प्याज की महंगाई रोकने के लिए सरकार ने कमर कसी, बफर स्टॉक पर दारोमदार
साल 2015-16 में प्याज का बफर स्टॉक बनाने की शुरुआत की थी। पिछले तीन साल से बफर स्टॉक के लिए प्रतिवर्ष दो-दो लाख टन से अधिक प्याज की खरीद हो रही है। हाल के वर्षों में प्याज की कीमतों को थामने में यह रणनीति काफी कारगर साबित हुई है।
प्याज की महंगाई पर काबू पाने इस साल भी केंद्र सरकार के लिए चुनौती बना हुआ है। सरकार के सामने प्याज उत्पादक किसानों की नाराजगी से बचने और उपभोक्ताओं को प्याज की बढ़ती कीमतों की मार से बचाने की दोहरी चुनौती है। ऐसे में पूरा दारोमदार बफर स्टॉक के लिए 5 लाख टन प्याज की खरीद पर है। केंद्र सरकार की मूल्य स्थिरीकरण योजना के तहत यह बफर स्टॉक बनाया जाता है।
केंद्रीय उपभोक्ता मामले विभाग ने 2024-25 के लिए सहकारी संस्थाओं नेफेड और एनसीसीएफ को ढाई-ढाई लाख टन प्याज की खरीद का लक्ष्य दिया है। ये नोएड एजेंसियां मंत्रालय द्वारा निर्धारित प्रक्रिया के अनुसार किसानों, किसान उत्पादक संगठनों (एफपीओ), किसान उत्पादक कंपनियों (एफपीसी) और सहकारी समितियों (पैक्स) को वरीयता देते हुए इनके माध्यम से प्याज की खरीद करती हैं।
उपभोक्ता मामलों के विभाग ने 2015-16 में प्याज का बफर स्टॉक बनाने की शुरुआत की थी। पिछले तीन साल से बफर स्टॉक के लिए प्रतिवर्ष दो-दो लाख टन से अधिक प्याज की खरीद हो रही है। हाल के वर्षों में प्याज की कीमतों को थामने में यह रणनीति काफी कारगर साबित हुई है। क्योंकि बाजार में हस्तक्षेप के लिए सरकार के पास प्याज का पर्याप्त स्टॉक रहता है। इसी के बूते लोकसभा चुनाव से पहले सरकार प्याज की कीमतों पर काबू पाने में कामयाब रही थी।
खरीद प्रक्रिया में कई बदलाव
बफर स्टॉक के लिए प्याज खरीद के लिए नेफेड ने पहली बार ए ग्रेड प्याज के लिए 63 फीसदी रिकवरी का बेंचमार्क रखा है। पिछले वर्ष यह 56 फीसदी था। उससे पहले बेंचमार्क रिकवरी दर 45-50 फीसदी के बीच रहती थी। रिकवरी दर बढ़ने से पांच लाख टन के बफर में 90,000 टन अधिक प्याज की उपलब्धता सुनिश्चित हुई है। इससे सरकार को करीब 500 करोड़ रुपए की बचत होगी और बाजार में हस्तक्षेप के लिए अतिरिक्त स्टॉक होगा। पिछले साल जहां प्याज की औसत दर 16.93 रुपये प्रति किलोग्राम थी, वहीं इस साल लगभग 29.5 रुपये प्रति किलोग्राम पर खरीद हो रही है। खरीद का भुगतान किसानों को डीबीटी के माध्यम से किया जा रहा है।
बफर स्टॉक के लिए प्याज की खरीद की व्यवस्था में और भी कई बदलाव किए गये हैं। प्याज की खरीद मंडियों की बजाय सीधे किसानों, एफपीओ, एफपीसी या पैक्स से की जा रही है। प्याज खरीद के लिए कीमतें हर सप्ताह मंत्रालय द्वारा तय होती हैं। इससे प्याज खरीद में मंडियों और आढ़तियों की भूमिका घटी है और कीमतों में उतार-चढ़ाव की उनकी क्षमता भी प्रभावित हुई है।
प्याज की कीमतों पर उतार-चढ़ाव पर अंकुश लगाने में कृषि मंत्रालय की मार्केट इंटरवेंशन स्कीम और खाद्य प्रसंस्करण मंत्रालय की टॉप स्कीम के नाकाम होने के बाद केंद्र सरकार का पूरा दारोमदार अब नेफेड और एनसीसीएफ के जरिए बफर स्टॉक बनाने पर है। इस वर्ष देश में प्याज का उत्पादन पिछले साल की तुलना में 20-25 फीसदी कम रहने की आशंका है। अभी से महानगरों में प्याज के दाम 60-70 रुपये किलो तक पहुंच गये हैं। ऐसे में बफर स्टॉक के लिए पर्याप्त खरीद महत्वपूर्ण हो जाती है।
