ड्राफ्ट रिपोर्ट को पंजाब सरकार की राय बताना कहां तक उचित?
पंजाब की इकनॉमी में सुधार के लिए बनी कमेटी की जो रिपोर्ट अभी फाइनल भी नहीं है। जिसकी सिफारिशों को राज्य सरकार ने स्वीकार भी नहीं किया है, उसे राज्य सरकार की नीति बताना महज हंगामा खड़ा करने की कोशिश है।
चाय की प्याली में तूफान कैसे खड़ा होता है और मीडिया इसे कैसे ले उड़ता है, इसका एक ताजा उदाहरण पंजाब सरकार की एक ड्राफ्ट रिपोर्ट है। इसे योजना आयोग के पूर्व उपाध्यक्ष मोंटेक सिंह अहलूवालिया की अध्यक्षता में गठित एक कमेटी ने पेश किया है। ड्राफ्ट रिपोर्ट 31 जुलाई, 2020 को सरकार को सौंपी गई थी। रिपोर्ट पर पंजाब सरकार के रुख के आधार पर इसे दिसंबर, 2020 तक अंतिम रूप दिया जाना था और अभी रिपोर्ट केवल ड्राफ्ट के रूप में है, जिसे अंतिम रूप दिया जाना बाकी है। लेकिन इस रिपोर्ट को लेकर विवाद खड़ा हो गया है। कहा जा रहा है कि पंजाब सरकार की कमेटी ने भी उसी तरह के कृषि सुधारों की सिफारिश की है, जैसे सुधार केंद्र की मोदी सरकार कृषि कानूनों के जरिये लागू कराना चाहती है।
रूरल वॉयस के पास इस रिपोर्ट की कॉपी मौजूद है। कुल 68 पेज की इस रिपोर्ट केवल कृषि क्षेत्र पर नहीं है, बल्कि इसमें कोविड-19 संकट के बाद पंजाब के लिए मध्यम और दीर्घ अवधि की अर्थनीति से जुड़े कई सुझाव दिये गए हैं। ‘मीडियम एंड लॉन्ग टर्म पोस्ट कोविड-19 इकोनॉमिक स्ट्रेटजी फोर पंजाब – ए मल्टी सेक्टोरल अप्रोच टू बिल्डिंग रिजिलेंस एंड रिकवरी’ नाम की इस रिपोर्ट में कृषि सात क्षेत्रों में से एक है। हरेक क्षेत्र पर सिफारिशों के लिए सब-ग्रुप बनाये गये हैं। कृषि पर बने सब-ग्रुप ने दस पन्नों की सिफारिशें दी हैं। इस सब- ग्रुप के प्रमुख प्रोफेसर अशोक गुलाटी हैं।ट्रांसफॉर्मिंग पंजाब एग्रीकल्चर के नाम के इस हिस्से में एग्रीकल्चर मार्केटिंग रिफोर्म्स से जुड़े कुछ सुझाव हैं। रिपोर्ट का यही वो पन्ना है, जिसे मीडिया ने लपक लिया। मीडिया इन सिफारिशों को किसान आंदोलन और कृषि कानूनों से जोड़कर देख रहा है। जबकि यह रिपोर्ट पंजाब को एग्रीकल्चर इकोनॉमी से निकालकर नॉलेज, सर्विस इकोनॉमी और इंडस्ट्रियल इकोनॉमी में तब्दील करने पर जोर देती है।
रिपोर्ट की शुरुआत कोविड-19 संकट और इससे निपटने के उपायों से की गई है। दूसरा चैप्टरट्रांसफोर्मिंग पंजाब एग्रीकल्चर यानी पंजाब की कृषि में बदलाव पर केंद्रित है। इसमें लैंड लीजिंग कानून को लागू करने की बात कही गई है और लॉन्गटर्म लैंड लीज के प्रावधानों को लागू करने का सुझाव दिया गया है ताकि पंजाब को गेहूं और चावल के चक्र से बाहर निकालकर हॉर्टिकल्चर और अन्य कृषि गतिविधियों को बढ़ावा दिया जा सके और कृषि में निवेश को प्रोत्साहन मिले। चैप्टर के दूसरे हिस्से में पानी और बिजली की बात की गई है। इसमें बताया गया है कि कौन से ऐसे कदम जरूरी हैं जिनके जरिये गिरते भू-जल स्तर को रोकने और पानी के किफायत से इस्तेमाल को बढ़ावा दिया जा सके। साथ ही फ्री बिजली के उपयोग को तर्कसंकत करने की बात भी की गई है। इसके अलावा मार्केटिंग रिफोर्म्स, बीज और कृषि शोध पर एक हिस्सा है।