आखिर सुबह से शाम तक कैसे बदल गए चावल उत्पादन अनुमान के आंकड़े
शुक्रवार की सुबह खाद्य मंत्रालय ने बताया कि धान की बुवाई 38.06 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में कम हुई है, इसलिए उत्पादन 100 लाख टन कम रह सकता है। यही नहीं, हालात ज्यादा बिगड़े तो उत्पादन 120 लाख टन घट सकता है। लेकिन शाम को खाद्य एवं सार्वजनिक वितरण विभाग के सचिव सुधांशु पांडेय ने कहा कि घरेलू उत्पादन में 60-70 लाख टन कमी का अनुमान है, हालांकि कुछ क्षेत्रों में मानसून की अच्छी बारिश के कारण यह कमी 40-50 लाख टन तक सीमित रह सकती है
लगता है देश में चावल उत्पादन को लेकर सरकार अभी अनिश्चय की स्थिति में है, इसलिए उसके आंकड़ों में एकरूपता नहीं है। शुक्रवार की सुबह खाद्य मंत्रालय ने बताया कि धान की बुवाई 38.06 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में कम हुई है, इसलिए उत्पादन 100 लाख टन कम रह सकता है। यही नहीं, हालात ज्यादा बिगड़े तो उत्पादन 120 लाख टन घट सकता है। लेकिन शाम को खाद्य एवं सार्वजनिक वितरण विभाग के सचिव सुधांशु पांडेय ने कहा कि घरेलू उत्पादन में 60-70 लाख टन कमी का अनुमान है, हालांकि कुछ क्षेत्रों में मानसून की अच्छी बारिश के कारण यह कमी 40-50 लाख टन तक सीमित रह सकती है। उत्पादन में कमी और घरेलू बाजार में दाम बढ़ने के कारण सरकार ने गुरुवार को गैर-बासमती चावल निर्यात पर 20 फीसदी सीमा शुल्क लगाया और फिर शुक्रवार को टूटे (ब्रोकन) चावल के निर्यात को मुक्त से प्रतिबंधित श्रेणी में डाल दिया।
करीब दो सप्ताह पहले केंद्र सरकार ने रिकॉर्ड चावल उत्पादन अनुमान के आंकड़े जारी किए थे। यही नहीं, उसने चालू कृषि उत्पादन सीजन 2022-23 में रिकॉर्ड 32.8 करोड़ खाद्यान्न उत्पादन का लक्ष्य भी रखा है। लेकिन उसके अगले ही दिन उसने चावल निर्यात को हतोत्साहित करने के कदमों की घोषणा कर दी। इससे पहले अप्रैल में जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा था कि अगर डब्लूटीओ अनुमति दे तो भारत पूरी दुनिया को खिला सकता है, उसके बाद सरकार ने गेहूं का निर्यात रोक दिया था।
खाद्य सचिव पांडेय की तरफ से शुक्रवार को जारी बयान के मुताबिक खरीफ सीजन 2022 के लिए धान के रकबे और उत्पादन में संभावित कमी लगभग 6 प्रतिशत है। 2021 में खरीफ के लिए अंतिम रकबा 403.58 लाख हेक्टेयर था। अभी तक 325.39 लाख हेक्टेयर का रकबा कवर किया जा चुका है।
बयान के मुताबिक चावल की घरेलू कीमतों में वृद्धि का रुझान दिखाई दे रहा है। यही नहीं, धान के लगभग 100 लाख टन कम उत्पादन अनुमान और पिछले वर्ष की समान अवधि की तुलना में गैर बासमती के निर्यात में 11 प्रतिशत की वृद्धि के कारण कीमतों में तेजी भी जारी रह सकती है। हालांकि उनका यह भी कहना है कि भारत अभी चावल उत्पादन में अधिशेष की स्थिति में है।
पढ़ें… सरकार ने ब्रोकन राइस के निर्यात पर प्रतिबंध लगाया
https://www.ruralvoice.in/latest-news/government-banned-broken-rice-export.html
कीमतों में वृद्धि के अलावा टूटे चावल का निर्यात प्रतिबंधित करने के दो और कारण बताए गए हैं। इसमें कहा गया है कि सिर्फ चीनी आधारित फीड स्टॉक 2025 तक 20 प्रतिशत एथनॉल ब्लेंडिंग के लिए 1100 करोड़ लीटर एथनॉल की आवश्यकता की पूर्ति के लिए पर्याप्त नहीं है। एथनॉल सीजन 2018-19 में भारत ने अनाज आधारित एथनॉल और 2020-21 में टूटे चावल से एथनॉल बनाने की अनुमति दी थी। लेकिन इस साल टूटे चावल की कम उपलब्धता के कारण डिस्टिलरियों की तरफ से 21 अगस्त तक 36 करोड़ लीटर की अनुबंधित मात्रा के मुकाबले केवल 16.36 करोड़ लीटर एथनॉल की आपूर्ति ही की गई है।
एक और कारण पोल्ट्री सेक्टर पर प्रभाव को बताया गया है। बयान के मुताबिक अंतरराष्ट्रीय बाजार में दाम बढ़ने से टूटे चावल की घरेलू कीमत जो खुले बाजार में 16 रुपये प्रति किग्रा थी, बढ़कर 22 रुपये हो गई है। पोल्ट्री सेक्टर तथा पशुपालक किसानों पर इसका सबसे अधिक प्रभाव पड़ा क्योंकि पोल्ट्री आहार के लिए लगभग 60-65 प्रतिशत इनपुट लागत टूटे चावल से आती है। इसकी कीमतों में कोई भी वृद्धि दूध, अंडे, मांस आदि जैसे पोल्ट्री उत्पादों में परिलक्षित होगी।
पढ़ें… घरेलू कीमतों पर अंकुश के लिए गैर बासमती चावल निर्यात पर 20 फीसदी सीमा शुल्क लगाने का फैसला