दलहन, तिलहन की बजाय गेहूं की तरफ बढ़ा किसानों का रुझान, रकबा बढ़ा
दलहन व तिलहन फसलों के सही दाम न मिलने और गेहूं की ऊंची कीमतों के कारण किसानों का रुझान गेहूं की तरफ बढ़ा है।
रबी सीजन की प्रमुख फसल गेहूं की तरफ किसानों का रुझान बढ़ रहा है जबकि दलहन व तिलहन की बुवाई पिछले साल के मुकाबले पिछड़ गई है। 20 दिसंबर तक देश में रबी सीजन की बुवाई के सामान्य रकबे का 93 प्रतिशत कवर हो चुका है। नवंबर में ठंड कम पड़ने के कारण रबी की बुवाई देर से शुरू हुई थी। सर्दियां देर से शुरू होने के कारण रबी बुवाई सीजन लंबा चलेगा। हाल के दिनों में हुई बारिश और तापमान में आई गिरावट गेहूं के लिए फायदेमंद है।
कृषि मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार, 20 दिसंबर तक देश में कुल 590.82 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में रबी फसलों की बुवाई हो चुकी है जो पिछले साल के 590.97 लाख हेक्टेयर क्षेत्र से मामूली कम है। गेहूं का रकबा 2.46 प्रतिशत बढ़कर 312.28 लाख हेक्टेयर हो गया जबकि दलहन की बुवाई में 1.25 लाख हेक्टेयर और तिलहन की बुवाई में 5.67 लाख हेक्टेयर की कमी आई है। दलहन व तिलहन फसलों के सही दाम न मिलने और गेहूं की ऊंची कीमतों के कारण किसानों का रुझान गेहूं की तरफ बढ़ा है।
केंद्र सरकार ने रबी मार्केटिंग सीजन 2024-25 के लिए गेहूं का न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) 2425 रुपये प्रति क्विंटल तय किया है जबकि बाजार में गेहूं का भाव 3000-3200 रुपये प्रति क्विंटल तक पहुंच गया है। राजस्थान और मध्य प्रदेश में राज्य सरकारों ने पिछले सीजन में गेहूं खरीद पर एमएसपी के अलावा बोनस भी दिया था। दूसरी तरफ, प्रमुख तिलहन फसलों सरसों और सोयाबीन के दाम एमएसपी से भी नीचे गिर गये। कमोबेश यही स्थिति कई दलहन फसलों की है जिनका किसानों को सही भाव नहीं मिल पा रहा है। खासतौर से मूंग की कीमतें एमएसपी से कम रही और किसानों को सरकारी खरीद में मूंग बेचने में काफी मुश्किल का सामना करना पड़ा था। यही वजह है कि किसानों को दलहन व तिलहन फसलों से मोहभंग होने लगा है।
तिलहन और दलहन की खरीद धान व गेहूं की तरह सुनिश्चित न होने के कारण भी किसानों को रुझान दलहन व तिलहन फसलों की तरफ से घटा है। इससे दालों और खाद्य तेलों के मामले में आत्मनिर्भरता के प्रयासों को झटका लगेगा।
तिलहन का क्षेत्र 5.62 फीसदी घटा
20 दिसंबर तक देश में 95.22 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में रबी तिलहन फसलों की बुवाई हुई जो पिछले साल की समान अवधि के मुकाबले 5.62 फीसदी कम है। सबसे ज्यादा 5.58 फीसदी की गिरावट सरसों की बुवाई में आई है जबकि मूंगफली का रकबा पिछले साल से 7.38 फीसदी घटा है। सरसों का रकबा 93.73 लाख हेक्टेयर से घटकर 88.50 लाख हेक्टेयर रह गया जबकि मूंगफली का रकबा 3.12 लाख हेक्टेयर से घटकर 2.89 लाख हेक्टेयर रह गया। यह स्थिति तब है जब घरेलू खपत की करीब 60 फीसदी जरूरत खाद्य तेलों के आयात के पूरी हो रही है।
दलहन की बुवाई एक फीसदी कम
रबी दलहन की बुवाई का क्षेत्र पिछले साल के 126.89 लाख हेक्टेयर से करीब एक फीसदी घटकर 125.64 लाख हेक्टेयर रह गया है जबकि देश में रबी दलहन का औसत क्षेत्र 140.44 लाख हेक्टेयर है। दालों के सस्ते आयात के कारण किसानों को सही भाव नहीं मिल पा रहा है और कई दालों के भाव एमएसपी से नीचे चल रहे हैं।
दलहन फसलों में सिर्फ चने का रकबा पिछले साल से अधिक है। पिछले सीजन में चना की कीमतें एमएसपी से ऊपर रही थी। रबी मूंग की बुवाई क्षेत्र 1.52 लाख हेक्टेयर से घटकर 52 हजार हेक्टेयर और उड़द का क्षेत्र 4.28 लाख हेक्टेयर से घटकर 3.58 लाख हेक्टेयर रह गया है। चने का रकबा करीब दो फीसदी बढ़कर 86 लाख हेक्टेयर तक पहुंच गया, लेकिन मसूर का रकबा 4 प्रतिशत घटकर 17.06 लाख हेक्टेयर रह गया है।
मोटे अनाजों का क्षेत्र 2.5 फीसदी कम
रबी सीजन में श्रीअन्न एवं मोटे अनाजों की बुवाई का क्षेत्र पिछले साल के 46.01 लाख हेक्टेयर से घटकर 44.84 लाख हेक्टेयर रह गया है। एथेनॉल उत्पादन के लिए काफी मांग के बावजूद मक्का की बुवाई के क्षेत्र में 4.1 प्रतिशत की गिरावट आई है जबकि जौ का रकबा 17.42 प्रतिशत घटकर 6.62 लाख हेक्टेयर रह गया है। हालांकि, ज्वार का रकबा करीब 4 फीसदी बढ़ाकर 21.43 लाख हेक्टेयर तक पहुंच गय है।