खाद्य तेलों पर सीमा शुल्क कटौती के फैसले में किसानों के हितों की अनदेखी
सरकार ने खाद्य तेलों पर खाद्य तेलों पर स्टॉक डिक्लेरेशन और स्टॉक लिमिट लगाने जैसे कदमों के बाद इनके आयात पर सीमा शुल्क दरों में कटौती की है। यह फैसला कहने के लिए तो त्यौहारी सीजन में कीमतों में कमी लाने के लिए लिया गया है लेकिन त्यौहारी सीजन के बीच लिये गये इस फैसले के नतीजे मिलने तक दीवाली जैसे बड़े त्यौहार भी निकल जाएंगे। लेकिन इस कदम ने किसानों के बीच गलत संदेश भेजा है क्योंकि जहां खरीफ की तिलहन फसल के बाजार में आने के समय यह फैसला लिया गया है वहीं रबी तिलहनों की बुआई के समय किसानों के फसल चयन के फैसले पर इसका प्रतिकूल असर पड़ेगा
पिछले करीब छह माह में देश में खाद्य तेलों की कीमतों में 50 फीसदी से अधिक की बढ़ोतरी हुई है और सरकार द्वारा उठाये गये तमाम कदम इस कीमत वृद्धि पर अंकुश लगाने में कारगर साबित नहीं हो रहे हैं। हाल ही में सरकार ने खाद्य तेलों पर खाद्य तेलों पर स्टॉक डिक्लेरेशन और स्टॉक लिमिट लगाने जैसे कदमों के बाद इनके आयात पर सीमा शुल्क दरों में कटौती की है। यह फैसला कहने के लिए तो त्यौहारी सीजन में कीमतों में कमी लाने के लिए लिया गया है लेकिन त्यौहारी सीजन के बीच लिये गये इस फैसले के नतीजे मिलने तक दीवाली जैसे बड़े त्यौहार भी निकल जाएंगे। लेकिन इस कदम ने किसानों के बीच गलत संदेश भेजा है क्योंकि जहां खरीफ की तिलहन फसल के बाजार में आने के समय यह फैसला लिया गया है वहीं रबी तिलहनों की बुआई के समय किसानों के फसल चयन के फैसले पर इसका प्रतिकूल असर पड़ेगा।
सरकार ने खाद्य तेलों की महंगाई से राहत देने के लिए क्रूड पाम ऑयल पर सीमा शुल्क 24.75 फीसदी से घटाकर 8.25 फीसदी, आर. बी.डी पामोलिन और आर बीडी पाम ऑयल पर 35.75 फीसदी से घटाकर 19.25 फीसदी, क्रूड सोयाबीन ऑयल पर 24.75 फीसदी से घटाकर 5.5 फीसदी कर दिया गया है। खाद्य तेल की कीमतों में वृद्धि को रोकने के लिए सरकार ने कई कदम उठाए हैं। इसके पहले सरकार ने 29 जून, 2021 को केंद्र सरकार ने खाद्य तेलों के आयात पर एग्रीकल्चर इंफ्रास्ट्रक्चर सेस में भी कमी कर दी थी।
इससे पहले उपभोक्ता मामले, खाद्य और सार्वजनिक वितरण मंत्रालय ने तेल और तिलहन पर स्टॉक लिमिट लगाने का आदेश जारी किया था । जिसका उद्देश्य खाने वाले तेल की कीमतों को नियंत्रित करना है। इससे पहले उपभोक्ता मामले, खाद्य और सार्वजनिक वितरण मंत्रालय ने तेल और तिलहन पर स्टॉक लिमिट लगाने का आदेश जारी किया था । स्टॉक की सीमा 31 मार्च, 2022 तक लागू रहेगी। राज्यों को आदेश जारी करने और उन्हें सख्ती से लागू करने के लिए कहा गया है।
खाद्य और उपभोक्ता मामलों के मंत्रालय के प्राइज मानिटरिंग सेल (पीएमसी) द्वारा एकत्रित आंकड़ों से पता चलता है कि अधिकांश खाद्य तेल 130 रुपये से 190 रुपये प्रति लीटर के बीच बिक कर रहे हैं। उत्तर प्रदेश, पंजाब, हिमाचल प्रदेश, गोवा और उत्तराखंड में अगले साल की शुरुआत में होने वाले चुनाव में खाद्य तेल की उच्च कीमतों पर उपभोक्ताओं की नाराजगी का सामना सरकार नहीं करना चाहेगी।
