एनबीएस के तहत सब्सिडी नहीं बढ़ाने का फैसला, डीएपी और दूसरे उर्वरकों के बढ़े दामों का रोलबैक मुश्किल
केंद्र सरकार ने गैर यूरिया उर्वरकों पर मिलने वाली सब्सिडी के लिए 9 अप्रैल को न्यूट्रिएंट आधारित सब्सिडी (एनबीएस) की दरों को 2020-21 के स्तर पर ही रखने का आफिस मेमोरेंडम जारी कर दिया। उर्वरक एवं रसायन मंत्रालय द्वारा शुक्रवार को जारी मेमोरेंडम में कहा गया है कि चालू वित्त वर्ष (2021-22) में अगले आदेश तक एनबीएस की पिछले वित्त वर्ष (2020-21) की दरें ही जारी रहेंगी। इससे साफ हो गया है कि अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे माल की कीमतों में बढ़ोतरी के चलते इफको, कृभको और निजी कंपनियों द्वारा 1 अप्रैल से डीएपी और कॉम्पलेक्स उर्वरकों की कीमतों में 45 फीसदी से 58 फीसदी तक की जो बढ़ोतरी की थी, उसके रोलबैक की संभावना नहीं रह गई है।
डीएपी और कॉम्पलेक्स उर्वरकों की कीमतों में भारी बढ़ोतरी के रोलबैक होने की संभावना लगभग समाप्त हो गई है। केंद्र सरकार ने गैर यूरिया उर्वरकों पर मिलने वाली सब्सिडी के लिए शुक्रवार 9 अप्रैल को चालू साल के लिए न्यूट्रिएंट आधारित सब्सिडी (एनबीएस) की दरों को पिछले साल (2020-21) के स्तर पर ही रखने के लिए आफिस मेमोरेंडम जारी किया। उर्वरक एवं रसायन मंत्रालय द्वारा शुक्रवार को जारी मेमोरेंडम में कहा गया है कि चालू वित्त वर्ष (2021-22) में अगले आदेश तक एनबीएस की दरें पिछले वित्त वर्ष (2020-21) के स्तर पर जारी रहेंगी। इससे साफ हो गया है कि अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे माल की कीमतों में बढ़ोतरी के चलते इंडियन फार्मर्स फर्टिलाइजर कोआपरेटिव लिमिटेड (इफको), कृषक भारती कोआपरेटिव लिमिटेड (कृभको) और निजी कंपनियों ने 1 अप्रैल, 2021 से डीएपी और कॉम्पलेक्स उर्वरकों की कीमतों में 58 फीसदी तक की जो बढ़ोतरी की है, उसके रोलबैक की संभावना नहीं रह गई है। कृभको, मंगलौर केमिकल एंड फर्टिलाइजर, जुआरी एग्रो और पारादीप फास्फेट लिमिटेड ने डीएपी की कीमत को बढ़ाकर 1700 रुपये प्रति बैग (50 किलो) कर दिया है। इफको की नई कीमतों में डीएपी का दाम 1200 रुपये से बढ़कर 1900 रुपये प्रति बैग (50किलो) हो गया है।
इफको द्वारा 7 अप्रैल को एक अंतरविभागीय पत्र में विनियंत्रित उर्वरकों की कीमतों में भारी बढ़ोतरी की जानकारी दी गई है। इसके मुताबिक 1 अप्रैल से डीएपी की कीमत 1200 रुपये से बढ़कर 1900 रुपये प्रति बैग (50 किलो), एनपीके 10:26:26 की कीमत 1175 रुपये बढ़कर 1775 रुपये प्रति बैग, एनपीके 12:32:16 की कीमत 1185 रुपये से बढ़कर 1800 रुपये और एनपीएस 20:20:0:13 की कीमत 925 रुपये से बढ़कर 1350 रुपये प्रति बोरी है। वहीं एनपीके 15:15:15 की कीमत 1500 रुपये प्रति बैग होगी। वहीं इफको ने एक बयान जारी कर कहा है कि उसके पास 11.26 लाख का कॉम्प्लेक्स उर्वरकों का पुराना स्टॉक मौजूद है और उसकी बिक्री पुरानी कीमतों पर ही जाएगी। हालांकि सूत्रों का कहना है कि इस स्टॉक की बिक्री बहुत जल्द हो जाएगी।
