पूर्वोत्तर क्षेत्रों में ऑयल पॉम प्लांटेशन का अगाथा संगमा ने किया विरोध , इको-सिस्टम और सामाजिक संतुलन बिगड़ने की आशंका जताई
हाल ही में केंद्र सरकार द्वारा ऑयल पॉम प्लांटेशन के जरिये खाद्य तेलों में आत्मनिर्भरता के लिए लागू किये गये मिशन ऑयल पॉम को लेकर विरोध के स्वर तेज होते जा रहे हैं। कई पर्यावरणविदों के बाद मेघालय की तुरा लोक सभा सीट से सांसद अगाथा संगमा ने प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी को एक पत्र लिखकर केंद्रीय मंत्रीमंडल द्वारा मंजूर की गई एनएमईओ-ओपी (नेशनल मिशन ऑन एडिबल ऑयल- ऑयल पाम) योजना को पूर्वोत्तर के क्षेत्रों में लागू करने पर आपत्ति जताई है ।
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हाल ही में केंद्र सरकार द्वारा ऑयल पॉम प्लांटेशन के जरिये खाद्य तेलों में आत्मनिर्भरता के लिए लागू किये गये मिशन ऑयल पॉम को लेकर विरोध के स्वर तेज होते जा रहे हैं। कई पर्यावरणविदों के बाद मेघालय की तुरा लोक सभा सीट से सांसद अगाथा संगमा ने प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी को एक पत्र लिखकर केंद्रीय मंत्रीमंडल द्वारा मंजूर की गई एनएमईओ-ओपी (नेशनल मिशन ऑन एडिबल ऑयल- ऑयल पाम) योजना को पूर्वोत्तर के क्षेत्रों में लागू करने पर आपत्ति जताई है ।
संगमा का कहना है कि कैबिनेट ने खाद्य तेलों के आयात पर निर्भरता को कम करने के लिए एनएमईओ-ओपी योजना की मंजूरी दी है। सरकार ने इस योजना के लिए 11,040 करोड़ रुपये आवंटित किए हैं ताकि खाद्य तेल के आयात और देश के कुल आयात मे कमी लाई जा सके, जो निश्चित तौर से एक सराहनीय कदम है। लेकिन पूर्वोत्तर के क्षेत्रों में इसके लिए ऑयल पॉम का प्लांटेशन करने की योजना वहां की इकोलॉजी और सामाजिक ढांचे के लिए घातक साबित हो सकती है।
प्रधानमंत्री को लिखे पत्र में संगमा ने कहा है कि इस योजना को बारीकी से देखा जाय तो चिंता का विषय यह है कि पूर्वोत्तर क्षेत्र और अंडमान द्वीप समूह में पॉम प्लांटेशन के लिए जो इलाके चयनित किए गये हैं वह जैव विविधता के हॉटस्पॉट हैं और यहां का इको-सिस्टम काफी नाजुक है । एक तरफ पॉम के पौधों के रोपण से पूरी तरह से वहां के वन क्षेत्र को नुकसान पहुंचेगा और जंगल समाप्त हो जाएंगे, तो दूसरी तरफ उन वन क्षेत्र में रहने वाले वन्य जीव और वहां के पशु पक्षी विलुप्त हो जाएंगे । इस तरह इस क्षेत्र में पॉम प्लांटेशन वाली योजना का विनाशकारी प्रभाव पड़ेगा।
संगमा ने पत्र में कहा कि पॉम का पौधा पूर्वोत्तर का स्थानीय पौधा नहीं है । इस तरह से विदेशी पॉम के पौधे लगाने से अधिक जल अवशोषण होगा जिससे भू जल पर गहरा संकट आ जाएगा । इसके कारण इको-सिस्टम बिगड़ जाएगा।
दूसरी चिंता सामाजिक-सांस्कृतिक मुद्दे की है । शेष भारत की तुलना में उत्तर पूर्व भारत कम आबादी वाला क्षेत्र है जहां कई जनजातियां अपनी सांस्कृतिक विरासत और प्रथाओं के साथ अपनी अलग पहचान रखती हैं । कई जगहों पर यहां आदिवासी और जनजातियों का सामुदायिक स्वामित्व होता है। किसी भी आदिवासी समाज के लिए उसकी जमीन ही उसके जीवन का मुख्य केंद्र बिंदू होता है । इसलिए किसी भी व्यवसायिक लाभ के लिए इस तरह का वृक्षारोपण आदिवासियों को उनकी बेशकीमती जमीन से अलग कर देगा और सामाजिक ताने-बाने पर बहुत बुरा असर पड़ेगा ।
उन्होंने कहा कि मैं पूर्वोत्तर क्षेत्र के लोगों पर एनएमईओ-ओपी योजना के एकतरफा थोपे जाने के सख्त खिलाफ हूं । मैं इस योजना के खिलाफ अपना विरोध दर्ज करा रही हूं और आपसे अनुरोध करती हूं कि कृपया इस निर्णय को आगे बढ़ाने से पहले वहां के सभी हितधारकों के साथ इस मुद्दे पर व्यापक परामर्श करें।
असल में देश खाद्य तेलों के मामले में बड़े पैमाने पर आयात पर निर्भर है और जरूरत का 60 फीसदी से ज्यादा खाद्य तेल आयात किया जाता है। इसलिए सरकार ने खाद्य तेलों तेल उत्पादन में बढ़ोतरी के लिए नई योजना लागू करने का फैसला लिया है। इसके लिए पॉम ऑयल रकबा बढ़ाने की योजना है। पूर्वोत्तर के कुछ राज्ये में ऑयल पॉम की खेती हो रही है। पॉम में तेल की मात्रा अन्य तिलहनों के मुकाबले काफी अधिक है। इस समय देश में आयात होने वाले खाद्य तेलों में पॉम ऑयल की हिस्सेदारी सबसे अधिक है। यह आयात इंडोनेशिया और मलयेशिया से होता है। इस आयात पर निर्भरता कम करने के लिए सरकार पॉम की खेती को बढ़ावा देने के लिए एनएमईओ-ओपी य़ोजना लाई है।