नैनो यूरिया का फोलियर स्प्रे कारगरः आईसीएआर
स्टडी में पता चला कि पारंपरिक यूरिया की जगह नैनो यूरिया का पत्तों पर स्प्रे के रूप में प्रयोग किया जा सकता है। इसके अलावा, पौधों की जड़ में पारंपरिक यूरिया के निर्धारित डोज के साथ नैनो यूरिया का स्प्रे करने से उत्पादकता में भी 3% से 8% की वृद्धि देखने को मिली है।
भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) के अनुसार इफको के नैनो यूरिया (तरल) का पत्तों पर स्प्रे करने के प्रभाव का अध्ययन किया गया है। इसके लिए 20 जगहों पर चुनिंदा फसलों पर ट्रायल किया गया। इस स्टडी में पता चला कि पारंपरिक यूरिया की जगह नैनो यूरिया का पत्तों पर स्प्रे के रूप में प्रयोग किया जा सकता है। इसके अलावा, पौधों की जड़ में पारंपरिक यूरिया के निर्धारित डोज के साथ नैनो यूरिया का स्प्रे करने से उत्पादकता में भी 3% से 8% की वृद्धि देखने को मिली है। केंद्रीय रसायन एवं उर्वरक राज्य मंत्री भगवंत खूबा ने 4 अगस्त को लोकसभा में एक सवाल के लिखित जवाब में यह जानकारी दी।
कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय ने नैनो यूरिया को फर्टिलाइजर कंट्रोल ऑर्डर 1985 के तहत नैनो नाइट्रोजन फर्टिलाइजर के तौर पर नोटिफाई किया है। आईसीएआर ने यह भी बताया है कि इंडियन फार्मर्स फर्टिलाइजर कोऑपरेटिव लिमिटेड (इफको) और कोरोमंडल इंटरनेशनल लिमिटेड (सीआईएल) ने नैनो डीएपी का विकास किया है। आईसीएआर के चुनिंदा संस्थानों तथा राज्य कृषि विश्वविद्यालयों में कुछ फसलों पर इनका प्राथमिक फील्ड ट्रायल भी किया गया। इस ट्रायल में संकेत मिले हैं कि सीड ट्रीटमेंट और पत्तों पर नैनो डीएपी के प्रयोग से पारंपरिक रूप से दानेदार डीएपी की बचत की जा सकती है।
सरकार ने नैनो डीएपी को भी फर्टिलाइजर कंट्रोल ऑर्डर 1985 के तहत नोटिफाई किया है। सीआईएल और इफको को नैनो डीएपी बनाने की अनुमति दी गई है। इफको ने कलोल, फूलपुर और आंवला में 17 करोड़ बोतल (एक लीटर की हर बोतल) की क्षमता वाले नैनो यूरिया प्लांट स्थापित किए हैं।
इफको ने कलोल प्लांट में इस साल मार्च से डीएपी का कमर्शियल उत्पादन शुरू किया है। कांडला और पारादीप में दो और प्लांट शुरू किए जाएंगे। सीआईएल ने भी आंध्र प्रदेश में अत्याधुनिक नैनो डीएपी उत्पादन का प्लांट लगाया है। इसकी क्षमता चार करोड़ बोतल हर साल की है।
खेती में रासायनिक उर्वरकों का इस्तेमाल कम करने के लिए सरकार मिट्टी की जांच पर आधारित उर्वरकों के संतुलित प्रयोग को बढ़ावा दे रही है। इसके अलावा ऑर्गेनिक और बायो उर्वरकों के इस्तेमाल को भी बढ़ावा दिया जा रहा है। परंपरागत कृषि विकास योजना, नमामि गंगे, भारतीय प्राकृतिक कृषि पद्धति, मिशन ऑर्गेनिक वैल्यू चेन डेवलपमेंट फॉर नॉर्थ ईस्टर्न रीजन (MOVCDNER), नेशनल प्रोजेक्ट ऑन ऑर्गेनिक फार्मिंग (NPOF) जैसी योजनाओं के माध्यम से किसानों को ऑर्गेनिक तथा बायो उर्वरकों का इस्तेमाल करने में मदद मुहैया कराई जा रही है। नेशनल सेंटर फॉर ऑर्गेनिक फार्मिंग (NCOF) भी ऑर्गेनिक खेती को बढ़ावा देने के लिए जागरूकता अभियान तथा प्रशिक्षण कार्यक्रम चलाता है।
आर्थिक मामलों की कैबिनेट समिति (सीसीईए) ने जून में हुई बैठक में पीएम प्रणाम पहल को मंजूरी दी थी। यह पहल राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों की तरफ से मिट्टी की गुणवत्ता को बनाए रखने के आंदोलन का समर्थन करता है। इसमें उर्वरकों के टिकाऊ और संतुलित इस्तेमाल को बढ़ावा देने, वैकल्पिक उर्वरकों को अपनाने, ऑर्गेनिक खेती को बढ़ावा देने और संसाधनों की बचत वाली टेक्नोलॉजी को लागू करने पर फोकस किया जाता है। इस स्कीम में राज्यों को किसी विशेष वित्त वर्ष में रासायनिक उर्वरकों (यूरिया, डीएपी, एनपीके, एमओपी) की खपत कम करने से उर्वरक सब्सिडी में होने वाली बचत का 50% दिया जाता है। यह राशि राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को ग्रांट के रूप में दी जाती है। इसमें बीते 3 वर्षों के दौरान रासायनिक उर्वरकों की औसत खपत को आधार बनाया जाता है। सीसीईए की बैठक में मार्केट डेवलपमेंट स्टैंड स्कीम एमडीए को भी मंजूरी दी गई। इसमें ऑर्गेनिक उर्वरकों को प्रमोट करने के लिए 1500 रुपए प्रति मीट्रिक टन की राशि दी जाती है।