सूत्रों के मुताबिक कीमतों में बढ़ोतरी को लेकर शुक्रवार को उर्वरक मंत्रालय में एक उच्च स्तरीय बैठक भी की गई है। लेकिन उक्त सूत्र का कहना है कि एनबीएस की दरों को लेकर सरकार का जो फैसला हुआ है उसके मुताबिक इस स्कीम के तहत सब्सिडी की दरें पिछले साल के स्तर पर ही रहेगी। इस स्थिति में उर्वरक उत्पादकों के द्वारा कीमतों को रोलबैक करना लगभग असंभव है। अगर आने वाले समय में सरकार एनबीएस सब्सिडी में बढ़ोतरी करती है तो उसके बाद ही कीमतों में कोई बदलाव संभव होगा।
कृभको द्वारा डीएपी और कॉम्प्लेक्स उर्वरकों की 1 अप्रैल से तय कीमतें नीचे दिये पत्र में देखी जा सकती हैं।
केंद्र सरकार गैर-यूरिया उर्वरकों के लिए एनबीएस के तहत सब्सिडी की दरें तय करती है। यह दरें न्यूट्रिएंट के अनुसार होती हैं और उर्वरकों में इनकी मात्रा के अनुसार सब्सिडी का आकार तय होता है। इन न्यूट्रिएंट के लिए कच्चे माल में होने वाला उतार-चढ़ाव उर्वरकों की खुदरा कीमतें तय करता है क्योंकि सब्सिडी फिक्स होती है। पिछले छह माह में डीएपी और कॉम्पलेक्स उर्वरकों के कच्चे माल की कीमत में भारी बढ़ोतरी हुई है। नतीजा उर्वरक उत्पादकों ने इनकी कीमत में बढ़ोतरी कर दी। इस बढ़ोतरी को टालने का एक ही उपाय है और वह है सरकार द्वारा कच्चे माल की कीमतों में इजाफे के अनुपात में सब्सिडी में बढ़ोतरी करना। लेकिन यह नहीं हुआ है और सरकार का 9 अप्रैल का आफिस मेमोरेंडम साफ करता है कि सरकार तुरंत एनबीएस दरों में कोई बदलाव नहीं करेगी। गैर यूरिया उर्वरक विनियंत्रित हैं इसलिए इनकी कीमतों पर सरकार का नियंत्रण नहीं है। उत्पादक कंपनियां ही दाम तय करती हैं। वहीं यूरिया के दाम सरकार तय करती है और उस पर आने वाली लागत के आधार पर उत्पादन करने वाली कंपनियों को एक फार्मूले के तहत सब्सिडी देती है। इसके कच्चे माल की कीमतों होने वाले उतार-चढ़ाव का किसानों द्वारा यूरिया के लिए चुकाई जाने वाली कीमत पर कोई असर नहीं पड़ता है।
सरकार ने एनबीएस की जिन दरों को चालू वित्त वर्ष में जारी रखने का आदेश जारी किया है वह 3 अप्रैल, 2020 को निर्धारित की गई थी। उनके तहत नाइट्रोजन पर 18.789 रुपये प्रति किलो, फॉस्फोरस पर 14.888 रुपये किलो, पोटाश पर 10.116 रुपये किलो, सल्फर पर 2.374 रुपये प्रति किलो की सब्सिडी दी जाती है। इन सब्सिडी दरों के आधार पर 18 फीसदी नाइट्रोजन व 46 फीसदी फॉस्फोरस से बनने वाले डीएपी पर 10231 रुपये प्रति टन की सब्सिडी मिलती है। वहीं 60 फीसदी पोटाश वाले एमओपी पर सब्सिडी का स्तर 6070 रुपये प्रति टन और एनपीके 10:26:26 पर सब्सिडी का स्तर 8380 रुपये