लक्ष्मी और सरस्वती ने कृषि में छोड़ी छाप, महिला किसानों की बनीं मददगार
मध्य प्रदेश के बैतुल जिले की निवासी लक्ष्मी बाई चिरायु महिला फसल उत्पादक कंपनी की सदस्य होने के साथ-साथ किसान समूह की प्रतिनिधि भी हैं। वह एक प्रमुख किसान भी हैं जो साथी महिलाओं को प्रदर्शन और प्रशिक्षण के माध्यम से बेहतर उत्पादन पद्धतियां अपनाने में मदद करती हैं। वहीं सरस्वती बाई संपूर्ण महिला किसान उत्पादक कंपनी लिमिटेड की अध्यक्ष हैं। यह एफपीसी (किसान उत्पादक कंपनी) बैतूल जिले के शाहपुर ब्लॉक के दूरदराज के 40 गांवों में काम करती है।
लक्ष्मी और सरस्वती नाम की दो महिला किसान अपने-अपने नाम पर पूरी तरह से खरी उतरी हैं। लक्ष्मी को धन की देवी माना जाता है तो सरस्वती को विद्या की देवी। लक्ष्मी ने वास्तव में महिला किसानों को समृद्ध बनाया है तो सरस्वती ने उन्हें बेहतर पैदावार कैसे करें, इसका पाठ पढ़ाया है। ये दोनों महिला किसान सामाजिक-आर्थिक परिवर्तन के सक्रिय एजेंट के रूप में सुर्खियों में आई हैं। उनकी सफलता की कहानी 'अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस' के मौके पर काफी महत्वपूर्ण हो गई है।
मध्य प्रदेश के बैतुल जिले की निवासी लक्ष्मी बाई चिरायु महिला फसल उत्पादक कंपनी की सदस्य होने के साथ-साथ किसान समूह की प्रतिनिधि भी हैं। वह एक प्रमुख किसान भी हैं जो साथी महिलाओं को प्रदर्शन और प्रशिक्षण के माध्यम से बेहतर उत्पादन पद्धतियां अपनाने में मदद करती हैं। वहीं सरस्वती बाई संपूर्ण महिला किसान उत्पादक कंपनी लिमिटेड की अध्यक्ष हैं। यह एफपीसी (किसान उत्पादक कंपनी) बैतूल जिले के शाहपुर ब्लॉक के दूरदराज के 40 गांवों में काम करती है। यह विशेष रूप से मक्का के बेहतर उत्पादन तकनीक अपनाने के लिए 1,500 से अधिक महिला किसानों को अपनी सेवा दे रही है। पिछले वित्त वर्ष में यह एफपीसी न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) पर आधारित गेहूं खरीद में भी शामिल थी। इसके कारोबार का विस्तार करने, कटाई के बाद फसल का भंडारण करने के लिए बुनियादी ढांचा तैयार करने और एफपीसी पदाधिकारियों के साथ बोर्ड ऑफ डायरेक्टर्स की क्षमत विकसित करने में कॉर्टिवा एग्रीसाइंस सीएसआर प्रोजेक्ट मदद कर रही है। वैश्विक कृषि कंपनी कॉर्टिवा एग्रीसाइंस ने एक बयान में बताया है कि ये दोनों महिलाएं कृषि गतिविधियों का अभिन्न हिस्सा हैं और स्थायी कृषि सुनिश्चित करने में उनकी भूमिका अनिवार्य है।
एकीकृत प्रबंधन और रोजाना की घरेलू जरूरतों को पूरा करने के लिए विविध प्राकृतिक संसाधनों के इस्तेमाल की जिम्मेदारी ग्रामीण महिलाओं की है। खाद्य सुरक्षा का आधार होने के बावजूद खेती करने के लिए महिलाओं को सीमित प्रशिक्षण, अपर्याप्त तकनीकी ज्ञान और फाइनेंस के क्षेत्र में चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। इस कारण पुरुष किसानों की तुलना में उनकी कृषि उत्पादकता दर कम है। लक्ष्मी बाई और सरस्वती बाई ने कृषि में महिलाओं के अवसरों को बढ़ाने के लिए वित्तीय साक्षरता, कृषि विज्ञान प्रशिक्षण और पारिवारिक पोषण प्रदान करके ग्रामीण महिलाओं के सामने आने वाली चुनौतियों का समग्र रूप से समाधान किया है। उन्होंने बेहतर उत्पादन तरीकों को अपनाने के लिए अन्य महिला किसानों का नेतृत्व किया और उनकी मदद की है ताकि ज्यादा पैदावार और समग्र वित्तीय स्थिरता सुनिश्चित की जा सके।
