश में भी लंपी के हजारों मामले सामने आ रहे हैं।
पिछले साल मई और जून में देश के दर्जन भर राज्यों में करीब एक लाख गौवंश की बलि लेने वाले लंपी स्किन रोग (एलएसडी) ने इस साल भी दस्तक दे दी है। आने वाले दिनों में इसके तेजी से फैलने की आशंका है क्योंकि यह रोग इसी समय फैलता है। इस समय लंपी रोग का सबसे अधिक असर उत्तराखंड में है। हरियाणा, पंजाब और उत्तर प्रदेश में भी लंपी के हजारों मामले सामने आ रहे हैं। पिछले साल देश भर में करीब एक लाख गौवंश की जान जाने और करीब 15 लाख गौवंश के इस बीमारी की चपेट में आने के बावजूद इस पर अंकुश के लिए सरकार ने कोई पुख्ता उपाय नहीं किया है।
भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) के एक वरिष्ठ वैज्ञानिक ने रूरल वॉयस को बताया कि इस साल फिर से इस बीमारी के फैलने की आशंका थी और यह अब हकीकत में बदल रही है। आने वाले दिनों में बीमारी अधिक तेजी से फैल सकती है। इस बीमारी के फैलने का समय मई और जून ही है। करीब आधा दर्जन राज्यों में इसका प्रकोप हम देख रहे हैं।
इस बीमारी को फैलने से रोकने का सबसे पुख्ता उपाय गौवंश का वैक्सीनेशन है। केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर और पशुपालन एवं डेयरी मंत्री परषोत्तम रूपाला ने 10 अगस्त, 2022 को एलएसडी के लिए आईसीएआर द्वारा विकसित लंपी प्रोवैक इंड वैक्सीन रिलीज किया था। यह वैक्सीन अभी भी नियामकीय मंजूरी नहीं मिलने के चलते वैक्सीनेशन के लिए उपलब्ध नहीं है। जबकि इसके उत्पादन के लिए चार कंपनियां टेक्नोलॉजी ले चुकी हैं। आईसीएआर के वैज्ञानिक का कहना है कि अगर लंपी प्रोवैक इंड वैक्सीन का उत्पादन करने की अनुमति समय पर मिल जाती और पशुओं में इसका वैक्सीनेशन किया जाता तो साल भर बाद दोबारा फैल रही इस बीमारी पर अंकुश लगने की संभावना बढ़ जाती।
अभी तक सरकार ने लंपी स्किन रोग से बचाव के लिए गोट पॉक्स वैक्सीन की ही इजाजत दी है। इसके जरिये पशुओं का देश में वैक्सीनेशन भी किया गया। मगर आईसीएआर एक एक वरिष्ठ वैज्ञानिक का कहना है कि गोट पॉक्स इसके लिए पूरी तरह से प्रभावी वैक्सीन नहीं है। इसे एक ऐसी स्थिति में उपयोग किया गया जब कोई दूसरा वैक्सीन उपलब्ध नहीं था। गोट पॉक्स वैक्सीन की एफिकेसी 60 से 70 फीसदी है। महाराष्ट्र में पिछले साल सभी गौवंश का शत प्रतिशत वैक्सीनेशन किया गया, इसके बावजूद वहां गौवंश बीमारी से प्रभावित हुआ और हजारों पशुओं की मौत इस बीमारी से हो गई थी।
लंपी के दोबारा फैलने के चलते जहां किसानों को पशुओं की मौत के रूप में भारी आर्थिक नुकसान का सामना करने की आशंका है, वहीं पहले से ही दूध की खऱीद में गिरावट का सामना कर रहे डेयरी उद्योग के लिए एक नए संकट की आहट है। वैसे भी अप्रैल से दूध उत्पादन का लीन सीजन (जब उत्पादन घट जाता है) शुरू हो चुका है। इसलिए लंपी का फैलना उपभोक्ताओं के लिए भी मुश्किलें खड़ी करेगा। दूध के उत्पादन में गिरावट की स्थिति में यह कीमतों में इजाफे का कारक बन सकता है।
लंपी स्किन रोग इंसेक्ट के जरिये पशुओं में फैलता है। बीमार पशु के रक्त को लेकर मच्छर या मक्खी दूसरे पशु पर बैठता है और उसे संक्रमित कर देता है। बीमारी से संक्रमित पशु का दूध उत्पादन तेजी से गिरता है और अधिक बीमार होने पर वह दूध देना बंद कर देता है। इस बीमारी से पशु की मौत भी हो जाती है। लंपी से संक्रमित पशुओं के शरीर पर छोटे-छोटे दानेदार गांठें उभर आती हैं। बाद में इन गांठों में जख्म हो जाता है जो पशुओं के लिए काफी तकलीफदेह है।
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देश में लंपी स्किन रोग 2019 में सबसे पहले ओडिशा में आया था। दुनिया में यह बीमारी सबसे पहले 1929 में अफ्रीका में आई थी लेकिन 2000 में यह खाड़ी के देशों, इजराइल, यूरोप के देशों, रूस, बाल्कन देशों, बांग्लादेश, नेपाल समेत अधिकांश देशों में आ गई थी।
लंपी स्किन रोग (एलएसडी) का कोई इलाज नहीं है और केवल वैक्सीनेशन ही इसका बचाव है। वैज्ञानिकों का कहना है कि देश में करीब 20 करोड़ वैक्सीन की जरूरत है। इसलिए वैक्सीनेशन में तेजी लाई जानी चाहिए। सरकार ने लंपी रोग से बचाव के लिए अभी तक केवल गोट पॉक्स वैक्सीन को पशुओं को लगाने की अनुमति है जबकि इसके देश में केवल दो उत्पादक हैं।