आप्टिमम यूज ऑफ फार्म मशीनरी के नाम से कृषि उपकरणों पर हो रहे निवेश के बेहतर उपयोग के उपाय सुझाये गये हैं। वहीं पशुपालन और खाद्य प्रसंस्करण को बढ़ावा देने के लिए भी कई सिफारिशें की गई हैं। कृषि के बाद का चैप्टर है रिवाइटलाइजिंग इंडस्ट्री, जिसमें सामान्य इंडस्ट्री और एमएसएमई पर दो हिस्सों में सिफारिशें दी गई हैं।
रिपोर्ट के कृषि वाले चैप्टर का एक हिस्सा एग्रीकल्चर मार्केटिंग रिफोर्म्स पर है। इसमें कहा गया है कि मौजूदा एपीएमसी मार्केट से जुड़े कानून में सुधार करने की जरूरत है। इसके अलावा प्राइवेट मंडियों को बढ़ावा देने का सुझाव भी दिया गया है। एपीएमसी लाइसेंसिंग की व्यवस्था को अधिक उदार बनाने और उसकी फीस कम करने की जरूरत है। पंजाब सरकार ने इस संबंध में जो कदम अभी तक उठाये हैं, वह नाकाफी हैं। नियमों को उदार बनाने के मामले में कई फसलों को शामिल नहीं किया गया है। साथ ही मंडी बोर्ड को ही लाइसेंसिंग अथॉरिटी रखा गया है। मौजूदा नियमों के चलते पंजाब में निवेश और रेवेन्यू पर प्रतिकूल असर पड़ रहा है। इसलिए पंजाब सरकार को मार्केट फीस, कमीशन फीस, लाइसेंसिंग से जुड़े नियमों में तुरंत बदलाव कर उन्हें अधिसूचित करना चाहिए। रिपोर्ट का यही वह हिस्सा है, जिसे उठाकर कहा जा रहा है कि पंजाब सरकार एग्रीकल्चर मार्केटिंग में वही सुधार कर रही है, जिनके खिलाफ राज्य की कांग्रेस सरकार किसान आंदोलन का समर्थन करती है।
यहां दो बातें अहम हैं। पहली यह कि अभी यह रिपोर्ट केवल ड्राफ्ट है और दूसरी इसमें की गई सिफारिशें न तो राज्य सरकार ने मानी हैं और न ही वह ऐसा करने के लिए बाध्य है। ड्राफ्ट रिपोर्ट पर सरकार के सुझावों और प्रतिक्रिया के आधार पर अंतिम रिपोर्ट तैयार की जाएगी। यह भी कोई जरूरी नहीं है कि सरकार समिति की फाइनल रिपोर्ट की सिफारिशों से पूरी तरह सहमत हो और उसे लागू करे। इसलिए ड्राफ्ट रिपोर्ट की सिफारिशों की तुलना संसद से पास हो चुके कृषि कानूनों से नहीं की जा सकती है। दोनों की संवैधानिक स्थिति में बहुत अंतर है।
एग्रीकल्चर मार्केटिंग से सिफारिशों को लेकर एक अंदर की कहानी भी है। असल में यह सिफारिशें सभी सदस्यों के विचारों को रखती हों, यह जरूरी नहीं है। पहले तो यह कमेटी के एक सब-ग्रुप की सिफारिशें हैं। वास्तव में, इन सिफारिशें सब-ग्रुप के प्रमुख प्रोफेसर अशोक गुलाटी की सिफारिशें मानी जाए तो ज्यादा सही होगा। पंजाब सरकार द्वारा गठित पंजाब फार्मर्स कमीशन के साथ भी समिति ने चर्चा नहीं की। वहीं सरकार के मंत्रियों के साथ भी समिति के सब-ग्रुप की चर्चा नहीं होने की