प्याज खरीद पर विवाद
बफर स्टॉक के लिए प्याज की खरीद को लेकर हाल में कुछ विवाद उठे हैं। महाराष्ट्र में केंद्रीय एजेंसियों नेफेड और एनसीसीएफ के लिए प्याज की खरीद में अनियमितता के आरोप लग रहे हैं। असल में यह पूरा विवाद मंडी से खरीद बनाम किसानों या एफपीओ से सीधे खरीद को लेकर है। बफर स्टॉक के लिए प्याज की खरीद से मंडी के व्यापारियों की कीमतों में उतार-चढ़ाव की क्षमता प्रभावित हुई है। लेकिन सरकारी एजेंसियों की खरीद का कितना लाभ किसानों को मिल पा रहा है, इसका आकलन भी जरूरी है। बफर के लिए खरीद में किसानों की बजाय व्यापारियों को फायदा पहुंचाने के आरोप भी लग रहे हैंं।
हालांकि, बफर स्टॉक के लिए मंडियों से प्याज खरीदने में कुछ व्यावहारिक दिक्कतें हैं। मंडी में उपज की गुणवत्ता और बराबर दाम सुनिश्चित करना मुश्किल होता है जबकि सरकारी एजेंसियों को निर्धारित कीमत पर ही खरीद करनी पड़ती है। उन्हें क्वालिटी का भी ध्यान रखना पड़ता है क्योंकि बफर स्टॉक के लिए खरीदा गया प्याज स्टोरेज के लिए होता है, रोजाना खुदरा बिक्री के लिए नहीं।
किसानों के लिए भी खेत से ही एजेंसियों को प्याज की बिक्री में ज्यादा सहूलियत है। उन्हें पहले से पता होता है कि किसी भाव पर प्याज की खरीद होगी। इससे उन्हें उचित फैसला लेने में सहूलियत होती है। दूसरी तरफ मंडी जाने वाले किसानों को कीमत का सही अंदाजा नहीं होता है। क्योंकि मंडियों में रोजाना कीमतों में उतार-चढ़ाव होता है।
कई सवाल
पिछले दो-तीन वर्षों देश में प्याज लॉबी की मजबूत पकड़ को तोड़ने में बफर खरीद से काफी मदद मिली है। लेकिन इसे लेकर कई सवाल भी उठ रहे हैं। यह भी कहा गया है कि सरकारी एजेंसियों के लिए खरीदी गई प्याज का कोई अता-पता नहीं है। हालांकि एजेंसियों का दावा है कि प्याज स्टोरेज की जियो टैगिंग की जाती है जिनकी लोकेशन और पूरा ब्योरा पोर्टल पर उपलब्ध है। स्टोरेज पर क्यूआर कोड लगाए गये हैं जिनमें वजन, जमा करने की तिथि और जिन किसानों से प्याज खरीदा गया उनके नाम दर्ज होते हैं।
महाराष्ट्र के अलावा अन्य राज्यों से भी प्याज खरीद के लिए नेफेड और एनसीसीएफ केंद्रीय उपभोक्ता मामलों के मंत्रालय द्वारा निर्धारित प्रक्रिया को अपना रहा है। लेकिन खरीद में गड़बड़ी के आरोप मुख्यत: महाराष्ट्र में नासिक और आसपास के इलाकों में लग रहे हैं। बफर स्टॉक बनने से सबसे ज्यादा प्रभाव इसी क्षेत्र की प्याज मंडियों पर पड़ा है।
सिर्फ बफर स्टॉक काफी नहीं
जहां तक प्याज की कीमतों में उतार-चढ़ाव के संकट से उबरने का सवाल है तो केवल बफर स्टॉक बनाने से यह पूरी समस्या हल होने वाली नहीं है। इसके लिए कृषि मंत्रालय को प्याज के उत्पादन में बढ़ोतरी और किसानों को उपज का सही दाम दिलावने के उपाय निकालने होंगे। बफर स्टॉक बनाने और एफपीओ से सीधी खरीद से मंडी सिस्टम की पकड़ कुछ ढीली जरूर पड़ी है। लेकिन इस खरीद की अपनी सीमाएं हैं। इसका लाभ सीमित संख्या में किसानों को मिलता है जबकि देश में प्याज के उत्पादन में स्थायित्व के लिए सभी किसानों को उपज का सही दाम मिलना चाहिए। अभी भी प्याज किसानों को मिलने वाले दाम और खुदरा बाजार में उपभोक्ताओं के लिए प्याज के दाम में कई गुना का अंतर है।