राइसटेक और म्हाइको का डीएसआर धान और जीरो टिलेज गेहूं के लिए ज्वाइंट वेंचर 'पर्यान'
गेहूं और चावल की क्लाइमेट स्मार्ट, टिकाऊ व हर्बिसाइड टॉलरेंट किस्में विकसित कर बाजार में उतारने के लिए अमेरिकी कंपनी राइसटेक और भारतीय कंपनी म्हाइको प्राइवेट लिमिटेड ने एक ज्वाइंट वेंचर (जेवी) 'पर्यान' स्थापित किया है। बराबर की हिस्सेदारी वाले इस ज्वाइंट वेंचर में चावल की किस्मों को बेचने का जिम्मा राइसटेक की सब्सिडियरी सवाना सीड्स प्राइवेट लिमिटेड का होगा जबकि गेहूं का बीज म्हाइको बाजार में उतारेगी। चावल की किस्मों को डायरेक्ट सीडेड राइस (डीएसआर) बुवाई प्रक्रिया यानी खेत में धान की सीधे बुआई के लिए विकसित किया गया है वहीं गेहूं की किस्म को जीरो टिलेज तकनीक के जरिये बुवाई के लिए विकसित किया गया
गेहूं और चावल की क्लाइमेट स्मार्ट, टिकाऊ व हर्बिसाइड टॉलरेंट किस्में विकसित कर बाजार में उतारने के लिए अमेरिकी कंपनी राइसटेक और भारतीय कंपनी म्हाइको प्राइवेट लिमिटेड ने पर्यान नाम से एक ज्वाइंट वेंचर (जेवी) स्थापित किया है। बराबर की हिस्सेदारी वाले इस ज्वाइंट वेंचर में चावल की किस्मों को बेचने का जिम्मा राइसटेक की सब्सिडियरी सवाना सीड्स प्राइवेट लिमिटेड का होगा जबकि गेहूं का बीज म्हाइको बाजार में उतारेगी। चावल की किस्मों को डायरेक्ट सीडेड राइस (डीएसआर) बुवाई प्रक्रिया यानी खेत में धान की सीधी बुवाई के लिए विकसित किया गया है वहीं गेहूं की किस्म को जीरो टिलेज तकनीक के जरिये बुवाई के लिए विकसित किया गया।
राइसटेक की साउथ एशिया सब्सिडियरी सवाना सीड्स प्राइवेट लिमिटेड के मैनेजिंग डायरेक्टर अजय राणा ने रूरल वॉयस को बताया कि नये बीजों के लिए अपनाई जाने वाली टेक्नोलॉजी से किसानों को खेत तैयार करने से लेकर मजदूरी की लागत में बचत होगी। वहीं यह किस्में जलवायु अनुकूल हैं। साथ ही इसके जरिये धान की कटाई के बाद गेहूं बोने के लिए पराली जलाने की नौबत भी नही आएगी। इसीलिए संयुक्त उद्यम के लिए 'पर्यान' नाम पर्यावरण से लिया गया है। पर्यान एलाएंस लिमिटेड में दोनों कंपनियों की 50 फीसदी हिस्सेदारी है। डीएसआर (सीधी बुवाई) के लिए राइसटेक की प्रोप्रराइटरी टेक्नोलॉजी फुलपेज और जीरो टिलेज के लिए म्हाइको द्वारा अमेरिकी कंपनी जीनशिफ्टर्स के साथ मिलकर तैयार की गई फ्रीहिट क्रॉपिंग सॉल्यूशन का उपयोग किया जाएगा।
अजय राणा ने बताया कि ये दोनों टेक्नोलॉजी एक दूसरे की पूरक हैं जो गेहूं और धान के फसल चक्र वाले राज्यों में बड़ा बदलाव लाने मे सक्षम है। पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश और बिहार में धान की कटाई के बाद करीब 120 लाख हेक्टेयर में गेहूं की फसल बोई जाती है। पर्यान द्वारा इन राज्यों के किसानों को फुलपेज और फ्रीहिट तकनीक मुहैया कराने के साथ ही हमारी टीम किसानों को इसके उपयोग के लिए तैयार करेगी। पर्यान का मकसद देश में गेहूं और चावल का उत्पादन बढ़ाने के साथ ही किसानों की लागत कम करने, पानी और डीजल की खपत घटाने तथा ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन को कम करना है।
