धान का रकबा 31 लाख हैक्टेयर कम रहने और पंजाब, हरियाणा में पौधों के बौनेपन की अनजान बीमारी से उत्पादन घटने की आशंका बढ़ी
चालू खरीफ सीजन में धान का क्षेत्रफल पिछले साल के मुकाबले 31 लाख हैक्टेयर कम बना हुआ है। क्षेत्रफल में इस कमी से चावल उत्पादन में गिरावट की आशंका पहले से ही बन रही थी लेकिन पिछले करीब एक माह में पंजाब, हरियाणा और उत्तराखंड में धान की फसल में पौधों के बौनेपन की एक रहस्यमय अनजान बीमारी ने किसानों की चिंता बढ़ा दी है। धान की अधिकांश किस्मों में पांच से 20 फीसदी तक पौधों का विकास रूक गया है और वह खेत में अन्य पौधों के साथ बढ़ नहीं रहे हैं। वैज्ञानिकों का मानना है कि इसकी वजह बॉयोलॉजिकल हो सकती है और जिसके पीछे वायरस या बैक्टीरिया है
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चालू खरीफ सीजन में धान का क्षेत्रफल पिछले साल के मुकाबले 31 लाख हैक्टेयर कम बना हुआ है। सरकार द्वारा रविवार शाम जारी आंकडों के मुताबिक 18 अगस्त तक धान का क्षेत्रफल 343.7 लाख हैक्टेयर रहा जबकि पिछले साल इसी समय यह 374.6 लाख हैक्टेयर रहा था। धान के क्षेत्रफल में इस कमी से चावल उत्पादन में गिरावट की आशंका पहले से ही बन रही थी लेकिन पिछले करीब एक माह में पंजाब, हरियाणा और उत्तराखंड में धान की फसल में पौधों के बौनेपन की एक रहस्यमय अनजान बीमारी ने किसानों की चिंता बढ़ा दी है। धान की अधिकांश किस्मों में 10 से 20 फीसदी तक पौधों का विकास रूक गया है और वह खेत में अन्य पौधों के साथ बढ़ नहीं रहे हैं। इसके चलते उत्पादन में कमी होने की आशंका बढ़ गई है। किसानों की मुश्किल यह है कि कृषि वैज्ञानिक और शोध संस्थान अभी तक धान के पौधों में आ रही इस समस्या का पता नहीं लगा पा रहे है कि पौधों के विकास के रूकने की इस समस्या के पीछे मिट्टी में उर्वर तत्वों की कमी है या कोई ऐसा बैक्टीरिया या वायरस है जो इस समस्या को पैदा कर रहा है। भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (आईएआरआई), पूसा के डायरेक्टर डॉ. ए.के. सिंह का कहना है कि इस बीमारी के पीछे बॉयोलॉजिकल वजह अधिक दिखती है। हमने इसके सैंपल लेकर बीमारी की पहचान का काम शुरू कर दिया है।
इस बारे में रूरल वॉयस के साथ एक बातचीत में डॉ. ए.के. सिंह ने बताया कि इस बीमारी में पौधे रोपाई के करीब 20 बाद बढ़ना बंद कर देते हैं। इसके साथ ही इन पौधों की जड़ों का विकास भी रूक जाता है और जड़ें काली पड़ जाती हैं। उन्होंने कहा कि इस बात की आशंका थी कि इसकी वजह जमीन में माइक्रो न्यूट्रिएंट की कमी हो सकती है लेकिन उसका असर पूरे खेत पर पड़ता कुछ पौधों पर नहीं है। इसलिए इसके पीछे बॉयलोजिकल की कारण ही अधिक लगता है।
उन्होंने बताया कि वह खुद हरियाणा के एक गांव में गये थे जहां उन्होंने खेतों में इस बीमारी का निरीक्षण किया। संस्थान इन पौधों के सैंपल लेकर आया है ताकि बीमारी की वजह का पता लगाया जा सके। डॉ. ए.के. सिंह के मुताबिक इसकी वजह ग्रास स्टंटिंग प्लांट्स (जीएसटी) वायरस हो सकता है। इसके साथ ही एक बैक्टीरिया फाइटोप्लाज्मा इसकी वजह हो सकता है। हमने इसके सैंपल से डीएनए आईसोलेट किया है। जिसमें फाइटोप्लाज्मा की ग्रोथ दिखी है। हमने इनको जीन सिक्वेंसिंग के लिए भेज दिया है जिसके बाद समस्या का सही आकलन किया जा सकेगा।
नीचे दी गई तस्वीर में धान के खेत में प्रभावित पौधों की तस्वीर, फोटो साभार, आईएआरआई
डॉ. सिंह के मुताबिक इस तरह की समस्या पहले भी आई है लेकिन यह काफी पुरानी बात है और दक्षिण भारत के राज्यों से इस तरह की बीमारी तब सामने आई थी। जहां तक बीमारी के स्तर की बात है तो उसके बारे में उन्होंने बताया कि यह बीमारी अधिकांश किस्मों है और पौधों के बौनेपन की समस्या पांच फीसदी से 10 फीसदी के बीच है। लेकिन कुछ किस्मों में यह अधिक है। धान की पीएयू 121 किस्म में यह समस्या सबसे अधिक 20 से 25 फीसदी तक है।
जिस तरह से बीमारी का दायरा पंजाब, हरियाणा और उत्तराखंड तक फैला है उसके चलते उत्पादन पर प्रतिकूल असर पड़ेगा। इसकी वजह यह है कि इन राज्यों में चावल उत्पादकता का स्तर देश में औसत उत्पादकता 2.7 टन प्रति हैक्टेयर के मुकाबले 4.5 टन प्रति हैक्टेयर तक है।
वहीं धान का क्षेत्रफल घटने वाले राज्यों में उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड, पश्चिम बंगाल, छत्तीसगढ़, तेलंगाना, आंध्र प्रदेश और मध्य प्रदेश शामिल हैं।
पहले से ही बाजार में गेहूं की बढ़ती कीमतों के बाद चावल की कीमतों में भी बढ़ोतरी चल रही है। ऐसे में फसल क्षेत्रफल घटने और अधिक उत्पादकता वाले राज्यों में इस अनजान बीमारी से होने वाले नुकसान से उत्पादन में गिरावट आती है तो उसका असर देश चावल की कीमतों और निर्यात संभावनाओं पर पड़ सकता है।