सरसों का भाव एमएसपी से नीचे, खाद्य तेल उद्योग ने सरकार से हस्तक्षेप की मांग की
नई सीजन की फसल बाजार में आने के साथ ही सरसों की कीमतें न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) से काफी नीचे चली गई हैं। गुरुवार को इस मुद्दे पर रूरल वॉयस ने विस्तृत रिपोर्ट प्रकाशित की थी।
खाद्य तेल उद्योग संगठन सॉल्वेंट एक्सट्रैक्टर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया (एसईए) ने सरसों की थाेक कीमतें 5,650 रुपये प्रति क्विंटल के एमएसपी से नीचे आने पर चिंता जताते हुए सरकार से तत्काल हस्तक्षेप का आग्रह किया है।एसईए के अध्यक्ष अजय झुनझुनवाला ने एमएसपी पर सरसों खरीद के लिए प्रमुख उत्पादन क्षेत्रों खरीद केंद्र स्थापित करने के लिए नेफेड को निर्देश देने का अनुरोध किया है। उन्होंने कहा कि सरसों की मौजूदा बाजार कीमतें एमएसपी से नीचे हैं, जिसे देखते हुए तत्काल सरकारी हस्तक्षेप की आवश्यकता है।
अभी गुजरात और कोटा संभाग को छोड़कर देश में सरसों की सरकारी खरीद शुरू नहीं हुई है। इस बीच, मंडियों में सरसों की आवक शुरू हो गई है और किसानों को एमएसपी से 1000 रुपये तक कम भाव पर सरसों बेचनी पड़ रही है। इससे तिलहन उत्पादक किसानों को काफी नुकसान उठाना पड़ रहा है। यह लगातार दूसरा साल है जब किसानों को सरसों में घाटा हुआ। इस साल पहले फसल पर मौसम की मार पड़ी और अब सही भाव नहीं मिल पा रहा है।
एसईए के सीनियर एडवाइजर तथा पूर्व अध्यक्ष अतुल चतुर्वेदी ने रूरल वॉयस को बताया कि अगर किसानों को सरसों का उचित दाम नहीं मिलेगा तो वे इसे उगाने से हतोत्साहित हो जाएंगे। यह उद्योग जगत के भी हित में नहीं होगा। सरसों ही ऐसी फसल है जो देश को खाद्य तेलों में आत्मनिर्भरता की तरफ ले जा सकती है। पाम प्लांटेशन को तैयार होने में कई साल लग जाते हैं। बड़ी कोशिशों के बाद किसानों का रुझान सरसों की तरफ बढ़ा था, इसलिए किसानों को उचित दाम मिलना जरूरी है।
एसईए ने खाद्य तेलों की बढ़ती आयात निर्भरता पर भी चिंता जताई है। भारत में पिछले साल 1.38 लाख करोड़ रुपये मूल्य के 165 लाख टन खाद्य तेलों का आयात हुआ था। देश में खाद्य तेलों की घरेलू जरूरत का करीब 57 फीसदी आयात के जरिए पूरा करता है। आयात पर निर्भरता कम करने के लिए तिलहन उत्पादन बढ़ाना जरूरी है।
खाद्य तेल उद्योग ने थोक मूल्य सूचकांक (डब्ल्यूपीआई) में खाद्य तेलों के वेटेज पर पुनर्विचार करने की भी मांग की है। एसईए का कहना है कि कुछ तेलों को दिया गया वेटेज उनके वास्तविक उपभोग रुझानों के अनुरूप नहीं है। इस बारे में हमने उपभोक्ता मामले, खाद्य और सार्वजनिक वितरण मंत्रालय से पुनर्विचार करने का आग्रह किया है।