जानकारी रुरल वॉयस को मिली है। इसलिए इन सिफारिशों को पंजाब सरकार की राय मानना गलत है। असल में अशोक गुलाटी की कृषि सुधारों को लेकर राय स्पष्ट और जगजाहिर है। इसलिए उनके द्वारा एपीएमसी कानून में बदलाव और प्राइवेट मंडियों को बढ़ावा देने की सिफारिशों में कुछ भी आश्चर्यजनक नहीं है। लेकिन राज्य सरकार समिति की सिफारिशों से सहमत हो, यह जरूरी नहीं है। बल्कि कमेटी के कई सदस्य भी इन सिफारिशों से असहमत हो सकते हैं। यही असल बात जो इस पूरे प्रकरण में सामने नहीं आ रही है।
अब जाहिर है कि जब समिति इतने मुद्दों पर सुझाव दे रही है तो इसके सदस्य भी विभिन्न क्षेत्रों से लिये गये हैं। मोंटेक सिंह अहलूवालिया समेत इसमें 22 सदस्य हैं। जिनमें 14वें वित्त आयोग के सदस्य प्रोफेसर एम. गोविंद राव, एनआईपीएफपी के डायरेक्टर डॉ. रथिन रॉय, इक्रीअर में एग्रीकल्चर के इंफोसिस चेयर प्रोफेसर डॉ. अशोक गुलाटी, पब्लिक हैल्थ इंडिया के चेयरमैन डॉ. के. श्रीनाथ रेड्डी, जॉन होपकिंस यूनिवर्सिटी के स्कूल ऑफ एडवांस इंटरनेशनल स्टडीज के प्रोफेसर देवेश कपूर, कैलिफोर्निया यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर निर्विकार सिंह, पूर्व केंद्रीय कृषि सचिव टी. नंद कुमार, सेंटर फॉर पालिसी रिसर्च की प्रेसिडेंट और चीफ एक्जीक्यूटिव यामिनी अय्यर, माइक्रोसाफ्ट इंडिया के पूर्व चेयरमैन और इंफोसिस के को-चेयरमैन रवि वेंकटेसन, मास्टरकार्ड के प्रेसिडेंट और सीआई अजयपाल सिंह बंगा, वर्धमान ग्रुप ऑफ कंपनीज के चेयरमैन एस.पी ओसवाल, आईसीटी लिमिटेड के चेयरमैन और एमडी संजीव पुरी, ट्राइडेंट ग्रुप के चेयरमैन राजिंदर गुप्ता, कारगिल इंडिया के प्रेसिडेंट साइमन जॉर्ज, नेस्ले इंडिया के चेयरमैन और एमडी सुरेश नारायणन, सीआईआई की पंजाब स्टेट काउंसिल के चेयरमैन राहुल आहूजा, पीएयू के वाइस चांसलर डॉ. बी.एस ढिल्लों, एमआईटी की अब्दुल लतीफ जमील पावर्टी एक्शन लैब के ग्लोबल एक्जीक्यूटिव डायरेक्टर इकबाल ढालीवाल, नेशनल सेंटर फॉर गुड गवर्नेंस के पूर्व डायरेक्टर जनरल डॉ. ज्ञानेंद्र बडगाइयां, जेनपैक्ट के संस्थापक और नॉन एक्जीक्यूटिव वाइस चेयरमैन प्रमोद भसीन, पीएचडीसीसीआई के पंजाब चैप्टर के चेयरमैन करण गिल्होत्रा और पंजाब सरकार में प्रिंसिपल सेक्रेटरी अशोक शेखर इसके सदस्य हैं।
समिति की ड्राफ्ट रिपोर्ट में पंजाब की कृषि अर्थव्यवस्था को समयावधि के हिसाब से तीन हिस्सों में बांटा है। पहला दौर 1971-72 से 1985-86 का है जब पंजाब का कृषि क्षेत्र 5.7 फीसदी की दर से वृद्धि कर रहा था और देश में कृषि की वृद्धि दर 2.3 फीसदी थी इस दौर में पंजाब कृषि में देश में सर्वोच्च स्तर पर था। दूसरा दौर 1986-87 से 2004-05 का दौर है। इस दौरान पंजाब का कृषि क्षेत्र तीन फीसदी की दर से बढ़ा और देश की कृषि वृद्धि दर 2.9 फीसदी रही थी। तीसरा दौर 2005-06 से 2018-19 