सवाना सीड्स की धान की हाइब्रिड किस्म सवा134 और सवा127 खरपतवार को नियंत्रित करने वाले इमेजीथाइपर खरपतवारनाशक के स्प्रे के लिए उपयुक्त है। उसके लिए एक म्यूटेट जीन का उपयोग करने के लिए डीएनए सिक्वेंस में बदलाव किया गया है। इसी तरह म्हाइको की गेहूं की गोल और मुकुट किस्म को इमेजीथाइपर के स्प्रे के लिए तैयार किया गया है। डीएसआर के जरिये धान की इन किस्मों और जीरो टिलेज के जरिये गेहूं की इन किस्मों की बुवाई के 25 बाद इमेजीथाइपर के स्प्रे के जरिये खरपतवार को नष्ट किया जा सकता है लेकिन धान और गेहूं की फसल पूरी तरह संरक्षित रहेगी।
अजय राणा का कहना है कि हमारी किस्मों के लिए केवल एक स्प्रे काफी है। हमने हर्बिसाइड टॉलरेंट ट्रेट के लिए म्यूटेशन ब्रीडिंग का उपयोग किया गया है और इसमें जीएम फसलों की तरह फॉरेन जीन का उपयोग नहीं किया गया है। धान की पारंपरिक खेती प्रक्रिया में पानी और मजदूरों की बहुत अधिक जरूरत है। पहले खेत को तैयार करने के लिए पानी भरने के बाद इसकी मिट्टी को नरम बनना पड़ता है ताकि धान की रोपाई हो सके। उसके बाद कई सप्ताह तक खेत में पानी खड़ा रखना पड़ता है ताकि इसमें खरपतवार पैदा न हो सकें।
राणा कहते हैं कि डीएसआर के जरिये 30 फीसदी पानी की बचत होगी। वहीं खेत को तैयार करने के लिए उसकी जुताई करने पर जो लागत आती है उसकी बचत होती है। राइसटेक की फुलपेज टेक्नोलॉजी में बीज हर्बिसाइट टॉलरेंट होने के साथ ही यह बीज जरूरी न्यूट्रिएंट से ट्रीटेड होता है ताकि इसका जर्मिनेशन बेहतर हो। बीज ट्रीटमेंट के लिए हमने स्क्वाड सॉल्यूशन तैयार किया है जो जरूरी माइक्रोन्यूट्रिएंट देने के साथ ही बीज को बीमारियों से भी सुरक्षित करता है। इसलिए हमारा बीज डीएसआर के लिए पूरी तरह उपयुक्त है। इसमें दूसरे बीजों के डीएसआर के जरिये बुवाई में आने वाली जर्मिनेशन की सामान्य रूप से आने वाले समस्याएं नहीं आती हैं।
पिछले साल पंजाब और हरियाणा में किसानों के 4000 एकड़ खेतों में सवाना सीड्स की इस हाइब्रिड धान किस्म की बुआई की थी। वहीं पश्चिमी उत्तर प्रदेश में 1000 एकड़ और मध्य प्रदेश व छत्तीसगढ़ में इस किस्म की 3000 एकड़ में बुवाई की गई थी।
म्हाइको के मैनेजिंग डायरेक्टर शिरीश बरवाले ने रूरल वॉयस को बताया कि धान की कटाई के बाद पराली जलाने की समस्या गेहूं की बुवाई के लिए जल्दी खेत तैयार करने के चलते पैदा होती है। साथ ही खेत तैयार करने के लिए जुताई में समय और डीजल काफी अधिक लगता है। लेकिन फ्रीहिट टेक्नोलॉजी में इन दोनों की बचत होती है। इसके तहत गेहूं की जीरो टिलेज बुवाई की जा सकती है क्योंकि इमेजिथाइपर और मेट्रीबुजीन हर्बिसाइड उपयोग से खरपतवार की समस्या से निपटा जा सकता है।
जीरो टिलेज प्रक्रिया में किसान रोटावेटर का उपयोग कर पराली को मिट्टी में मिलाने के बाद सामान्य सीड-कम फर्टिलाइजर ड्रिल मशीन का उपयोग कर गेहूं की बुवाई कर सकते हैं। बुवाई के 25 दिन बाद हर्बिसाइड का उपयोग किया जाता है। आगामी रबी सीजन में गेहूं के लिए फ्रीहिट जेडटी के उपयोग के लिए म्हाइको ने सरकारी नियामक की मंजूरी के लिए आवेदन किया है। उम्मीद है कि इस सीजन में यह तकनीक किसानों के उपयोग में लाई जा सकेगी। बरवाले कहते हैं कि 'पर्यान' गेहूं और धान में इमेजीथाइपर टॉलरेंट ट्रेट की लाइसेंसिंग दूसरी कंपनियों की भी देने के लिए तैयार है जिसे वह अपनी हाइब्रिड किस्मों में उपयोग कर सकते हैं।