प्रति टन है। इस समय डीएपी की 540 डॉलर प्रति टन की आयातित कीमत पर 74.50 रुपये प्रति डॉलर के विनिमय रेट पर डीएपी की लागत 40230 रुपये प्रति टन बैठती है। इसके उपर 5.5 फीसदी सीमा शुल्क और बीमा, स्टोरेज, पैकेजिंग, ढुलाई भाड़ा और डीलर मार्जिन जैसे 3500 रुपये प्रति टन के खर्च जोड़कर लागत करीब 45950 रुपये प्रति टन बैठती है। जिसमें से 10231 रुपये की सब्सिडी घटाने और 5.5 फीसदी जीएसटी जोड़ने पर कंपनी को 37500 रुपये प्रति टन की लागत पड़ती है। इफको ने डीएपी का नया दाम 38000 रुपये प्रति टन तय किया है, जो 1900 रुपये प्रति बैग (50 किलो) बैठता है। जो लागत से 500 रुपये अधिक है। लेकिन जिस तरह से अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे माल की कीमत बढ़ रही है और डॉलर के मुकाबले रुपया कमजोर हो रहा है तो यह मार्जिन भी कंपनी के लिए खत्म हो सकता है।
उर्वरक उद्योग सूत्रों ने रुरल वॉयस को बताया कि पिछले करीब छह माह में अंतरराष्ट्रीय बाजार में उर्वरकों और उनके कच्चे माल की कीमतों में भारी बढ़ोतरी दर्ज की गई है। इस समय देश में डीएपी की आयातित कीमत 550 डॉलर प्रति टन पर पहुंच गई है। जबकि अक्तूबर, 2020 में यह कीमत 400 डॉलर प्रति टन थी। वहीं कच्चे माल के रूप में उपयोग होने वाली अमोनिया और सल्फर की कीमतें 280 डॉलर प्रति टन से बढ़कर 500 डॉलर प्रति टन और 85 डॉलर प्रति टन से बढ़कर 220 डॉलर प्रति टन पर पहुंच गई है। म्यूरेट ऑफ पोटाश की कीमत 230 डॉलर प्रति टन से बढ़कर 280 डॉलर प्रति टन और यूरिया की कीमत 275 डॉलर से बढ़कर 380 डॉलर प्रति टन पर पहुंच गई हैं।
उद्योग सूत्रों का कहना है कि गैर-यूरिया उर्वरकों की कीमत में 45 फीसदी से 58 फीसदी तक की बढ़ोतरी से इनकी बिक्री में कमी आ सकती है। इन महंगे उर्वरकों की बजाय सस्ते यूरिया की खपत बढ़ सकती है। जो किसानों के लिए फसलों के उत्पादन और मिट्टी की सेहत दोनों के लिए नुकसानदेह होगा। यूरिया इन उर्वरकों का विकल्प नहीं हो सकता है। वहीं यूरिया के अधिक उपयोग से पहले ही उर्वरकों का असंतुलित उपयोग एक बड़ी समस्या बना हुआ है क्योंकि इससे मिट्टी की उर्वरता पर प्रतिकूल असर पड़ता है। पिछले कई दशकों से उर्वरकों के संतुलित उपयोग को बढ़ावा देने की सरकार और उद्योग की मुहिम को कीमतों में इस बढ़ोतरी और सब्सिडी में बढ़ोतरी नहीं होने से झटका लगेगा। पिछले साल जब अंतरराष्ट्रीय बाजार में इन उर्वरकों के कच्चे माल की कीमत घटी थी तो सरकार ने एनबीएस के तहत सब्सिडी घटाने में जरा भी देर नहीं की थी। पिछले साल (2020-21) में देश में उर्वरकों की कुल बिक्री 677.02 लाख टन हुई थी इसमें से 350.42 लाख टन यूरिया की बिक्री हुई थी। जो इस साल और बढ़ सकती है। इसलिए अब गैर यूरिया उर्वरकों की खपत और कीमत की दिशा सरकार के अगले कदम से ही तय होगा।