प्याज पर 40 फीसदी निर्यात शुल्क के विरोध में उतरे किसान संगठन, किसान विरोधी कदम के खिलाफ आंदोलन तेज करने का ऐलान
किसान संगठनों का कहना है कि यह पूरी तरह से चुनावी राजनीति के तहत उठाया गया किसान विरोधी कदम है। अभी इसकी कोई जरूरत नहीं थी क्योंकि अभी प्याज के दाम उस स्तर पर नहीं पहुंचे हैं जब इस तरह का कदम उठाना पड़े। इसके खिलाफ किसान संगठनों ने आंदोलन तेज करने का ऐलान किया है।
प्याज की घरेलू उपलब्धता बढ़ाने और कीमतों पर अंकुश रखने के लिए निर्यात पर 40 फीसदी शुल्क लगाने के केंद्र सरकार के फैसले के विरोध में किसानों ने आंदोलन शुरू कर दिया है। महाराष्ट्र के नासिक जिले की थोक मंडियों में सोमवार को किसानों ने प्याज की नीलामी रोक दी और हड़ताल शुरू कर दी। प्याज के थोक व्यापारियों ने भी किसानों के समर्थन में दुकानें बंद कर दी। किसान संगठनों का कहना है कि यह पूरी तरह से चुनावी राजनीति के तहत उठाया गया किसान विरोधी कदम है। अभी इसकी कोई जरूरत नहीं थी क्योंकि अभी प्याज के दाम उस स्तर पर नहीं पहुंचे हैं जब इस तरह का कदम उठाना पड़े। इसके खिलाफ किसान संगठनों ने आंदोलन तेज करने का ऐलान किया है।
भारत से प्रमुख रूप से बांग्लादेश, मलेशिया, यूएई, श्रीलंका, नेपाल, इंडोनेशिया, कतर, वियतनाम, ओमान और कुवैत को प्याज का निर्यात किया जाता है। भारतीय प्याज का सबसे ज्यादा निर्यात (26 फीसदी से ज्यादा) बांग्लादेश को किया जाता है। चालू वित्त वर्ष 2023-24 में 1 अप्रैल से 4 अगस्त तक 9.75 लाख टन प्याज का निर्यात किया गया है। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक, पिछले वित्त वर्ष 2022-23 में कुल करीब 23 लाख टन प्याज का निर्यात किया गया था जिसका मूल्य करीब 4,006 करोड़ रुपये था।
स्वाभिमानी शेतकारी संगठन के राष्ट्रीय अध्यक्ष और पूर्व सांसद राजू शेट्टी ने सरकार के इस कदम को किसान विरोधी बताते हुए रूरल वॉयस से कहा, “पांच राज्यों में नवंबर-दिसंबर में होने वाले विधानसभा चुनाव को देखते हुए सरकार ने यह कदम उठाया है। सरकार को डर है कि अगर चुनाव के दौरान प्याज के दाम बढ़ गए तो मुश्किल हो सकती है। इस साल मई-जून में जब प्याज की कीमतें घटकर 2-3 रुपये प्रति किलो तक आ गई थी और किसान सड़कों एवं खेत में अपनी फसल फेंक रहे थे, तब सरकार कहां थी, क्या उनकी मदद करने आई थी? उससे पहले फरवरी-मार्च में जब बेमौसम बारिश की वजह से प्याज की फसल बर्बाद हो गई थी तो क्या सरकार ने किसानों को मुआवजा दिया था? तब उन्हें बाजार के भरोसे छोड़ दिया गया। अब जब दाम बढ़ रहे हैं और इसका फायदा किसानों को मिल सकता था, तो फिर सरकार बाजार में हस्तक्षेप क्यों कर रही है। इसके विरोध में शुरू हुए आंदोलन को तेज किया जाएगा और पूरे महाराष्ट्र में आंदोलन किया जाएगा।”
भारत से प्याज के प्रमुख आयातक देश
क्रम सं. |
आयातक देश |
2022-23 में निर्यात (टन में) |
मूल्य (लाख रुपये में) |
1 |
बांग्लादेश |
671,125.27 |
89,728.81 |
2 |