लक्ष्मी बाई ने रूरल वॉयस से बातचीत में कहा, "हमने दिल से एक कारोबार खड़ा किया है। ज्यादातर खुदरा विक्रेता मुनाफा कमाने पर ध्यान देते हैं। हम किसानों को खेती के लिए आवश्यक चीजें उधार देकर मदद करने का प्रयास करते हैं। किसान अपनी उपज बेचने के बाद राशि वापस कर देते हैं। इसके अलावा, चिरायु में हम किसी एक बीमारी के लिए फसल में सभी तरह के अनावश्यक केमिकल नहीं देते बल्कि जरूरत के हिसाब से देते हैं। चिरायु की शुरुआत आसान नहीं थी। हमने एक जमीन किराये पर ली जिसमें बैठक करने के लिए भी पर्याप्त जगह नहीं थी। मगर कॉर्टिवा एग्री साइंस की फंडिंग की मदद से हमने अपने समुदाय के लिए जगह बनाई। कॉर्टिवा ने हमारे क्षेत्र में बीज को बदलने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। पहले हम देसी बीजों का इस्तेमाल करते थे जिससे हमें एक एकड़ में 2 क्विंटल उपज मिलती थी। लेकिन अब कॉर्टिवा के उन्नत बीजों से हमें प्रति एकड़ 18-20 क्विंटल उपज मिलने लगी है। हालाकि, यह आसान बदलाव नहीं था। इलाके के किसान उन्नत बीज अपनाने के लिए तैयार नहीं थे लेकिन उपयुक्त प्रशिक्षण और मेरी फसल की पैदावार को देखने के बाद वे इसके लिए राजी हो गए।"
रूरल वॉयस को सरस्वती बाई ने बताया, "हमारे समुदाय के खुदरा विक्रेता मुनाफा कमाने की एवज में हमारी खेती को समर्थन देते हैं। हर बार जब कोई किसान खेती संबंधी कुछ खरीदने या बेचने के लिए उनकी दुकान पर जाता है तो उनका अंतिम लक्ष्य हमें लूटना और हमें कर्ज के अंतहीन चक्र में डाल देना होता है। हालांकि, उन्नत कृषि प्रशिक्षण के माध्यम से हमने महसूस किया कि हमारे साथी किसानों की आय बढ़ाने में पहला कदम उन दुकानों को खोलना है जहां व्यवसाय के साथ-साथ किसान की भलाई और ज्ञान साझा करने को प्राथमिकता दी जाती है। हमने अपने क्षेत्र में “संपूर्ण” की मदद से परिवर्तन किए हैं। जमीन का एक छोटा सा टुकड़ा किराये पर लेकर “संपूर्ण” की शुरुआत हुई और सामूहिक रूप से किसानों की सभी जरूरतों की व्यवस्था की गई।
इस बीच, एफएमसी इंडिया भारतीय महिलाओं के बीच कृषि में क्षमता निर्माण के लिए एक कार्यक्रम पर भी काम कर रहा है ताकि उन्हें सशक्त बनाया जा सके और राष्ट्र निर्माण में उनकी भागीदारी का कुशलता से इस्तेमाल किया जा सके। एफएमसी की यह पहल लैंगिक समानता को बढ़ावा देने के संयुक्त राष्ट्र के सतत विकास लक्ष्य के मुताबिक है। एफएमसी इंडिया का कहना है कि वर्तमान में एफएमसी वैश्विक कार्यबल में महिलाओं की हिस्सेदारी 30 फीसदी से अधिक है। 2021 में एफएमसी ने घोषणा की थी कि उसने 2027 तक सभी क्षेत्रों और नौकरियों के स्तरों पर 50-50 फीसदी लिंग अनुपात हासिल करने का लक्ष्य रखा है। 2020 के बाद एफएमसी ने महिलाओं की नियुक्ति को बढ़ाकर दोगुना कर दिया है।