सरकार के इन फैसलों पर रूरल वॉयस के बात करते हुए भारत कृषक समाज के चेयरमैन अजय वीर जाखड़ ने सरकार द्वारा इस समय खाद्य तेलों पर आयात शुल्क घटाने के फैसले को गलत बताते हुए कहा कि इससे तिलनह फसलों की फार्मगेट की कीमतें कम होंगी और देश के तिलहन उत्पादक किसानों को नुकसान होगा । सरकार का यह कदम खाद्य तेलों में आत्मानिर्भरता हासिल करने के सरकार के खुद के लक्ष्य के प्रतिकूल है। सरकार अपने फायदे के लिए शहरी वोट बैंक, मध्यम वर्ग के वोट बैंक पर निर्भर है। उसकी प्राथमिकता उपभोक्ता हितों को नुकसान पहुँचाने वाली खाद्य कीमतों पर अंकुश लगाना है। देश के किसानों का उपयोग वह अपने फायदे में करना चाहती है। उन्होंने कहा कि इस देश में किसानों का दुर्भाग्य है कि जब किसान के उत्पाद की कीमतें गिरती है और किसानों को आर्थिक नुकसान होता है तो अक्सर सरकार की तरफ से किसानों को कोई भी सहायता नहीं मिलती है। जबकि अमेरिका जैसे देश में किसान की उत्पादों की कीमतों में गिरावट आती है और किसानों को नुकसान होता है तो सरकार किसानों को मुआवजा देती है । हमारी सरकार की नीयत और हकीकत में बहुत बड़ा फासला है।
सरकार के आंकडों के अनुसार दौरान देश में कुल तिलहन उत्पादन 2.33 करोड़ टन अनुमानित है जो पिछले साल से लगभग तीन लाख टन अधिक है। अब सवाल उठ रहे है कि आखिर इस तरह का इस समय निर्णय क्यों लिया गया ।
खाद्य तेल उद्योग से जुड़े लोगों का कहना है कि सरकार के इस कदम के बावजूद खाद्य तेल की कीमतों में तत्काल भारी कमी नहीं आएगी । खाद्य तेल कारोबारियों के संगठन सेंट्रल आर्गनाइजेशन फार ऑयल इंडस्ट्री एंड ट्रेड (कॉएट) के मस्टर्ड क्रॉप कमेटी के चेयरमैन अनिल छत्रर ने रूरल वॉयस को बताया कि उपभोक्ताओं को तत्काल राहत नहीं मिल सकती है लेकिन पामोलीन ऑयल ,पॉम आयल औऱ सोयाबीन ऑयल का जल्द से जल्द आय़ात किया जाता है तो उपभोक्ताओं को 15 रुपये किलों तक की राहत मिल सकती है। सरकार ने कृषि इंफ्रास्ट्रक्चर उपकर और कस्टम ड्यूटी घटाई है लेकिन ग्लोबल मार्केट में इन खाद्य तेलो का मूल्य काफी अधिक होने से घरेलू उपभोक्ताओं को राहत नही मिल सकी । अनिल छत्रर का कहना है कि सरसों के तेल पर 7 से 8 रुपये की राहत मिल सकती है । उनके कहना है कि अगर सरकार सरसों के तेल पर जीएसटी खत्म करती है तो उपभोक्तताओं को 15 रुपये लीटर तक राहत मिल सकती है।
देश की खाद्य तेल जरूरत का दो तिहाई आयात के पूरा होता है। चालू तेल सीजन में खाद्य तेलों का आयात एक लाख करोड़ रुपये को पार कर सकती है। वहीं कुछ माह पहले पॉम ऑयल की कीमतों में कमी आई थी और वह मलयेशिया में जुलाई में 4200 रिंगिट प्रति टन तक आ गई थी लेकिन इस समय यह फिर से बढ़कर 5000 रिंगिट प्रति टन पर पहुंच गई हैं। यह दस साल का पॉम ऑयल की कीमतों का उच्चतम स्तर है। देश में आयात होने वाले खाद्य तेलों में सबसे अधिक हिस्सेदारी पॉम ऑयल की है। इसके अलावा सोयाबीन और सनफ्लॉवर तेल का भी आयात किया जाता है। लेकिन यह तेल पॉम ऑयल के मुकाबले महंगे हैं।