मलेशिया |
393,461.34 |
84,877.95 |
3 |
यूएई |
403,219.30 |
78,477.43 |
4 |
श्रीलंका |
270,501.29 |
45,193.05 |
5 |
नेपाल |
174,764.16 |
26,771.43 |
6 |
इंडोनेशिया |
116,695.71 |
22,184.63 |
7 |
कतर |
79,826.94 |
16,878.87 |
8 |
वियतनाम |
75,909.41 |
14,131.47 |
9 |
ओमान |
61,989.92 |
12,786.45 |
10 |
कुवैत |
45,399.12 |
9,626.44 |
|
कुल |
2,292,892.46 |
400,656.53 |
स्रोतः एपीडा
शेतकारी संगठन के वरिष्ठ नेता एवं पूर्व अध्यक्ष और स्वतंत्र भारत पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अनिल घनवत ने रूरल वॉयस से कहा, “अभी यह कदम उठाने की कोई जरूरत नहीं थी क्योंकि अभी प्याज की खुदरा कीमत 30-35 रुपये प्रति किलो तक ही पहुंची है। अगर कीमत 50 रुपये प्रति किलो के पार पहुंच जाती तो इस तरह का कदम उठाया जा सकता था। सरकार ने जल्दबाजी में यह निर्णय लिया है जो किसानों के हित में नहीं है। किसानों की लागत ही 18-20 रुपये प्रति किलो बैठती है। अगर उन्हें वाजिब कीमत नहीं मिलेगी तो वे अपना कर्ज कैसे चुकाएंगे। कर्ज नहीं चुका पाने की वजह से नासिक जिले के 62 हजार प्याज किसानों की जमीनें बैंकों ने जब्त कर ली है और वे उसे नीलाम कर सकते हैं।”
तीन कृषि कानूनों को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने जो समिति बनाई थी अनिल घनवत उसके भी सदस्य थे। घनवत कहते हैं, “यह सिर्फ कीमत का ही मामला नहीं है बल्कि अंतरराष्ट्रीय बाजार में भारत की साख का भी सवाल है। सरकार के इस तरह के अचानक फैसलों से निर्यात बाजार में भारत की विश्वसनीयता घटी है। यही वजह है कि एक समय प्याज निर्यात में भारत की हिस्सेदारी 40 फीसदी थी जो अब घटकर 8 फीसदी रह गई है। पाकिस्तान और अफगानिस्तान जैसे छोटे देशों ने हमारे निर्यात बाजार पर कब्जा कर लिया है। अभी बांग्लादेश हमारा सबसे बड़ा प्याज आयातक है लेकिन भारत के लगातार इस तरह के फैसलों को देखते हुए उसने प्याज उत्पादन में आत्मनिर्भर बनने का लक्ष्य रखा है और अपने किसानों को इसके लिए प्रोत्साहित कर रहा है। इसके अलावा भारतीय प्याज के आयातक उन देशों का रुख कर रहे हैं जो उन्हें बिना किसा बाधा के निरंतर आपूर्ति करते रहें।”
यह पूछने पर कि सरकार ने बफर स्टॉक के तहत 2 लाख टन अतिरिक्त प्याज खरीदने का फैसला किया है, क्या इससे किसानों को फायदा होगा, घनवत कहते हैं कि इसका कोई फायदा किसानों को नहीं मिलता है क्योंकि सरकारी खरीद एजेंसी नेफेड और एनसीसीएफ बाजार कीमत पर ही प्याज खरीदते हैं। प्याज का न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) तो होता नहीं है, बाजार में जो मूल्य होता है उसी भाव पर सरकारी खरीद होती है तो किसानों को कैसे फायदा होगा। मगर सरकारी एजेंसियों को जरूर फायदा होता है क्योंकि जब बाजार में दाम बढ़ने लगते हैं तब बफर से बढ़े हुए दाम पर स्टॉक जारी किया जाता है। राजू शेट्टी ने भी कहा कि सरकारी खरीद से किसानों को कोई फायदा नहीं होगा।