एफएमसी के साइंस लीडर्स स्कॉलरशिप प्रोग्राम के तहत हर साल 20 छात्रवृत्तियां दी जाएंगी। इनमें से 10 पीएचडी करने वाले छात्रों को और 10 कृषि विज्ञान में एमएससी की पढ़ाई करने वाले छात्रों को दी जाएंगी। प्रतिभाशाली छात्रों की पहचान करने और विज्ञान व अनुसंधान में उनकी गहरी रुचि और जुनून को विकसित करने के लिए एफएमसी ने विश्वविद्यालयों के साथ सीधे मिलकर काम करने की योजना बनाई है। इस कार्यक्रम की शुरुआत जी.बी. पंत कृषि और प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, पंजाब कृषि विश्वविद्यालय, तमिलनाडु कृषि विश्वविद्यालय, प्रोफेसर जयशंकर तेलंगाना राज्य कृषि विश्वविद्यालय और कुछ अन्य के साथ की गई है। कृषि विज्ञान और अनुसंधान में करियर बनाने के लिए और अधिक महिलाओं को प्रोत्साहित करने की योजना के तहत भारतीय महिला उम्मीदवारों के लिए 50 फीसदी छात्रवृत्ति निर्धारित की गई है। यह पुरुषों और महिलाओं दोनों के लिए समान अवसर प्रदान करने और एक विविध व समावेशी कार्यबल बनाने की एफएमसी की महत्वाकांक्षा के मुताबिक है। एसटीईएम (विज्ञान, प्रौद्योगिकी, इंजीनियरिंग या गणित) में अधिक से अधिक महिला भागीदारी सुनिश्चित करने में यह एक प्रेरक शक्ति के रूप में भी काम करेगा।
प्रोजेक्ट मधुशक्ति एफएमसी इंडिया का एक प्रमुख कार्यक्रम है जिसे मधुमक्खी पालन के जरिये ग्रामीण महिलाओं के बीच उद्यमिता विकसित करने के लिए डिज़ाइन किया गया है। यह उनके परिवारों के लिए अतिरिक्त स्थायी आय और उनके जीवन स्तर को बढ़ाने का साधन है। फिलहाल यह प्रोजेक्ट जीबी पंत कृषि और प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय के सहयोग से चल रहा है। यह परियोजना पिछले साल अप्रैल में शुरू हुई थी। इसके तहत अब तक 75 महिला किसानों को सफलतापूर्वक प्रशिक्षित किया गया है। इस परियोजना को उत्तराखंड के हिमालय पर्वत श्रृंखला की तलहटी में स्थित ग्रामीण इलाकों में, जहां शहद उत्पादन के लिए उपयोगी प्राकृतिक जड़ी-बूटियों और वनस्पतियों का प्रचुर स्रोत है, तीन वर्षों में कार्यान्वित करने के लिए डिजाइन किया गया है। उत्तराखंड की लगभग 53 फीसदी आबादी पहाड़ी क्षेत्रों में रहती है। इनमें से 60 फीसदी गरीबी रेखा से नीचे हैं। मधुशक्ति परियोजना के तहत सितारगंज, कोटबाग, अल्मोड़ा और रानीखेत में ग्रामीण महिलाओं का चयन किया जाता है और उन्हें मधुमक्खी पालन का प्रशिक्षण दिया जाता है। किसानों से शहद की खरीद विश्वविद्यालय के हनीबी रिसर्च एवं ट्रेनिंग सेंटर (HBRTC) के जरिये एक रिवॉल्विंग फंड के माध्यम किया जाता है। इसी फंड से किसानों को और बाजार से खरीदे जाने वाले उत्पादों का भुगतान किया जाता है।
इस परियोजना में मधुमक्खियों के व्यवहार की बारीकी से निगरानी भी की जा रही है ताकि उसका अध्ययन किया जा सके जिससे देश भर के मधुमक्खी पालकों को लाभ होगा। इससे किसानों को मधुमक्खियों जैसे परागणकों की सुरक्षा करते हुए गहन कृषि करने में मदद मिलेगी। मधुशक्ति की सफलता का मकसद देश में अधिक से अधिक महिला किसानों को मधुमक्खी पालन के व्यवसाय को अपनाने के लिए प्रेरित करना है। उत्तराखंड में फिलहाल 12,500 मीट्रिक टन शहद का उत्पादन होता है। मधुशक्ति जैसी परियोजनाओं से यह आंकड़ा काफी बढ़ने की उम्मीद है।