गांवों की महिलाओं को सशक्त बनाने से विश्व की जीडीपी 82 लाख करोड़ रुपए बढ़ जाएगीः एफएओ
संयुक्त राष्ट्र के खाद्य एवं कृषि संगठन (एफएओ) की तरफ से जारी एक रिपोर्ट में कहा गया है कि कृषि उत्पादकता और मजदूरी में अगर लैंगिक भेद को खत्म किया जाए तो पूरी दुनिया का सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) एक प्रतिशत बढ़ सकता है। यह लगभग 1 लाख करोड़ डॉलर यानी 82 लाख करोड़ रुपए के बराबर होगा।
अगर लैंगिक समानता और महिला सशक्तीकरण में निवेश किया जाए तो इससे बेहतर आर्थिक विकास और खाद्य सुरक्षा मिलने के साथ लोगों को आमदनी के अवसर मिलेंगे तथा उनका जीवन स्तर बेहतर होगा। खासकर ग्रामीण इलाकों में इसका फायदा मिलेगा जहां सबसे ज्यादा गरीब रहते हैं। संयुक्त राष्ट्र के खाद्य एवं कृषि संगठन (एफएओ) की तरफ से जारी एक रिपोर्ट में कहा गया है कि कृषि उत्पादकता और मजदूरी में अगर लैंगिक भेद को खत्म किया जाए तो पूरी दुनिया का सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) एक प्रतिशत बढ़ सकता है। यह लगभग 1 लाख करोड़ डॉलर यानी 82 लाख करोड़ रुपए के बराबर होगा। एफएओ ने एग्री फूड सिस्टम में महिलाओं की स्थिति पर रिपोर्ट भी जारी की है। इसमें कहा गया है कि लैंगिक समानता से विश्व स्तर पर खाद्य असुरक्षा कम करने में मदद मिलेगी। कम से कम 4.5 करोड़ ज्यादा लोग खाद्य सुरक्षा हासिल कर सकेंगे।
इंटरनेशनल फंड फॉर एग्रीकल्चरल डेवलपमेंट की वाइस प्रेसिडेंट गेरारडिन मुकेशिमाना ने कहा, महिलाओं में निवेश का मतलब है सतत विकास। निवेश पर रिटर्न सिर्फ गरीबी से लड़ने और असमानता दूर करने के रूप में नहीं मिलेगी, बल्कि इससे हमारे संस्थान, हमारी अर्थव्यवस्था और अंततः हमारी कम्युनिटी मजबूत होगी।
एफएओ की डिप्टी डायरेक्टर जनरल मारिया हेलेना सीमेदो ने कहा, खासकर निम्न और मध्य आय वाले देशों में ग्रामीण अर्थव्यवस्था और कृषि खाद्य प्रणाली में महिलाओं की महत्वपूर्ण भूमिका को देखते हुए समावेशी और समान ग्रामीण विकास के लिए लैंगिक भेद को मिटाना महत्वपूर्ण है। इस अंतर को कम करने से न सिर्फ महिलाएं सशक्त होंगी बल्कि इसका उनके परिवार और समुदाय को भी लाभ मिलेगा।
एफएओ के अनुसार एग्री फूड सिस्टम अनेक देशों में महिलाओं के लिए आमदनी का प्रमुख साधन है। एफएओ ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि 2019 में पूरी दुनिया में 36% कामकाजी महिलाएं और 38 प्रतिशत कामकाजी पुरुष एग्री फूड सिस्टम पर निर्भर थे। उप सहारा अफ्रीका में 66% महिलाएं एग्री फूड सिस्टम पर निर्भर हैं जबकि पुरुषों के मामले में यह निर्भरता 60% है। दक्षिण एशिया में 71% महिलाएं एग्री फूड सिस्टम पर निर्भर है जबकि सिर्फ 47% पुरुष एग्री फूड सिस्टम में काम करते हैं।
वैश्विक, क्षेत्रीय और राष्ट्रीय स्तर पर खाद्य सुरक्षा के लिए महिलाओं की भूमिका बेहद महत्वपूर्ण है। इसके बावजूद हमारे भेदभाव वाले सामाजिक तौर-तरीकों के कारण महिलाओं को समान दर्जा नहीं हासिल है। इससे वे भूख और गरीबी से ज्यादा जूझ रही हैं। वर्ष 2022 में 38.8 करोड़ महिलाएं और लड़कियां अत्यधिक गरीबी में जी रही थीं। यही नहीं 27.8% महिलाएं आंशिक या गंभीर रूप से खाद्य असुरक्षा का सामना कर रही थीं। एफएओ के अनुसार कृषि में महिलाओं की आमदनी पुरुषों की तुलना में 18.4% कम होती है। इसके अलावा हीट वेव और बाढ़ जैसी आपदाएं ग्रामीण महिलाओं और पुरुषों को अलग-अलग तरीके से प्रभावित करती हैं। इससे भी दोनों के बीच आमदनी का अंतर बढ़ जाता है।
एफएओ, इंटरनेशनल फंड फॉर एग्रीकल्चरल डेवलपमेंट तथा वर्ल्ड फूड प्रोग्राम की एक साझा रिपोर्ट में बताया गया है कि वर्ष 2030 तक लैंगिक समानता हासिल करने में सबसे बड़ी बाधा फाइनेंसिंग की है। इसमें हर साल 360 अरब डॉलर की कमी है। वर्ष 2020 के बाद कोविड-19 महामारी, युद्ध, जलवायु संकट तथा आर्थिक संकट ने 7.5 करोड़ अतिरिक्त लोगों को भीषण गरीबी में धकेल दिया है। इस वजह से इस दशक के अंत तक 34.2 करोड़ महिलाएं और लड़कियां गरीबी रेखा से नीचे जी रही होंगी।