का है जब पंजाब की कृषि वृद्धि दर 1.9 फीसदी और देश की कृषि वृद्धि दर 3.7 रही। यानी तीसरे दौर में पंजाब का कृषि क्षेत्र वृद्धि के मामले में देश की कृषि वृद्धि की दर से पिछड़ गया है। इसकी एक वजह यह भी बताई गई है कि पंजाब में फसलों की उत्पादकता अपने चरम पर है और देश के बाकी हिस्सों में यह पंजाब के करीब आ रही है। साथ ही गेहूं और चावल के चक्र को तोड़ने की जरूरत बताई गई है। इसके लिए लैंड लीजिंग की व्यवस्था को उदार करने, कृषि के विविधिकरण, पानी और बिजली की सब्सिडी को तर्कसंगत बनाने और उसके उपयोग को किफायती बनाने के लिए कहा गया है। इसके अलावा पंजाब को देश की सीड हब बनाने, फूड प्रोसेसिंग बढ़ाने, कृषि उपकरणों के आप्टिमम उपयोग के लिए कस्टम हायरिंग जैसी व्यवस्था को बढ़ावा देने समेत तमाम कदम बताये गये हे। वहीं हार्टिकल्चर, डेयरी, पिगरी, पॉल्ट्री को बढ़ावा देने की बातें कही गई हैं।
रिपोर्ट में कृषि के बाद का चैप्टर है रिवाइटलाइजिंग इंडस्ट्री, जिसमें सामान्य इंडस्ट्री और एमएसएमई पर दो हिस्सों में सिफारिशें दी गई है। इससे अगला चैप्टर है रोल आफ डिजिटाइजेशन। जिसमें बैटर गवर्नेंस और एग्री वैल्यू चेन को डिजिटाइज करने, फाइनेंसियस सर्विसेज फॉर एमएसएमई, एक्सपेंडिंग डिजिटल इंफ्रास्ट्रक्चर जैसी महत्वपूर्ण सिफारिशें हैं। अगला चैप्टर है बिल्ड ए स्टार्ट-अप इकोसिस्टम। यानी पंजाब की इकोनॉमी को बूस्ट करने और युवाओं लिए रोजोगार के अवसर पैदा करने लिए पंजाब को स्टार्ट-अप हब के रूप में स्थापित करना होगा और सरकार उसके लिए जरूरी इनवायरनमेंट बनाना होगा ताकि यहां निजी निवेश बढ़ सके। एक चैप्टर स्किल डेवलमेंट पर है और एक सोशल सेक्टर इनीशिएटिव्स पर है। इनमें प्राथमिक शिक्षा में बदलाव से लेकर उच्च शिक्षा की स्थिति सुधारने के लिए सिफारिशें भी की गई हैं।
अंतिम चैप्टर है पंजाब की फाइनेंशियल सिचुएशन। जो पंजाब के मौजूदा पब्लिक फाइनेंस की स्थिति सुधारने पर बात करता है और उसके लिए उपाय सुझाता है। जाहिर है सब कुछ तो फाइनेंसेज पर ही निर्भर करेगा। रिपोर्ट के अंतिम हिस्से में इसकी सिफारिशों पर अमल कैसे किया जाए, उसका भी सुझाव दिया गया है। इसमें सीधे मुख्यमंत्री कार्यालय या चीफ सेक्रेट्री के स्तर इन सिफारिशों को लागू करने का व्यवस्था करने की बात कही गई है।
समिति के कई सदस्यों का कहना है कि ड्राफ्ट को अंतिम रिपोर्ट कैसे मान सकते है, जबकि अंतिम रिपोर्ट अभी तक तैयार नही हुई है। लेकिन जिस तरह से मामला मीडिया में उछला है उससे पंजाब की इकोनॉमी को कृषि अर्थव्यवस्था से निकालकर सर्विस और इंडस्ट्रियल इकोनॉमी के रास्ते पर ले जाने का जो रोडमैप इस कमेटी ने सुझाया है वह नजरअंदाज हो गया है। जबकि रिपोर्ट का छोटा-सा हिस्सा जिस पर राज्य सरकार राजनीतिक कारणों से शायद ही अमल करे, वह केंद्रीय मुद्दा बन गया है।