पेट्रोल में 2025-26 तक 20 फीसदी एथेनॉल ब्लेंडिंग के लक्ष्य पर संशयः अरकस रिपोर्ट
रिपोर्ट में कहा गया है ई20 के लक्ष्य को हासिल करने के लिए सरकार ने 2025-26 तक सालाना 13.5 अरब लीटर एथेनॉल की घरेलू जरूरत का अनुमान लगाया है। इसमें से 10.16 अरब लीटर एथेनॉल की यानी 75 फीसदी की जरूरत पेट्रोल में मिश्रण के लिए होगी। बाकी 3.34 अरब लीटर अन्य जरूरतों के लिए चाहिए।
पेट्रोल में 20 फीसदी एथेनॉल मिश्रण का लक्ष्य समय पर पूरा होना लगभग असंभव दिख रहा है। कच्चे तेल पर आयात निर्भरता और वाहनों से निकलने वाले प्रदूषण को कम करने के लिए सरकार ने ई20 का लक्ष्य रखा है जिसके तहत वर्ष 2025-26 तक पेट्रोल में 20 फीसदी एथेनॉल को मिश्रित कर बेचा जाएगा।
अरकस पॉलिसी रिसर्च की “भारत में एथेनॉल का पेट्रोल में मिश्रणः कच्चे माल की उपलब्धता का आकलन (एथेनॉल ब्लेडिंग ऑफ पेट्रोल इन इंडियाः एन एसेसमेंट ऑफ रॉ मैटेरियल एवेलेबिलिटी)” नाम से जारी हालिया रिपोर्ट में आशंका जताई गई है कि ई20 का लक्ष्य समय पर हासिल करना मुश्किल है। रिपोर्ट में कहा गया है ई20 के लक्ष्य को हासिल करने के लिए सरकार ने 2025-26 तक सालाना 13.5 अरब लीटर एथेनॉल की घरेलू जरूरत का अनुमान लगाया है। इसमें से 10.16 अरब लीटर एथेनॉल की यानी 75 फीसदी की जरूरत पेट्रोल में मिश्रण के लिए होगी। बाकी 3.34 अरब लीटर अन्य जरूरतों के लिए चाहिए।
सरकार ने इसके लिए जो अनुमान लगाया है उसमें कहा है कि पेट्रोल में मिश्रण के लिए 5.5 अरब लीटर एथेनॉल की आपूर्ति शुगर इंडस्ट्री से और 4.66 अरब लीटर की आपूर्ति अनाजों से की जाएगी। अनाजों में 2.33 अरब लीटर की आपूर्ति मक्का से और बाकी 2.33 अरब लीटर की आपूर्ति धान (एफसीआई और खुले बाजार) से की जाएगी। जबकि उद्योग जगत सहित अन्य जरूरतों के लिए एथेनॉल की मांग को घरेलू उत्पादन के अलावा आयात और खुले बाजार से अनाजों की खरीद के द्वारा पूरा किया जाएगा।
रिपोर्ट में सरकार के इसी अनुमान पर सवाल उठाते हुए कहा गया है कि एथेनॉल बनाने के लिए सबसे जरूरी फसल गन्ना है। मगर जलवायु परिवर्तन, पानी के इस्तेमाल संबंधी चुनौतियां और चीनी की अंतरराष्ट्रीय कीमतों जैसे कारक ई20 के लक्ष्य को हासिल करने में गन्ने की भूमिका में बाधक बन सकते हैं। साथ ही एथेनॉल की अतिरिक्त मांग के बगैर ही देश में मक्का की कमी है। अल्कोहोलिक बेवरेज इंडस्ट्री, पॉल्ट्री और स्टार्च क्षेत्रों की ओर से ज्यादा मांग के दबाव से एथेनॉल उत्पादकों के साथ मक्का के लिए प्रतिस्पर्धा पैदा होने की संभावना है। इसके अलावा, फसलों एवं पैदावार में उतार-चढ़ाव के बीच मूल्य समानता और मक्का के रकबे को बनाए रखने और बढ़ाने संबंधी बड़ी चुनौतियों का सामना करना पड़ेगा।
रिपोर्ट में कहा गया है कि जहां तक धान से एथेनॉल बनाने की बात है तो पहले यह तय करना पड़ेगा कि चावल की जरूरत भोजन के लिए ज्यादा है या ईंधन के लिए। 2022 में एफसीआई ने लगभग 10 लाख टन चावल एथेनॉल बनाने के लिए सब्सिडी पर डिस्टीलर्स को दिया था। मगर इस बात की गारंटी नहीं है कि लंबी अवधि में डिस्टीलरी को एफसीआई का चावल हमेशा उपलब्ध होता रहेगा। ऐसे में उन्हें खुले बाजार से चावल खरीदना होगा जहां उन्हें अल्कोहल बेवरेज इंडस्ट्री से प्रतिस्पर्धा करनी होगी जो खुले बाजार से खरीद पर बहुत अधिक निर्भर है। इसके अलावा, अनियमित बारिश, सूखा और बढ़ते तापमान का भी खतरा है।
