सहकारी शिक्षा कोष भारतीय राष्ट्रीय सहकारी संघ (एनसीयूआई) के पास ही रहना चाहिए : दिलीप संघानी
बहु-राज्यीय सहकारी समिति अधिनियम, 2002 के मसौदा संशोधन में प्रस्तावित प्रावधान के तहत सहकारी शिक्षा निधि को केंद्र सरकार द्वारा रखे जाने के प्रस्तावित प्रावधान पर भारतीय राष्ट्रीय सहकारी संघ (एनसीयूआई) के अध्यक्ष दिलीप संघानी ने कहा है कि बहु-राज्यीय सहकारी समिति अधिनियम, 2002 में मौजूदा प्रावधान के माध्यम से भारतीय राष्ट्रीय सहकारी संघ के पास सहकारी शिक्षा निधि रखने का और प्रबंधन का अधिकार है। वह अधिकार अपरिवर्तित रहना चाहिए
बहु-राज्यीय सहकारी समिति अधिनियम, 2002 के मसौदा संशोधन में प्रस्तावित प्रावधान के तहत सहकारी शिक्षा निधि को केंद्र सरकार द्वारा रखे जाने के प्रस्तावित प्रावधान पर भारतीय राष्ट्रीय सहकारी संघ (एनसीयूआई) के अध्यक्ष दिलीप संघानी ने कहा है कि बहु-राज्यीय सहकारी समिति अधिनियम, 2002 में मौजूदा प्रावधान के माध्यम से भारतीय राष्ट्रीय सहकारी संघ के पास सहकारी शिक्षा निधि रखने का और प्रबंधन का अधिकार है। वह अधिकार अपरिवर्तित रहना चाहिए। एनसीयूआई द्वारा जारी एक प्रेस रिलीज के मुताबिक संघानी ने आगे कहा कि सरकार द्वारा सहकारी शिक्षा कोष का रखरखाव एक संकेत देगा कि सरकार उस कोष को नियंत्रित करना चाहती है, जो सहकारिता के स्वायत्त सिद्धांतों के खिलाफ है। उन्होंने कहा कि यह इंटरनेशनल कोआपरेटिल अलायंस (आईसीए) के सहकारिता के चौथे सिद्धांत के खिलाफ होगा जो “स्वायत्तता और स्वतंत्रता“ है।
एनसीयूआई द्वारा विज्ञप्ति में कहा गया है कि एनसीयूआई सहकारिता आंदोलन की शीर्ष संस्था है। शिक्षण और प्रशिक्षण इसका मुख्य कार्य है। बहु-राज्यीय सहकारी समिति अधिनियम, 2002 की धारा 63 (1) (बी) के अनुसार, ’एक बहु-राज्यीय सहकारी समिति किसी भी वर्ष अपने शुद्ध लाभ में से एक प्रतिशत भारतीय राष्ट्रीय सहकारी संघ द्वारा बनाए गए सहकारी शिक्षा कोष में जमा करेगी। आजादी के बाद राज्यों की सहकारी समितियां अपने लाभ का एक प्रतिशत सहकारी शिक्षण और प्रशिक्षण के लिए धनराशि राज्य सहकारी संघ द्वारा बनाये शिक्षा कोष में जमा करती थी। इसी के तर्ज पर सहकारी शिक्षा कोष बहु-राज्यीय सहकारी समिति अधिनियम, 1984 के तहत बनाया गया था और सरकार के दिशानिर्देशों के अनुसार स्थापना के बाद से एनसीयूआई द्वारा इसका रख-रखाव किया जाता है। इस शिक्षा कोष समिति के अध्यक्ष भारतीय राष्ट्रीय सहकारी संघ के अध्यक्ष होते हैं। उसमें मंत्रालय के वरिष्ठ अधिकारी भी शामिल होते हैं, जिनकी मंजूरी विभिन्न शिक्षण और प्रशिक्षण कार्यक्रमों के लिए धनराशि स्वीकृत करने से पहले ली जाती है। पिछले कुछ वर्षों में, सरकार के शिक्षण और प्रशिक्षण कार्यक्रमों की एक कार्यान्वयन एजेंसी के रूप में, एनसीयूआई ने सहकारी समितियों के विभिन्न क्षेत्रीय क्षेत्रों में प्राथमिक से राष्ट्रीय स्तर तक बड़ी संख्या में कार्यालयों/गैर-अधिकारियों को प्रशिक्षित किया है, जिसकी व्यापक रूप से सराहना की गई है। समिति द्वारा तय किए गए शिक्षण और प्रशिक्षण कार्यक्रमों का वार्षिक लेखा, वार्षिक रिपोर्ट और आडिट रूप में परिलक्षित होता है, जिसे संसद में पेश किया जाता है। बहु-राज्यीय सहकारी अधिनियम 2002 में प्रस्तावित संशोधन प्रस्ताव के माध्यम से, सरकार निधि के संरक्षक के रूप में कार्य करना चाहती है ताकि संभवतः निधि की बेहतर निगरानी और प्रशासन हो।
एनसीयूआई का कहना है कि सदस्य संस्थानों के प्रतिनिधियों के विचारों के आधार पर एनसीयूआई ने शिक्षा कोष के महत्वपूर्ण मुद्दे सहित बहु-राज्यीय सहकारी समिति अधिनियम, 2002 के मसौदा संशोधनों से संबंधित विभिन्न मुद्दों पर अपनी चिंता व्यक्त की है और मंत्रालय को ये टिप्पणियां भेजी जा चुकी है। मसौदा संशोधनों पर विभिन्न राष्ट्रीय संघ, सदस्यों ने महसूस किया है कि केंद्र सरकार द्वारा शिक्षा कोष का प्रबंधन एनसीयूआई के महत्व को कम कर देगा जो सहकारी आंदोलन की शीर्ष संस्था है। इसके अलावा, यह भी आशंका है कि यदि केंद्र सरकार इस निधि को अपने नियंत्रण में लेती है, तो राज्य स्तर पर भी संबंधित राज्य सरकारें ऐसी निधियों को अपने नियंत्रण में ले सकती हैं, जो राज्य स्तर पर शिक्षण और प्रशिक्षण की गतिविधियों को प्रभावित कर सकती हैं। सदस्यों ने महसूस किया कि सहकारी सिद्धांतों के अनुसार सरकार को सहकारी समितियों के अधिकारों को नियंत्रित करने के बजाय उनका विकेंद्रीकरण करना चाहिए।