पहले स्वदेशी लंपी वैक्सीन को मिली मंजूरी, वेटरनरी क्षेत्र में बड़ी उपलब्धि

भारत बायोटेक समूह की कंपनी बायोवेट को एलएसडी वैक्सीन के लिए सेंट्रल ड्रग स्टेंडर्ड्स कंट्रोल ऑर्गनाइजेशन (सीडीएससीओ) से मंजूरी मिल गई है। यह विश्व में लंपी बीमारी की पहली मार्कर वैक्सीन है जिसे बायोलंपीवैक्सीन (BIOLUMPIVAXIN) नाम से जल्द ही बाजार में उतारा जाएगा।

पहले स्वदेशी लंपी वैक्सीन को मिली मंजूरी, वेटरनरी क्षेत्र में बड़ी उपलब्धि

गौवंश के लिए जानलेवा लंपी स्किन बीमारी (एलएसडी) से बचाव के लिए विकसित पहला स्वदेशी वैक्सीन जल्द ही बाजार में उपलब्ध होगा। भारत बायोटेक समूह की कंपनी बायोवेट को एलएसडी वैक्सीन के लिए सेंट्रल ड्रग स्टेंडर्ड्स कंट्रोल ऑर्गनाइजेशन (सीडीएससीओ) से मंजूरी मिल गई है। यह विश्व में लंपी बीमारी की पहली मार्कर वैक्सीन है जिसे बायोलंपीवैक्सीन (BIOLUMPIVAXIN) नाम से जल्द ही बाजार में उतारा जाएगा। कंपनी द्वारा सोमवार को जारी एक बयान में यह जानकारी दी गई।

भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) द्वारा 2022 में विकसित लंपी-प्रोवैक वैक्सीन के कमर्शियल उत्पादन के लिए बायोवेट ने टेक्नोलॉजी लाइसेंस प्राप्त किया था। तब से बायावेट को वैक्सीन के लिए सीडीएससीओ की मंजूरी का इंतजार था। लम्पी-प्रोवैक को आईसीएआर के राष्ट्रीय अश्व अनुसंधान केंद्र (आईसीएआर-एनआरसीई), हिसार और भारतीय पशु चिकित्सा अनुसंधान संस्थान (आईवीआरआई), इज्जतनगर के सहयोग से विकसित किया था।

वैक्सीन विकसित करने वाली वैज्ञानिकों की टीम का नेतृत्व करने वाले आईसीएआर के तत्कालीन उपमहानिदेशक (एनिमल साइंस) और वर्तमान में जम्मू स्थित शेर-ए-कश्मीर कृषि विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय के वाइस चांसलर डॉ. बीएन त्रिपाठी ने रूरल वॉयस को बताया कि यह वैक्सीन गौवंश को लंपी स्किन बीमारी से पूर्ण सुरक्षा देता है। यह दुनिया में इस तरह की पहली वैक्सीन है जिसका पशुओं पर कोई लोकल इन्फेक्शन नहीं होता है। 

वैक्सीन कि खासियत यह है कि यह डिफरेंशियेटिंग इंफेक्टिड फ्राम वैक्सीनेटेड एनिमल (DIVA) वैक्सीन है जो लंपी स्कीन रोग की रोकथाम में गेमचेंजर साबित हो सकती है। डॉ. त्रिपाठी बताते हैं कि इस वैक्सीन का उपयोग गर्भधारण कर चुके पशुओं पर किये जाने पर भी किसी तरह का दुष्प्रभाव नहीं पड़ता और न ही दूध उत्पादन पर असर पड़ता है। इस वैक्सीन से पशुओं को बुखार जैसी दिक्कत भी नहीं आती हैं। देश में लाखों गौवंश को लंपी बीमारी से बचाने के साथ ही वेटरनरी क्षेत्र में आत्मनिर्भरता की दिशा में यह महत्वपूर्ण कदम माना जा रहा है।

गौरतलब है कि लंपी रोग से देश में करीब दो लाख गौवंश की मौत हुई थी। लाखों पशुओं की दुधारू क्षमता और ग्रामीण अर्थव्यवस्था को नुकसान हुआ। इनमें सबसे अधिक मौत राजस्थान, गुजरात, पंजाब और महाराष्ट्र में हुई थी।

मंजूरी मिलने में लगा लंबा समय

आईसीएआर ने 2022 में ही लंपी रोग की वैक्सीन लंपी-प्रोवैक विकसित कर ली थी। इस पर 2019 से रिसर्च चल रहा था। तत्कालीन केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर और पशुपालन एवं डेयरी मंत्री परषोत्तम रूपाला ने 10 अगस्त, 2022 को लंपी-प्रोवैक वैक्सीन विकसित होने का ऐलान किया था। लेकिन इसके कमर्शियल उत्पादन के लिए मंजूरी मिलने में काफी समय लगा।

