जलवायु संकट का सामना करने में नई तकनीक, तरीकों और समन्वय की जरूरत

केंद्रीय सहकारिता सचिव डॉ. आशीष कुमार भूटानी ने कहा कि ग्रामीण भारत में जलवायु परिवर्तन से निपटने की क्षमता विकसित करने में सहकारी समितियां अहम भूमिका निभा सकती हैं।

जलवायु संकट का सामना करने में नई तकनीक, तरीकों और समन्वय की जरूरत

कृषि और ग्रामीण क्षेत्रों में जलवायु संकट का सामना करने के लिए नई तकनीक, तौर-तरीके और सहकारी संस्थाएं मददगार साबित हो सकती हैं। केंद्र सरकार प्राथमिक सहकारी समितियों (पैक्स) का दायरा बढ़ाने के साथ-साथ सहकारी समितियों को नए सिरे से मजबूती देने का प्रयास कर रही है। उन्होंने जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए सहयोगी दृष्टिकोण का आह्वान किया।

अंग्रेजी अखबार द हिंदू बिजनेसलाइन के सालाना “एग्रीकल्चर एंड कमोडिटी समिट” को संबोधित करते हुए केंद्रीय सहकारिता सचिव डॉ. आशीष कुमार भूटानी ने कहा कि ग्रामीण भारत में जलवायु परिवर्तन से निपटने की क्षमता विकसित करने में सहकारी समितियां अहम भूमिका निभा सकती हैं। गांवों के स्तर पर सहकारी समितियों को रिवाइव करने और उन्हें मजबूती देने के लिए कई कदम उठाए जा रहे हैं। जिससे सहकारी समितियों की भूमिका का विस्तार क्रेडिट व इनपुट आपूर्ति के इतर अन्य क्षेत्रों में भी किया जा सके। डॉ. भूटानी ने बताया कि देश भर में 70 हजार ग्रेन स्टोरेज प्वाइंट बनाए जाएंगे, जिनके संचालन में पैक्स महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं। अनाज भंडारण के अलावा ये प्वाइंट परिवहन लागत को कम करेंगे और खरीद केंद्र के रूप में भी कार्य करेंगे। केंद्र सरकार ने देश भर में 2 लाख बहुउद्देशीय पैक्स बनाने का लक्ष्य रखा है जो कॉमन सर्विस सेंटर की तरह काम करेंगे।

केंद्रीय कृषि सचिव देवेश चतुर्वेदी ने कहा कि सरकार कार्बन मार्केट इन्सेन्टिव के जरिए किसानों को जलवायु-स्मार्ट तरीकों को अपनाने के लिए प्रोत्साहित करेगी। ताकि जलवायु संकट के मद्देनजर खाद्य सुरक्षा और किसानों की आजीविका को सुनिश्चित किया जा सके। किसानों को प्राकृतिक खेती की ओर बढ़ावा देने के लिए प्राकृतिक खेती मिशन शुरू किया गया है। उन्होंने आईसीएसआर द्वार विकसित जलवायु अनुकूल किस्मों के किसानों के बीच तेजी से प्रसार के लिए शोध संस्थानों, राज्य सरकारों और केंद्र सरकार के बीच सहयोग बढ़ाने पर जोर दिया। साथ ही भूजल पर निर्भरता कम करने, टिकाऊ सिंचाई पद्धतियों को बढ़ावा देने, वर्षा जल संचयन और सौर पंपों के उपयोग को अपनाने का आह्वान किया।

आईएमडी के वैज्ञानिक डीएस पई ने कहा कि 1901-2024 तक के तापमान के विश्लेषण से पता चलता है कि अधिकतम और न्यूनतम तापमान दोनों में उल्लेखनीय रुझान दिख रहा है। अब, अधिकतम और न्यूनतम तापमान दोनों में उल्लेखनीय वृद्धि देखी गई है। पई ने कहा कि इन सभी पहलुओं का कृषि पर महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ा है।

राष्ट्रीय कृषि और ग्रामीण विकास बैंक (नाबार्ड) के अध्यक्ष के वी शाजी ने कहा है कि वह भारत के कृषि क्षेत्र में जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए बहुआयामी दृष्टिकोण अपना रहा है। डेटा-आधारित समाधानों, कृषि कोष और कार्बन फंड जैसे नए वित्तीय तंत्रों तथा बहुपक्षीय एजेंसियों व राज्य सरकारों के साथ साझेदारी के माध्यम से नाबार्ड का लक्ष्य कृषि क्षेत्र की क्षमता बढ़ाने और टिकाऊ बनाना है।

बिजनेसलाइन के संपादक रघुवीर श्रीनिवासन ने कहा कि वर्ष 2024 अब तक का सबसे गर्म वर्ष रहा है। तापमान दीर्घकालिक औसत से 1.5 डिग्री सेल्सियस अधिक था। जबकि वायुमंडल में कार्बन डाइऑक्साइड और मीथेन की मात्रा सर्वकालिक उच्च स्तर पर पहुंच गई। यह कृषि से जुड़ी सभी हितधारकों के लिए बड़ी चुनौतियां हैं। अब हमारे सामने जलवायु-अनुकूल फसलें विकसित करने की चुनौती है।

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