विश्व मृदा दिवस विशेषः दुनिया में एक-तिहाई मिट्टी की उर्वर क्षमता नष्ट, इनमें 70 साल पहले जितने पोषक तत्व नहीं
चिंता की बात यह है कि दुनिया में एक तिहाई मिट्टी खराब हो चुकी है। मिट्टी की उर्वर क्षमता नष्ट होने का मतलब है कि वह जमीन ज्यादा उपजाऊ नहीं होगी और उस जमीन पर उपजाए गए अनाज, फल-सब्जियां आदि में उतने विटामिन या अन्य पोषक तत्व नहीं होंगे जितने 70 साल पहले थे
हम जो खाना खाते हैं उसका 95% प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से मिट्टी से आता है। मिट्टी में उन पोषक तत्वों को स्टोर करने, उन्हें रूपांतरित करने और उनकी रीसाइक्लिंग की असाधारण क्षमता होती है, जिनकी जरूरत हमारे जिंदा रहने और जीवन को आगे बढ़ाने के लिए जरूरी है। पौधों में जो 18 आवश्यक पोषक तत्व होते हैं उनमें 15 मिट्टी से ही आते हैं। लेकिन चिंता की बात यह है कि दुनिया में एक तिहाई मिट्टी खराब हो चुकी है। मिट्टी की उर्वर क्षमता नष्ट होने का मतलब है कि वह जमीन ज्यादा उपजाऊ नहीं होगी और उस जमीन पर उपजाए गए अनाज, फल-सब्जियां आदि में उतने विटामिन या अन्य पोषक तत्व नहीं होंगे जितने 70 साल पहले थे।
संयुक्त राष्ट्र के खाद्य एवं कृषि संगठन (एफएओ) ने सोमवार को विश्व मृदा दिवस के अवसर पर एक रिपोर्ट जारी की जिसमें यह तथ्य बताए गए हैं। इस रिपोर्ट में कहा गया है कि अभी जो खाद्य एवं फर्टिलाइजर संकट चल रहा है उससे अफ्रीका, लैटिन अमेरिका और एशिया के अनेक देशों में छोटे किसानों के लिए ऑर्गेनिक अथवा रासायनिक उर्वरकों की दिक्कत हो गई है। उर्वरकों के दाम 300% बढ़ गए हैं।
यह रिपोर्ट खासतौर से ब्लैक सायल अर्थात काली मिट्टी पर है। इसकी खासियत है कि इसमें ऑर्गेनिक पदार्थ प्रचुर मात्रा में पाए जाते हैं। रूस में 32.7 करोड़ हैक्टेयर, कजाकिस्तान में 10.8 करोड़, चीन में 5 करोड़, अर्जेंटीना में चार करोड़, मंगोलिया में 3.9 करोड़, यूक्रेन में 3.4 करोड़, अमेरिका में 3.1 करोड़, कोलंबिया में 2.5 करोड़, कनाडा में 1.3 करोड़ और मेक्सिको में 1.2 करोड़ हेक्टेयर काली मिट्टी वाली जमीन है। अधिक उपजाऊ होने के कारण अनेक देशों के लिए इसे फूड बास्केट भी कहा जाता है। इसे वैश्विक खाद्य आपूर्ति के लिए भी आवश्यक माना गया है।
जैसा कि नाम है, ब्लैक सॉयल काले रंग का होता है। इनमें ऑर्गेनिक कार्बन प्रचुर मात्रा में पाया जाता है। यह दुनिया में सबसे अधिक उपजाऊ मिट्टी है। ब्लैक सॉयल खाद्य सुरक्षा और विश्व अर्थव्यवस्था के लिए महत्वपूर्ण है। वर्ष 2010 में 66% सनफ्लावर, 30% गेहूं और 26% आलू का उत्पादन काली मिट्टी में ही हुआ था. मोल्डेविया की 93% और यूक्रेन की 52% आबादी काली मिट्टी पर ही रहती है।
काली मिट्टी की एक और खासियत होती है इनमें जलवायु परिवर्तन के असर को कम करने और अनुकूलन के गुण पाए जाते हैं। मिट्टी में जो ऑर्गेनिक कार्बन होता है वह दुनिया का 8.2 प्रतिशत इसी मिट्टी में है। यह जलवायु परिवर्तन के असर को कम करने और अनुकूलन का सबसे सस्ता तरीका तो है ही, यह जमीन बंजर होने से बचाने और खाद्य और सुरक्षा से लड़ने में भी मददगार है।
लेकिन यह काला खजाना अब खतरे में है। जमीन का इस्तेमाल बदलने और एग्रो केमिकल का बड़े पैमाने पर इस्तेमाल किए जाने के कारण ज्यादातर इलाकों में काली मिट्टी में ऑर्गेनिक कार्बन का स्टॉक आधा रह गया है। यही नहीं, इस मिट्टी का तेजी से क्षरण हो रहा है और में पोषक तत्व का संतुलन बिगड़ रहा है। मिट्टी में एसिड की मात्रा अधिक हो रही है और जैव विविधता नष्ट हो रही है। रिपोर्ट के मुताबिक इस समय दुनिया में 31% काली मिट्टी पर खेती होती है।
रिपोर्ट में कहा गया है कि काली मिट्टी पर ग्रास लैंड जैसे प्राकृतिक पौधे, वन और वेटलैंड को संरक्षित करके तथा खेती वाली काली मिट्टी के क्षेत्र में रसायनों का इस्तेमाल बंद करके इन्हें संरक्षित किया जा सकता है।