डीएपी आयात से किनारा कर रही हैं उर्वरक कंपनियां
निजी क्षेत्र की कई उर्वरक कंपनियों ने डीएपी के आयात से किनारा कर रखा है। वहीं सहकारी क्षेत्र के आयातक भी फायदे-नुकसान का आकलन करने के बाद ही कोई फैसला लेने की रणनीति अपना रहे हैं। अगर अगले दो माह में आयात में तेजी नहीं आती है तो आगामी खरीफ सीजन में डीएपी की किल्लत पैदा हो सकती है
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वैश्विक बाजार में डाई अमोनियम फॉस्फेट (डीएपी) की कीमतों के करीब 640 डॉलर प्रति टन पर पहुंचने और डॉलर के मुकाबले रूपये में आई गिरावट ने उर्वरक कंपनियों के लिए डीएपी के आयात को घाटे का सौदा बना दिया है। इसके चलते सरकार के निर्देशों के बावजूद कंपनियां डीएपी आयात के अधिक सौदे नहीं कर रही हैं। निजी क्षेत्र की कई उर्वरक कंपनियों ने डीएपी के आयात से किनारा कर रखा है। वहीं सहकारी क्षेत्र के आयातक भी फायदे-नुकसान का आकलन करने के बाद ही कोई फैसला लेने की रणनीति अपना रहे हैं। अगर अगले दो माह में आयात में तेजी नहीं आती है तो आगामी खरीफ सीजन में डीएपी की किल्लत पैदा हो सकती है।
उद्योग सूत्रों के मुताबिक अधिकांश उर्वरक कंपनियां आयात के मामले में धीरे चलो (गो स्लो) की रणनीति अपना रही हैं। उर्वरक कंपनियों ने डीएपी का अधिकतम खुदरा मूल्य (एमआरपी) 1350 रुपये प्रति बैग (50 किलो) तय कर रखा है। सरकार चाहती है कि यह कीमत बरकरार रहे, हालांकि विनियंत्रित उर्वरकों के मामले में दाम का फैसला कंपनियों का है लेकिन वास्तव में इसकी कीमत परोक्ष रूप से नियंत्रित है। सरकार न्यूट्रिएंट आधारित सब्सिडी (एनबीएस) योजना के तहत चालू रबी सीजन के लिए 1 अक्तूबर, 2024 से 31 मार्च, 2025 तक के लिए डीएपी पर 21911 रुपये प्रति टन की सब्सिडी दे रही है। इसके अलावा उर्वरक कंपनियों को 3500 रुपये प्रति टन का स्पेशल इंसेंटिव भी दिया जा रहा है। डीएपी की बिक्री से कंपनियों को 27000 रुपये प्रति टन की आय होती है। ऐसे में सब्सिडी और स्पेशल इंसेंटिव समेत कंपनियों को डीएपी पर कुल आय 52400 रुपये प्रति टन की आय हो रही है।
वहीं वैश्विक बाजार में डीएपी की कीमत करीब 640 डॉलर प्रति टन चल रही है। 87 रुपये प्रति डॉलर की विनियम दर पर डीएपी की आयात कीमत 55680 रुपये प्रति टन पड़ रही है। इसके अलावा इस पर सीमा शुल्क, पोर्ट हैंडलिंग, बैगिंग डीलर मार्जिन मिलाकर लागत 65000 रुपये प्रति टन से अधिक बैठ रही है। ऐसे में मौजूदा सब्सिडी, स्पेशल इंसेंटिव और डीएपी की खुदरा कीमत पर बिक्री को मिलाकर उर्वरक कंपनियों को होने वाली आय और आयात लागत पर कंपनियों को करीब 12600 रुपये प्रति टन का घाटा हो रहा है।
उर्वरक उद्योग सूत्रों के मुताबिक पिछले वित्त वर्ष में भी आयातक कंपनियों को घाटा हुआ था। मौजूदा समय में यह अंतर और बढ़ गया है। ऐसे में आयात के सौदे कम हो रहे हैं और कुछ निजी कंपनियों ने आयात सौदे नहीं किये हैं। देश में जो कंपनियां डीएपी का उत्पादन करती हैं वह उत्पादन जरूर जारी रखे हुए हैं क्योंकि इन कंपनियों ने कच्चे माल रॉक फॉस्फेट और फॉस्फोरिसिक एसिड के लिए निर्यातक देशों की कंपनियों के साथ लॉन्ग टर्म कांट्रैक्ट कर रखे हैं।
देश में डीएपी की खपत का अधिकांश हिस्सा आयात ही होता है। वहीं पिछले साल एक निजी कंपनी को डीएपी आयात में घाटे के चलते उसके शीर्ष प्रबंधन को मैनेजिंग बोर्ड के सख्त सवालों का सामना करना पड़ा था और अंततः वहां मैनेजमेंट में ही बदलाव हो गया था।
उर्वरक उद्योग के आंकड़ों के मुताबिक चालू वित्त वर्ष (2024-25) में अप्रैल, 2024 से जनवरी, 2025 तक डीएपी के आयात में 16.2 फीसदी और बिक्री में 14.1 फीसदी की गिरावट दर्ज की गई है। वहीं डीएपी के घरेलू उत्पादन में 9.1 फीसदी की गिरावट आई है। अप्रैल,2024 से जनवरी, 2025 के बीच देश में 43.09 लाख टन डीएपी का आयात किया गया जबकि इसके पहले साल इसी अवधि में 51.44 लाख टन डीएपी का आयात किया गया था। वहीं उत्पादन पिछले साल के 37.67 लाख टन से घटकर 34.25 लाख टन रह गया। इसी तरह अप्रैल, 2024 से जनवरी, 2025 के बीच डीएपी की बिक्री 87.12 लाख टन रही जबकि इसके पहले साल इसी अवधि में देश में 101.46 लाख टन डीएपी की बिक्री हुई थी। बिक्री में गिरावट की मुख्य वजह डीएपी की उपलब्धता का कम होना रहा है जो आयात और उत्पादन के आंकड़ों से स्पष्ट होता है।
रबी सीजन में डीएपी की किल्लत के चलते किसानों को बड़े पैमाने पर एमएसपी से अधिक कीमत पर इसकी खरीद करनी पड़ी थी। उद्योग सूत्रों के मुताबिक यह बात सरकार और उद्योग दोनों के संज्ञान में आने पर भी इसे रोकने के लिए कोई बड़ा कदम नहीं उठाया गया।
अगर आने वाले दिनों में डीएपी की वैश्विक कीमतें नहीं घटती हैं या सरकार सब्सिडी में बढ़ोतरी नहीं करती है तो किसानों के सामने खरीफ सीजन में डीएपी की उपलब्धता का संकट पैदा हो सकता है। ऐसे में एक विकल्प राज्य सरकारों द्वारा डीएपी उपलब्ध कराने के लिए आयातकों को अतिरिक्त सब्सिडी देने का भी है लेकिन उद्योग का कहना है कि ऐसा करना संभव तो है लेकिन यह बहुत व्यवहारिक विकल्प नहीं है क्योंकि इसे लागू करने में दिक्कतें पैदा होंगी।