बिना सब्सिडी वाले उर्वरकों को विनियंत्रित करने पर विचार

मौजूदा परिस्थिति में सरकार यूरिया और डीएपी जैसे उत्पादों को विनियंत्रित करने की स्थिति में तो नहीं है लेकिन बिना सब्सिडी वाले लिक्विड उर्वरकों के संबंध में इस तरह का कदम उठा सकती है। इस बारे में एक प्रस्ताव पर चर्चा चल रही है

बिना सब्सिडी वाले उर्वरकों को विनियंत्रित करने पर विचार
प्रतिकात्मक फोटो

लोक सभा चुनावों के पहले प्रधानमंत्री मोदी ने मंत्रालयों से नई सरकार के पहले 100 दिनों का एजेंडा बनाने को कहा था। उर्वरक मंत्रालय ने अपने 100 दिन के एजेंडा में सब्सिडी में कटौती से लेकर यूरिया और डीएपी जैसे समेत तमाम उर्वरकों की कीमतों में बढ़ोतरी जैसे कदमों को शामिल किया था।  लेकिन लोक सभा चुनाव में नतीजे भाजपा के मुताबिक नहीं आने और गठबंधन की सरकार  के चलते किसानों पर बोझ डालने वाले कदम उठाये की संभावना काफी कम रह गई है। ऐसे में उर्वरक सुधारों के मोर्चे पर बिना सब्सिडी वाले स्पेशियलाइज्ड उर्वरकों और लिक्विड उर्वरकों की मंजूरी प्रक्रिया को आसान बनाने और विनियंत्रित करने जैसे फैसलों की संभावना बन रही है। 

नई सरकार के पहले 100 दिन के एजेंडा में यूरिया और यूरिया गोल्ड की कीमतों को तर्कसंगत बनाने की बात शामिल थी। वहीं डीएपी और दूसरे कॉम्पलेक्स उर्वरकों की कीमतों को भी तर्कसंगत यानी रेशनलाइज करने की बात कही गई है। यहां कीमतों को तर्कसंगत करने का सीधा मतलब कीमत वृद्दि से है। लेकिन अब जहां सरकार राजनीतिक रूप से बहुत मजबूत नहीं है और अक्तूबर में महाराष्ट्र और हरियाणा जैसे कृषि के लिए महत्वपूर्ण स्थान रखने वाले राज्यों में विधान सभा चुनाव हैं तो सरकार यूरिया या डीएपी जैसे उर्वरकों की कीमतों में किसी भी तरह  के इजाफे से बचेगी क्योंकि उससे राजनीति  नुकसान हो सकता है।

वहीं वैश्विक बाजार में यूरिया के दाम कम होने से सब्सिडी के मोर्चे पर सरकार के लिए स्थिति अब बेहतर है। यूरिया की आयात कीमत (सीएफआर) घटकर 350 डॉलर प्रति टन के आसपास आ गई है। रूस यूक्रेन युद्ध के बाद 2022 में यूरिया की कीमतें  900 डॉलर प्रति टन तक चली गई थी। वहीं डीएपी के कच्चे माल सल्फ्यूरिक एसिड की कीमत 1700 डॉलर प्रति टन को पार कर गई थी। ऐसे में सरकार को सब्सिडी के मोर्चे पर पहले अधिक राहत है। उर्वरकों की घटती कीमतों के चलते ही उर्वरक सब्सिडी 2022-23 के 251,339.36 करोड़ रुपये से घटकर 2023-24 में 189487.44 करोड़ रुपये पर आ गई थी। वहीं चालू वित्त वर्ष (2024-25) के अंतरिम बजट में सरकार ने 163,999.80 करोड़ रुपये की उर्वरक सब्सिडी का प्रावधान किया है।