विशेषज्ञों का मानना है कि अगर 2022 में ही वैक्सीन के कमर्शियल उत्पादन की मंजूरी मिल जाती तो बड़ी संख्या में गौवंश को मौत से बचाया जा सकता था। उस समय सरकार ने गौवंश में गोट पोक्स वैक्सीन का उपयोग किया था जो पूरी तरह कारगर नहीं था, क्योंकि वह वैक्सीन गोवंश (कैटल) के लिए नहीं बनाया गया था।

आईसीएआर द्वारा विकसित लंपी-प्रोवैक वैक्सीन के कमर्शियलाइजेशन के लिए कृषि मंत्रालय के तहत काम करने वाली कंपनी एग्री इन्नोवेट से बायोवेट, इंडियन इम्यूनोलॉजिकल लिमिटेड, हस्टर बॉयोसाइंस और महाराष्ट्र सरकार ने लाइसेंस लिया था। इन्हें वैक्सीन बनाने की तकनीक और जरूरी मैटीरियल दिया गया था। उस समय उम्मीद थी कि वैक्सीन को बाजार में उतारने के लिए चार से पांच माह में सारी औपचारिकताएं पूरी कर ली जाएंगी, लेकिन बड़े पैमाने पर टेस्ट की प्रक्रिया के चलते अब करीब ढाई साल बाद एलएसडी का पहला वैक्सीन बाजार में उपलब्ध होगा।

कैसी बनी वैक्सीन

भारत में लंपी वैक्सीन को विकसित करने की कहानी काफी दिलचस्प है। वर्ष 2019 में उड़ीसा में लंपी बीमारी सामने आने के बाद वैक्सीन पर काम शुरू हुआ था। डॉ. त्रिपाठी बताते हैं कि वैक्सीन पर 2019 के अंत में काम शुरू हुआ और जुलाई, 2022 में इसका पशुओं पर ट्रायल किया गया जो पूरी तरह से खरा उतरा। वैक्सीन की गुणवत्ता, सुरक्षा और प्रभाव को लेकर एनआरसीई, हिसाब और आईवीआरआई, इज्जतनगर में व्यापक और विश्व स्तरीय परीक्षण किए गये। यह वैक्सीन यह लंबे समय तक सुरक्षित रहता है और इसे फ्रीजिंग कंडीशन में रखने की जरूरत भी नहीं है। इसे रेफ्रीजरेटर टेंपरेचर (4-80 डिग्री सेल्सियस) पर रखना होता है, जो इसके उपयोग को आसान करेगा। ऐसा वैक्सीन में लाइव वायरस होने की वजह से संभव हो पाया है। 

कोरोना के दौर में भी आईसीएआर के वैज्ञानिकों ने लंपी वैक्सीन पर शोध जारी रखा। इसके लिए रांची से वायरस लाया गया था। वैक्सीन को एनआरसीई के वायरोलॉजिस्ट और प्रिंसिपल साइंटिस्ट डॉ. नवीन कुमार के नेतृत्व में विकसित किया गया। डॉ. नवीन कुमार इस समय पुणे स्थित एनआईवी के डायरेक्टर हैं। लंपी स्किन रोग के वायरस का सैंपल लेने के बाद एनआरसीई हिसार में इसे आईसोलेट करने के साथ ही इसकी जीन सीक्वेंसिंग की गई। इसके बाद इसे कल्चर किया गया और इसकी 50 जनरेशन तक कल्चरिंग की गई। इसके बाद प्रयोगशाला में चूहों और खरगोशों पर वैक्सीन का परीक्षण किया गया। यह प्रक्रिया आईवीआरआई के मुक्तेश्वर केंद्र पर चली।

वैक्सीन केंडिडेट वायरस का आईवीआरआई में अप्रैल, 2022 में रेगुलेटेड पशुओं पर परीक्षण किया गया और जिसमें दस बछड़ों को वैक्सीन दी गई और पांच को उनके साथ बिना वैक्सीन के रखा गया। वैक्सीन लगाने के बाद पूरी इम्युनिटी विकसित होने में करीब एक माह का समय लगता है। एक माह के बाद इन सभी पशुओं में वायरस इंजेक्ट किया गया। इसके नतीजे में वैक्सीन वाले सभी दस पशु बीमारी से पूरी तरह से सुरक्षित रहे। जबकि दूसरे पांच में लंपी स्किन रोग के लक्षण पाये गये।

इसके बाद जुलाई, 2022 में वैक्सीन का फील्ड ट्रायल किया गया। इसका राजस्थान में बांसवाड़ा, जोधपुर, उदयपुर और अलवर, उत्तर प्रदेश में मथुरा और हरियाणा में हांसी व हिसार में ट्रायल किया गया। वैक्सीन वाले सभी पशु पूरी तरह से सुरक्षित रहे जबकि इन जगहों पर अन्य पशु लंपी स्किन रोक से प्रभावित थे। इस प्रकार विश्व में अपनी तरह के पहले एलएसडी वैक्सीन का मार्ग प्रशस्त हुआ। 

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