सपा-रालोद के जाट-मुस्लिम समीकरण पर कितना होगा मायावती का असर
उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में बसपा अध्यक्ष मायावती की टिकट बंटवारे की रणनीति से पश्चिमी यूपी में जाट-मुस्लिम समीकरण बिगड़ने की संभावना है, यह सपा और रालोद गठबंधन के लिए परेशानी का सबब बन सकता है
उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में बहुजन समाज पार्टी (बसपा) अध्यक्ष मायावती की टिकट बंटवारे की रणनीति से पश्चिमी यूपी में जाट-मुस्लिम समीकरण बिगड़ने की संभावना है। यह समाजवादी पार्टी (सपा) और सहयोगी राष्ट्रीय लोक दल (रालोद) गठबंधन के लिए परेशानी का सबब बन सकता है। उत्तर प्रदेश में होने वाले पहले दो चरणों के चुनाव के लिए बसपा के घोषित कुल 109 उम्मीदवारों में से, 39 मुस्लिम उम्मीदवार हैं। इस तरह करीब 36 फीसदी टिकट मुसलमानों को दिए गए हैं। इसका सबसे ज्यादा असर पश्चिमी उत्तर प्रदेश के जिलों में है, जहां अल्पसंख्यक समुदायों की बड़ी आबादी है।
सपा-रालोद गठबंधन पश्चिमी यूपी में जाट और मुस्लिम गठबंधन को मजबूत करने की कोशिश कर रहा है। बसपा महत्वपूर्ण सीटों पर अल्पसंख्यक समुदाय के मजबूत उम्मीदवार उतारकर सपा-रालोद गठबंधन से बेहतर प्रदर्शन की उम्मीद कर रही है। सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) को हमेशा अल्पसंख्यक वोटों के विभाजन से फायदा हुआ है। इसलिए, करीबी मुकाबले वाली सीटों पर मुस्लिम वोटों का विभाजन भाजपा उम्मीदवारों के लिए जीत की संभावना बड़ा सकता है।
उत्तर प्रदेश के दूसरे चरण के लिए शनिवार को बसपा द्वारा जारी 51 उम्मीदवारों की दूसरी सूची में 23 मुस्लिम, 13 पिछड़ी जाति (ओबीसी), 10 जाट और 5 ऊंची जातियों के हैं। मुस्लिम उम्मीदवारों में अमरोहा से मोहम्मद नावेद अयाज, नौगांव सादत से शादाब खान, रामपुर से सदाकत हुसैन, संभल से शकील अहमद कुरैशी और अन्य शामिल हैं। बसपा के 58 उम्मीदवारों की पहली सूची में 16 मुस्लिम नाम हैं। इसके उलट सपा-रालोद गठबंधन ने अल्पसंख्यक समुदाय के सिर्फ 13 उम्मीदवारों को टिकट दिया है।
राजनीतिक विश्लेषकों के मुताबिक, उत्तर प्रदेश में पिछले विधानसभा और संसदीय चुनावों में बसपा को काफी सीटों का नुकसान हुआ है। लेकिन उसका अपना एक मतदाता वर्ग है जिसमें ज्यादा गिरावट नहीं आई है। जहां बीजेपी, एसपी और कांग्रेस सभी प्लेटफॉर्म और सोशल मीडिया के जरिए प्रचार प्रसार कर रही हैं, वहीं बसपा चुपचाप उम्मीदवारों के चयन की अपनी चुनावी रणनीति और बूथ और कैडर स्तर पर काम कर रही है। 2022 के उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में मायावती की बसपा छिपा रुस्तम साबित हो सकती हैं।
सपा-रालोद गठबंधन ने जहां मुस्लिम उम्मीदवारों को टिकट दिया है, वहीं कुछ निर्वाचन क्षेत्रों में उम्मीदवारों के चयन पर असंतोष के स्वर भी सामने आए हैं। अगर भाजपा चुनाव प्रचार के दौरान इस तरह की भावनाओं के साथ खेलती है, तो यह संभावित रूप से गठबंधन की संभावनाओं को नुकसान पहुंचा सकती है।
विपक्षी दल 2022 के यूपी चुनावों में सत्तारूढ़ भाजपा के खिलाफ हालिया कृषि कानूनों के विरोध और जाट समुदाय के गुस्से को भुनाने की कोशिश कर रहे हैं। लेकिन उनकी यह कोशिश सीट में बदले, इसके लिए जरूरी है कि मुस्लिम और जाट वोट विभाजित न हों और सपा-रालोद उम्मीदवारों को एक साथ वोट दें।
उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव के लिए मतदान 10, 14, 20, 23, 27 फरवरी और 3 और 7 मार्च को सात चरणों में होंगे। मतगणना 10 मार्च को होगी।