सरकार के प्रावधानों के मुताबिक यूरिया को छोड़कर न्यूट्रिएंट आधारित सब्सिडी (एनपीएस) स्कीम के तहत आने वाले उर्वरकों की कीमतें विनियंत्रित हैं लेकिन सरकार ने कॉम्पलेक्स उर्वरकों की कीमत को तय स्तर पर रखने के लिए अनौपचारिक रूप से उर्वरक कंपनियों को निर्देश दे रखा है। यही वजह है कि आयात लागत अधिक होने के बावजूद कंपनियों ने डीएपी की अधिकतम खुदरा बिक्री कीमत (एमआरपी) को 27000 रुपये टन, एमओपी की कमत को 30000 से 31000 रुपये प्रति टन और एसएसपी की कीमत को 11000 रुपये टन पर रखा है। वहीं उर्वरक कंपनियों को मुनाफे को तर्कसंगत स्तर पर रखने के भी निर्देश हैं। उद्योग सूत्रों का कहना है कि डीएपी की मौजूदा वैश्विक कीमतों पर भी उन्हें नुकसान उठाना पड़ रहा है।

वहीं यूरिया की एमआरपी सरकार ने नवंबर, 2012 से 5360 रुपये प्रति टन के स्तर पर ही स्थिर रखी है। सब्सिडी के तहत आने वाले 29 उर्वरकों में करीब 94 फीसदी बिक्री यूरिया, डीएपी, एसएसपी,एमओपी समेत सात उर्वरकों की ही होती है। 

मौजूदा राजनीतिक परिदृष्य में सरकार के पास उर्वरकों के मोर्चे पर सुधार के लिए जो विकल्प हैं उनमें बिना सब्सिडी वाले उर्वरकों को बढ़ावा देने वाले कदम शामिल हैं। इनके तहत स्पेशियलाइज्ड उर्वरकों की मंजूरी प्रक्रिया को आसान बनाया जा सकता है जिसकी उद्योग लगातार मांग करता रहा है। भारत में उर्वरक उत्पादों की मंजूरी प्रक्रिया काफी लंबी है। वर्ल्ड बैंक की 2019 की रिपोर्ट के मुताबिक भारत में मंजूरी प्रक्रिया में 804 दिन लगते हैं। जबकि रूस में 570 दिन, ब्राजील में 528 दिन, पाकिस्तान में 356 दिन, चीन में 270 दिन, कनाडा में 225 दिन, अर्जेंटीना में 120 दिन, थाइलैंड में 100 दिन, अमेरिका में 90 दिन, जापान में 30 दिन और यूरोपीय यूनियन में इसकी अवधि रिपोर्ट में शून्य बताई गई है।

भारत में आवेदन करने और फर्टिलाइजर कंट्रोल ऑर्डर जारी होने तक की प्रक्रिया को उद्योग काफी लंबी और थकाऊ बताता रहा है। उद्योग का तर्क है कि न्यूट्रिएंट के मानक पूरा करने वाले उत्पादों के मामले में इस अवधि को घटाया जाता है तो बाजार में अधिक उर्वरक उत्पाद उतारे जा सकते हैं और किसानों को इसका फायदा होगा। वहीं एक तर्क यह है कि सरकार सब्सिडी वाले उर्वरकों की खपत कम करने के लिए वाटर साल्यूबल फर्लिटाइजर्स (डब्लूएसएफ) की तर्ज पर स्पेशियलाइज्ड उर्वरकों की मंजूरी प्रकिया को सरल करती है तो सब्सिडी वाले उर्वरकों की खपत कम होगी।

सरकार ने अक्तूबर 2015 में जनरल स्पेसिफिकेशन के मानकों को पूरा करने वाले वाटर साल्यूबल फर्टिलाइजर (डब्लूएसएफ) को ऑटोमैटिक रजिस्ट्रेशन का प्रावधान कर दिया था। इसके चलते कई कंपनियों ने करीब 100 डब्लूएसएफ उत्पाद बाजार में उतारे  हैं। सूत्रों के मुताबिक डब्लूएसएफ की तरह ही न्यूट्रिएंट मानकों को पूरा करने वाले लिक्विड उर्वरकों को ऑटोमैटिक रजिस्ट्रेशन के प्रावधान के तहत लाने का प्रस्ताव सरकार के विचाराधीन है। इन उत्पादों में 15 फीसदी न्यूनतम प्राइमरी न्यूट्रिएंट होने का मानक रखा जा सकता है।

मौजूदा परिस्थिति में सरकार यूरिया और डीएपी जैसे उत्पादों को विनियंत्रित करने की स्थिति में तो नहीं है लेकिन गैर सब्सिडी वाले लिक्विड उर्वरकों के संबंध में इस तरह का कदम उठा सकती है। 

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