जलवायु परिवर्तन से भारत में फसलों पर हो सकता है बड़ा असर: क्रिसिल
दुनिया के अनेक हिस्सों में इस वर्ष भीषण हीटवेव, असमान बारिश, बाढ़, सूखा, आंधी और चक्रवाती तूफान का असर देखने को मिला। यह भारत या उपमहाद्वीप के दूसरे देशों के लिए ही नहीं बल्कि समस्त विश्व के लिए खतरे की घंटी है। इन आपदाओं की वजह से जानमाल को भी काफी नुकसान हुआ है
मानसून की बारिश से पहले हीट वेव, मानसून के दौरान बारिश की असमान प्रगति और मानसून के बाद भीषण बारिश- इस बार मौसम का हाल कुछ ऐसा ही रहा। इसने कई फसलों को प्रभावित किया। फसलें प्रभावित होने से देश में खाने-पीने की चीजों के दाम भी काफी बढ़ गए। रिसर्च और रेटिंग एजेंसी क्रिसिल ने अपनी नई रिपोर्ट में यह बात कही है।.
दुनिया के अनेक हिस्सों में इस वर्ष भीषण हीटवेव, असमान बारिश, बाढ़, सूखा, आंधी और चक्रवाती तूफान का असर देखने को मिला। यह भारत या उपमहाद्वीप के दूसरे देशों के लिए ही नहीं बल्कि समस्त विश्व के लिए खतरे की घंटी है। इन आपदाओं की वजह से जानमाल को भी काफी नुकसान हुआ है।
कई शोध बताती हैं कि एशिया में जलवायु परिवर्तन का असर सबसे अधिक भारत पर हो सकता है। जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र के अंतर सरकारी पैनल (आईपीसीसी) के एक विश्लेषण के अनुसार हीटवेव वाले दिनों की संख्या बढ़ने, सूखा और भीषण बारिश बार-बार होने, पानी की कमी और मिट्टी का क्षरण होने से भारत में कृषि पर बहुत अधिक दबाव होगा।
सरकारों के लिए जलवायु परिवर्तन मुख्य रूप से एक वित्तीय संकट बनकर उभरा है। मिस्र के शर्म अल शेख में हाल ही संपन्न जलवायु सम्मेलन सीओपी 27 में भारत ने अपनी दीर्घकालिक लो कार्बन डेवलपमेंट स्ट्रैटजी प्रस्तुत की। इसमें रिन्यूएबल अर्थात अक्षय ऊर्जा का विस्तार करने, ऊर्जा की खपत कम करने वाले उपाय लागू करने, जीवाश्म ईंधन का प्रयोग कम करने और एनर्जी मिक्स का अधिकतम इस्तेमाल करने का लक्ष्य निर्धारित किया गया है।
क्रिसिल की रिपोर्ट में कहा गया है जलवायु संकट से होने वाले नुकसान अब प्रत्यक्ष नजर आने लगे हैं। इसलिए अल्पावधि में भारत सरकार के कदम ऐसे होने चाहिए जिनसे कृषि क्षेत्र का जोखिम कम हो सके। यह सही है कि सरकार इस सेक्टर को आपदा से होने वाले नुकसान को नियंत्रित नहीं कर सकती है लेकिन यह सुधार के अन्य उपायों में तेजी जरूर ला सकती है। जैसे फसलों के नुकसान को कम करना, सिंचाई की बेहतर व्यवस्था करना, वेयरहाउसिंग सुविधाओं का निर्माण करना, शोध एवं विकास को प्रमोट करना और मौसम की मार को झेलने में सक्षम तथा अधिक पैदावार वाली किस्मों का विकास करना। खाद्य प्रसंस्करण और कोल्ड स्टोरेज में निवेश बढ़ाकर खाद्य पदार्थों की बर्बादी कम की जा सकती है।
क्रिसिल की रिपोर्ट में कहा गया है, भारत में मानसून के बदलते पैटर्न और एक्सट्रीम वेदर की परिस्थितियां बढ़ने को जलवायु परिवर्तन के असर के रूप में देखा जा सकता है। इससे एक बड़ी चिंता यह जाहिर होती है कि जलवायु परिवर्तन तथा भारत की अर्थव्यवस्था पर उसके प्रभाव का आकलन करना आवश्यक है। जलवायु परिवर्तन के असर को कम करने के लिए जिन देशों ने अभी तक कदम उठाए हैं उनसे भारत निश्चित रूप से कुछ सीख सकता है। लेकिन भारत की समस्याएं अन्य देशों की तुलना में कुछ अलग हैं। यहां रोजगार और आउटपुट के मामले में कृषि पर निर्भरता बहुत अधिक है। यहां खाद्य महंगाई को नियंत्रित करने की जद्दोजहद लगातार जारी है। बिजली के लिए जीवाश्म ईंधन पर निर्भरता बहुत अधिक है। उद्योगों में ग्रीन हाउस गैसों का उत्सर्जन ऊंचा है तथा जलवायु परिवर्तन की प्रतिक्रिया में कदम उठाने के लिए वित्तीय संसाधन सीमित हैं।