भारत में टिकाऊ कृषि-खाद्य प्रणाली के लिए सार्वजनिक-निजी भागीदारी पर जोर

मंगलवार को कृषि विज्ञान उन्नयन ट्रस्ट (TAAS) ने भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (ICAR), भारतीय बीज उद्योग महासंघ (FSII) और भारतीय राष्ट्रीय बीज संघ (NSAI) के सहयोग से राष्ट्रीय कृषि विज्ञान परिसर (NASC), पूसा परिसर में "कृषि में सार्वजनिक-निजी भागीदारी: भावी रणनीति" विषय पर एक विचार-मंथन का आयोजन किया।

भारत में टिकाऊ कृषि-खाद्य प्रणाली के लिए सार्वजनिक-निजी भागीदारी पर जोर

सार्वजनिक-निजी भागीदारी कृषि की कई चुनौतियों का समाधान करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है, जिसमें किसानों तक नवाचार का प्रसार, अनुसंधान को बढ़ावा देना और किसानों को सही बाजार संपर्क प्राप्त करने में मदद करना शामिल है। मंगलवार को कृषि विज्ञान उन्नयन ट्रस्ट (TAAS) ने भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (ICAR), भारतीय बीज उद्योग महासंघ (FSII) और भारतीय राष्ट्रीय बीज संघ (NSAI) के सहयोग से राष्ट्रीय कृषि विज्ञान परिसर (NASC), पूसा परिसर में "कृषि में सार्वजनिक-निजी भागीदारी: भावी रणनीति" विषय पर एक विचार-मंथन का आयोजन किया। इसमें कृषि वैज्ञानिकों, नीति-निर्माताओं, शोधकर्ताओं और निजी क्षेत्र के प्रतिनिधियों ने कृषि में सार्वजनिक-निजी भागीदारी की संभावनाओं और चुनौतियों पर अपने विचार रखे। इस दौरान कई महत्वपूर्ण सुझाव भी आए। 

वर्तमान में, भारत का कृषि क्षेत्र देश के 50% से अधिक कार्यबल को रोजगार देता है और देश के सकल घरेलू उत्पाद में लगभग 17% का योगदान देता है। हालांकि, इस योगदान को बनाए रखने और बढ़ाने के लिए नई तकनीकों और तौर-तरीकों को अपनाना आवश्यक है। इस संबंध में निजी क्षेत्र ने जबरदस्त क्षमता दिखाई है। खास तौर पर जैव प्रौद्योगिकी और उन्नत बीज किस्में विकसित करने के मामले में। 2022 तक, आनुवंशिक रूप से संशोधित बीटी कॉटन को अपनाने से उपज में 24% की वृद्धि और कीटनाशक के उपयोग में 50% की कमी आई है, जो निजी भागीदारी के परिवर्तनकारी प्रभाव को दर्शाता है।

इस विचार-मंथन में वैज्ञानिकों, शोधकर्ताओं, नीति निर्माताओं और निजी क्षेत्र के प्रतिनिधियों सहित 60 से अधिक प्रमुख हितधारकों ने भाग लिया। किसानों के लाभ और नवाचारों को बढ़ावा देने के लिए कृषि क्षेत्र में सार्वजनिक-निजी भागीदारी (पीपीपी) बढ़ाने के लिए एक स्पष्ट रोड मैप विकसित करने पर जोर दिया गया। 

डॉ. आरएस परोदा, संस्थापक अध्यक्ष, टीएएएस व पूर्व सचिव डेयर तथा महानिदेशक, आईसीएआर ने सार्वजनिक-निजी भागीदारी की आवश्यकता पर जोर देते हुए कहा, "भारतीय कृषि एक चौराहे पर है। बढ़ती खाद्य मांग को पूरा करने और जलवायु परिवर्तन की चुनौतियों का सामना करने के लिए, हमें सार्वजनिक और निजी दोनों क्षेत्रों की ताकत का लाभ उठाना चाहिए। टिकाऊ कृषि के लिए नवाचारों को बढ़ाने के लिए प्रभावी पीपीपी आवश्यक हैं।" उन्होंने आगे कहा, "कृषि अनुसंधान में वर्तमान सार्वजनिक निवेश बहुत कम है, इसलिए साझेदारी के माध्यम कृषि अनुसंधान निवेश को बढ़ाने की संभावनाएं तलाशने की आवश्यकता है। हमें कृषि में वार्षिक वृद्धि दर को कम से कम 4% तक बढ़ाने की आवश्यकता है। भारत की अनुमानित 5 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए कृषि से लगभग 1 ट्रिलियन डॉलर का योगदान करना होगा।"

मुख्य अतिथि डॉ. त्रिलोचन महापात्रा, अध्यक्ष, पीपीवी एंड एफआरए ने इस बात पर जोर दिया कि सार्वजनिक-निजी भागीदारी मौजूदा चुनौतियों का सामना करने और कृषि विकास के नए अवसरों को खोलने का प्रभावी साधन है।

एफएसआईआई के अध्यक्ष अजय राणा ने कृषि के कायाकल्प में बीज उद्योग की महत्वपूर्ण भूमिका पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा, "निजी बीज क्षेत्र ने पहले ही महत्वपूर्ण योगदान दिया है, विशेष रूप से बीटी कॉटन जैसी आनुवंशिक रूप से संशोधित फसलों के क्षेत्र में। फिर भी स्ट्रैटेजिक पीपीपी के माध्यम से आगे की प्रगति की अपार संभावनाएं हैं। हमारा लक्ष्य उच्च गुणवत्ता वाली बीज किस्मों का विकास और प्रसार है जो भारतीय कृषि में क्रांति ला सकते हैं।"

विचार-मंथन में शामिल हितधारक सार्वजनिक और निजी दोनों अनुसंधान संस्थानों की क्षमताओं का उपयोग करने को लेकर एकमत थे। राष्ट्रीय महत्व की पीपीपी परियोजनाओं के माध्यम से ऐसी क्षमताओं का प्रभावी ढंग से दोहन किया जा सकता है। अनुसंधान, पहुंच, प्रॉफिट शेयरिंग तथा सक्षम नीतियों में प्रभावी सहयोग की तत्काल आवश्यकता है।

भारतीय बीज उद्योग महासंघ (FSII) के सलाहकार राम कौंडिन्या ने कहा, "बाजार संचालित अनुसंधान और जीनोम एडिटिंग जैसी उन्नत तकनीकों को अपनाना महत्वपूर्ण है। मजबूत पीपीपी के माध्यम से, हम यह सुनिश्चित कर सकते हैं कि उच्च प्राथमिकता वाले क्षेत्रों में नवाचार हों तथा किसानों की उत्पादकता और लाभ बढ़ाने के लिए जल्द उन तक पहुंचें।"

विचार-मंथन सत्र में पीपीपी की प्रमुख बाधाओं और सफल मॉडलों की पहचान की गई, जिन्हें बड़े पैमाने पर दोहराया जा सकता है। चर्चाएं जैव प्रौद्योगिकी, डिजिटल कृषि, सटीक खेती और मूल्य श्रृंखला सुधार जैसे महत्वपूर्ण क्षेत्रों पर केंद्रित थीं। कृषि अनुसंधान और विकास में निजी क्षेत्र के निवेश को आकर्षित करने के लिए मददगार नीतियों और प्रोत्साहनों की आवश्यकता पर भी प्रकाश डाला गया।

 

 

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