सतत विकास लक्ष्यों के विपरीत दिशा में जा रही है दुनियाः एफएओ
रिपोर्ट के जो मुख्य नतीजे बताए गए हैं, उनमें प्रमुख है कि दुनिया एसडीजी के लक्ष्य को हासिल करने के रास्ते से 2020 से पहले ही भटक गई थी। बीते कुछ वर्षों में कई बड़े झटके लगे हैं जिनकी वजह से हम कुछ लक्ष्यों के विपरीत दिशा में चलने लगे हैं। इन झटकों में कोविड-19 महामारी का प्रभाव, दुनिया में जगह-जगह युद्ध, अत्यधिक महंगाई और जलवायु संकट का बढ़ता प्रभाव शामिल हैं।
वर्ष 2030 के सतत विकास यानी सस्टेनेबल डेवलपमेंट एजेंडा का लगभग आधा समय बीत गया है, लेकिन परेशानी की बात यह है कि खाद्य और कृषि से संबंधित जो लक्ष्य तय किए गए थे, उसे दिशा में आगे बढ़ना या तो ठहर गया है या हम पीछे आने लगे हैं। इससे गरीबी और भूख दूर करने, स्वास्थ्य एवं पोषण बेहतर बनाने और जलवायु परिवर्तन से लड़ने में हमारी चुनौतियां बढ़ गई हैं। संयुक्त राष्ट्र के खाद्य एवं कृषि संगठन (एफएओ) की ताजा रिपोर्ट में यह बात कही गई है।
‘ट्रैकिंग प्रोग्रेस ऑन फूड एंड एग्रीकल्चर रिलेटेड एसडीजी इंडिकेटर 2023’ शीर्षक से यह रिपोर्ट ऐसे समय प्रकाशित की गई है जब दुनिया भर के नेता न्यूयॉर्क में संयुक्त राष्ट्र के एसडीजी समिट में भाग लेने के लिए जमा होने वाले हैं। इस सम्मेलन में एजेंडा के 17 सतत विकास लक्ष्यों (एसडीजी) की प्रगति की समीक्षा की जाएगी।
रिपोर्ट लॉन्च करते हुए एफएओ के स्टैटिसटिक्स डिवीजन के डायरेक्टर जोश रोजेरो मोनकायो ने कहा, इस समय हम जो लक्ष्य के विपरीत दिशा में चल रहे हैं, एसडीजी सम्मेलन में उसे सुधारने के लिए सही कदमों और नतीजों की उम्मीद रहेंगी। ऐसा करने के लिए दुनिया के नेताओं को आंकड़ों की जरूरत पड़ेगी जिसके आधार पर वे फैसला ले सकें और प्राथमिकताएं तय कर सकें।
रिपोर्ट के जो मुख्य नतीजे बताए गए हैं, उनमें प्रमुख है कि दुनिया एसडीजी के लक्ष्य को हासिल करने के रास्ते से 2020 से पहले ही भटक गई थी। बीते कुछ वर्षों में कई बड़े झटके लगे हैं जिनकी वजह से हम कुछ लक्ष्यों के विपरीत दिशा में चलने लगे हैं। इन झटकों में कोविड-19 महामारी का प्रभाव, दुनिया में जगह-जगह युद्ध, अत्यधिक महंगाई और जलवायु संकट का बढ़ता प्रभाव शामिल हैं।
रिपोर्ट में कहा गया है कि एसडीजी इंडिकेटर में खाद्य और कृषि से संबंधित जो लक्ष्य तय किए गए थे, उनकी स्थिति ज्यादा शोचनीय है। वर्ष 2015 में दुनिया की 7.9% आबादी भूख के भीषण संकट से जूझ रही थी, वर्ष 2022 में ऐसे लोगों की संख्या बढ़कर 9.2% हो गई। एफएओ का आकलन है कि 2022 में 69.01 करोड़ से 78.3 करोड़ लोग भूख की समस्या से जूझ रहे थे। यही नहीं, कृषि में निवेश थम गया है, पशुओं के जेनेटिक संसाधनों को संरक्षित करने की दिशा में कोई प्रगति नहीं हो रही है और दुनिया में वन क्षेत्र का घटना लगातार जारी है। हालांकि पौधों के जेनेटिक संसाधनों के संरक्षण, पानी के बेहतर इस्तेमाल और अवैध तरीके से मछली पकड़ना रोकने जैसे मामलों में कुछ सकारात्मक ट्रेंड भी देखने को मिले हैं।
रिपोर्ट में बताया गया है कि दुनिया में अल्प पोषण की समस्या कोविड-19 महामारी से पहले के स्तर की तुलना में अब भी बहुत ज्यादा है। इसी तरह खाद्य असुरक्षा भी काफी बढ़ गई है। वर्ष 2019 में विश्व की 25.3% आबादी खाद्य असुरक्षा का सामना कर रही थी, जो 2022 में बढ़कर 29.6% हो गई।
वर्ष 2021 में खाद्य पदार्थों की मॉडरेट से लेकर अत्यधिक कीमतों का सामना 21.5% देश कर रहे थे। वर्ष 2020 में ऐसे देशों की संख्या रिकॉर्ड 48% पहुंच गई थी। एक साल में इसमें उल्लेखनीय कमी आई है। हालांकि इससे परेशान देशों की संख्या 2015-19 के औसत 15% से अब भी ज्यादा है। इससे पता चलता है कि खाद्य पदार्थों के दाम लगातार ऊंचे बने हुए हैं। इसकी प्रमुख वजह उर्वरक और ऊर्जा महंगे होने के कारण उत्पादन और परिवहन का खर्च बढ़ना है।
प्राकृतिक आपदाओं की वजह से 2021 में 19.3 अरब डॉलर के कृषि उत्पादों का नुकसान हुआ। यह आंकड़ा 22 देश से मिले इनपुट के आधार पर है। खेतों में फसल कटाई के बाद, परिवहन, भंडारण, थोक और प्रोसेसिंग के स्तर पर दुनिया में 2021 में 13.2% कृषि उपज नष्ट हो गई। 2016 में यह आंकड़ा 13% था।