लखनऊ की मंजू वर्मा ने घर की छत पर बनाया किचन गार्डेन, 400 गमलों में उगाती हैं फल और सब्जियां
70 साल की मंजू वर्मा ने 23 साल पहले कुछ गमलों में और कुछ ड्रमों में फलों के पेड़ों के नीचे मौसम के अनुसार सब्जियां उगानी शुरू की थीं। अब आलम यह है कि घर की छत पर 400 से अधिक गमले रखे हुए हैं, जिनमें कई प्रकार की सब्जियां हैं
शहरवासियों की अक्सर ये शिकायत रहती है कि उनके पास समय नहीं है, ज़मीन नहीं है, फिर वे खेती-किसानी की भला कैसे सोच सकते हैं? ऐसे लोगों को लखनऊ के चारबाग की 70 वर्षीय प्रगतिशील महिला मंजू वर्मा से काफी कुछ सीखने की जरूरत है। मंजू वर्मा घर की सारी ज़िम्मेदारियां निपटाने के साथ अपनी छत पर गमलों में इतना कुछ उपजा लेती हैं कि घर के लिए बाहर से सब्जियां नहीं खरीदनी पड़ती। उन्होंने 23 साल पहले कुछ गमलों में और कुछ ड्रमों में फलों के पेड़ों के नीचे मौसम के अनुसार सब्जियां उगानी शुरू की थीं। अब आलम यह है कि घर की छत पर 400 से अधिक गमले रखे हुए हैं, जिनमें कई प्रकार की सब्जियां हैं।
मंजू जी बताती हैं, आज के समय शहरों में ताजी सब्जियां मिलनी मुश्किल है। दूसरी तरफ बाजार में अधिकतर सब्जियां केमिकल युक्त होती हैं जो शरीर के लिए हानिकारक है। अपने परिवार के लिए छत के खाली जगह पर गमलों में पौष्टिक सब्जियां उगाकर जब ताजी सब्जियां तोड़कर उन्हें खाया जाता है, तो दिल को एक तरह की राहत मिलती है कि परिवार को अच्छा खाना मिल रहा है। जो कोई भी पौधों से प्यार करता है या अपने परिवार और खुद की अच्छी सेहत चाहता है, वह बिना किसी अतिरिक्त खर्च के अपने घर की छत पर जैविक फल और सब्जियां उगा सकता है।
छत पर गमले बने खेत
मंजू जी को बागवानी का शौक विरासत में मिला। उनके पिता को देश के पहले राष्ट्रपति राजेन्द्र प्रसाद ने कृषि पंडित से सम्मानित किया था। मंजू जी ने इन सबकी शुरुआत 23 साल पहले की थी। लाख व्यस्तता के बावजूद उन्होंने न सिर्फ़ अपने इस शौक को जिंदा रखा, बल्कि ज़मीन उपलब्ध नहीं थी तो सैकड़ों गमलों की ऐसी व्यवस्थित श्रृंखला बना ली कि छत अब किसी खेत से कम नहीं लगता। लाल-पीले बड़े रंगीन शिमला मिर्च, फूल गोभी, हरी मिर्च से, घना पुदीना, स्वस्थ बड़ा सा ब्रोकली, लंबे-लंबे सेम, बैंगन, और पत्तागोभी सलाद, सब कुछ उनकी छत पर मिल जाएंगे।
आप सोच रहे होंगे कि भला मंजू जी इतना सब कैसे करती हैं? दरअसल वे खेती की पत्रिकाओं, विशेषज्ञों और सेमिनार से लेकर दुकानदार तक से जानकारी इकट्ठा करती हैं। हर दिन सुबह या शाम निराई, सिंचाई आदि के लिए औसतन एक से दो घंटे देती हैं। मंजू जी के शौक का ख्याल रखते हुए अमेरिका में रहने वाले बेटे-बहू वहां से सब्जियों की अलग-अलग क़िस्मों के बीज और दूसरी चीजें भेजते रहते हैं। मंजू जी कंपोस्ट, वर्मी कंपोस्ट और अलग-अलग तरह की जैविक खादों का इस्तेमाल करती हैं।
तन-मन-धन सबका फ़ायदा
वे कहती हैं कि इस किचन गार्डेनिंग से मन को सुकून तो मिलता ही है, साथ ही ताज़ा फल-सब्जी मिलती है जिसका टेस्ट बाज़ार से लाई सब्जियों में भला कहां मिलेगा? वह कहती हैं, घर की महिलाएं आसानी से घर की छत पर गमलों में खेती कर सकती हैं। पुरुष भी उनका साथ दे सकते हैं। अगर शहर में रहने वाली महिलाएं अपनी रोज की दिनचर्या में से अगर थोड़ा वक्त निकाल लें तो वे कहीं ज्यादा फायदे में रहेंगी। इस लगन की वजह से मंजू जी की चर्चा दूर-दूर तक है। उन्हें कई सम्मान भी मिल चुके हैं, जिन्हें याद कर वे गर्व से भर उठती हैं।
प्रति दिन प्रति व्यक्ति 300 ग्राम सब्जी जरूरत
सब्जी विशेषज्ञ और कृषि विज्ञान केन्द्र मोतिहारी बिहार के प्रमुख डॉ. अभिषेक प्रताप सिंह के अनुसार भारत में अनाज के बंपर उत्पादन के बावजूद कुपोषण ने विकराल रूप धारण कर लिया है। हम पोषण वाटिका के माध्यम से परिवार के पोषण स्तर में सुधार ला सकते हैं। पोषण वाटिका के महत्वों को लोगों को समझना होगा। उन्होंने बताया कि भारतीय चिकित्सा अनुसन्धान परिषद (ICMR) के अनुसार प्रति दिन प्रति व्यक्ति को 300 ग्राम सब्जियों का सेवन करना चाहिए। हरी पत्तेदार सब्जी 115 ग्राम, जड़/कंद वाली सब्जी115 ग्राम और अन्य सब्जी 70 ग्राम होनी चाहिए। डॉ. अभिषेक के अनुसार एक औसत परिवार को सालभर सब्जियां प्राप्त करने के लिए 200 से 250 वर्ग मीटर का क्षेत्रफल पर्याप्त होता है। इसमें छोटी-छोटी क्यारियां बनाकर उसमें परिवार की पसंद की सब्जियों का फसल-चक्र अपनाया जा सकता है। उन्होंने कहा कि शहरों में रहने वालों के पास अगर जमीन नहीं है तो छत पर गमलों में आसानी से पोषण वाटिका तैयार कर सकते हैं।