रिपोर्ट जारी करने के मौके पर नीति आयोग के सदस्य प्रोफेसर रमेश चंद ने कहा कि जहां तक नीति आयोग की पेट्रोल में एथनॉल ब्लेंडिंग पॉलिसी रिपोर्ट की बात है तो वह नीति आयोग की रिपोर्ट नहीं है। यह कैबिनेट सचिव द्वारा नियुक्त अधिकारियों की समिति की रिपोर्ट है। इसलिए नीति आयोग न तो उस रिपोर्ट को सपोर्ट करता है और न ही उसे रिजेक्ट करता है। उन्होंने कहा कि जहां तक देश में एथेनॉल मिश्रण की बात है इस बॉयोफ्यूल का उपयोग करने की शुरूआत के पीछे देश में अतिरिक्त उत्पादन के लिए विकल्प तलाशना था। मसलन, अधिक चीनी उत्पादन के चलते पैदा होने वाली मुश्किल की बजाय अतिरिक्त चीनी का उपयोग एथेनॉल उत्पादन में कर उसे पेट्रोल के साथ मिलाया जाए। एथेनॉल मिश्रण को लेकर अभी रोडमैप बनाया जाना है।
उनके मुताबकि, जहां तक खाद्यान्न से एथेनॉल बनाने की बात है तो उसमें प्राथमिकता के आधार पर पहली प्राथमिकता भोजन है, उसके बाद फीड (चारा) है और तीसरे स्थान पर एथेनॉल का उत्पादन आता है। मक्का से एथेनॉल उत्पादन को लेकर उन्होंने कहा कि हमें अतिरिक्त मक्का के लिए देश में उत्पादकता बढ़ाने की जरूरत है। इस समय मक्का की वैश्विक औसत उत्पादकता छह टन है, जबकि हमारे देश का औसत अभी करीब तीन टन है। उन्होंने कहा कि अगर हम देश में मक्का की उप्पादकता को वैश्विक औसत पर ले जाते हैं तो एथेनॉल में उसके उपयोग की संभावनाएं काफी बेहतर हो जाएंगी। रिपोर्ट में 20 फीसदी एथेनॉल की जरूरत के लिए 71 लाख हेक्टेयर जमीन में गन्ना, चावल और मक्का के उत्पादन के अनुमान पर उन्होंने कहा कि हमें बॉयोफ्यूल के लिए गैर-कृषि भूमि के उपयोग पर विचार करना चाहिए। यह बड़ी मात्रा में उपलब्ध है। साथ ही हमें न्यूट्रिशन से जुड़े मुद्दे, जलवायु परिवर्तन और आर्थिक परिस्थितियों को भी देखना होगा।
उन्होंने कहा कि एथेनॉल उत्पादन को लेकर टेक्नोलॉजी के पक्ष भी समझने की जरूरत है कि क्या नई टेक्नोलॉजी एथेनॉल उत्पादन के नए विकल्प देती है जिसमें एग्री वेस्ट का उपयोग संभव है। रिपोर्ट में एथेनॉल का उत्पादन और उपलब्धता बढ़ाने के लिए नीतिगत बदलाव की जरूरत बताते हुए कई महत्वपूर्ण सुझाव दिए गए हैं। इस रिपोर्ट को श्वेता सैनी, पुलकित खत्री और शिराज हुसैन ने तैयार किया है।
नीतिगत बदलाव के लिए रिपोर्ट में जो महत्वपूर्ण सुझाव दिए गए हैं उनमें भूमि का नियोजन करने और परती जमीन को पुनर्जीवित करने, ईंधन के लिए पानी की उपलब्धता बढ़ाने, किसानों की आमदनी को जोड़ने, एथेनॉल उत्पादन के लिए ज्वार, बाजरा और रागी जैसे दूसरे वैकल्पिक फसलों और कृषि अपशिष्ट, डंठल, पराली आदि का इस्तेमाल करने की बात कही गई है। इसके अलावा पैदावार में निवेश बढ़ाने पर ध्यान देने, स्थानीय डाटा इकट्ठा करने और ब्लेंडिंग लक्ष्य पर दोबारा विचार करने जैसे सुझाव रिपोर्ट में दिए गए हैं।