खरीफ में प्याज का उत्पादन 13% घटकर 95 लाख टन रहने के आसारः क्रिसिल
क्रिसिल का कहना है कि 2022-23 में भी पहले की तरह फसलों को नुकसान होने के आसार हैं। खरीफ की प्याज की फसल उपजाने वाले लगभग सभी राज्यों में कहीं कम तो कहीं अधिक बारिश देखने को मिली है। खासकर महाराष्ट्र, कर्नाटक और आंध्र प्रदेश में जो खरीफ प्याज उत्पादन में 60% योगदान करते हैं
खरीफ सीजन 2022-23 में प्याज का उत्पादन 13 प्रतिशत घटकर 95 लाख टन रहने की उम्मीद है। इसके दो प्रमुख कारण हैं- एक तो प्याज की खेती कम रकबे में हुई और दूसरा, उत्पादकता में भी कोई खास सुधार नहीं हुआ है। रेटिंग एजेंसी क्रिसिल ने अपनी नई रिपोर्ट में यह बात बताई है।
2021-22 के खरीफ सीजन में कुल प्याज उत्पादन 108 लाख टन रहा था। खरीफ सीजन में उत्पादन कम रहने के बावजूद दाम में कोई खास वृद्धि होने की उम्मीद नहीं है, क्योंकि अभी रबी की प्याज की फसल का काफी स्टॉक है। 2021-22 के रबी सीजन में प्याज का बंपर उत्पादन हुआ था। कुल उत्पादन 17% बढ़कर 200 लाख टन तक पहुंच गया था। देश में हर महीने लगभग 13 लाख टन प्याज की खपत होती है।
प्याज की ज्यादातर सप्लाई 4 राज्यों से आती है- महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, कर्नाटक और गुजरात। 2021-22 में महाराष्ट्र में 133 लाख टन मध्य प्रदेश में 47 लाख टन, कर्नाटक में 27 लाख टन और गुजरात में 25 लाख टन प्याज का उत्पादन हुआ था। देश के कुल उत्पादन में इन चारों राज्यों का हिस्सा लगभग 75% था।
क्रिसिल की रिपोर्ट के अनुसार मौसम में हुए उतार-चढ़ाव ने फसलों की उत्पादकता को प्रभावित किया है। इसके अलावा बेमौसम की बारिश ने भी खरीफ की प्याज की फसल को बीते 3 वर्षों के दौरान नुकसान पहुंचाया है। इसकी वजह से उत्पादन कम हुआ और कीमतों में वृद्धि हुई।
क्रिसिल का कहना है कि 2022-23 में भी पहले की तरह फसलों को नुकसान होने के आसार हैं। खरीफ की प्याज की फसल उपजाने वाले लगभग सभी राज्यों में कहीं कम तो कहीं अधिक बारिश देखने को मिली है। खासकर महाराष्ट्र, कर्नाटक और आंध्र प्रदेश में जो खरीफ प्याज उत्पादन में 60% योगदान करते हैं।
महाराष्ट्र और कर्नाटक में जून में बारिश कम हुई लेकिन जुलाई और अगस्त में बहुत अधिक बारिश हो गई, जिससे फसल की बुवाई प्रभावित हुई। महाराष्ट्र में जुलाई में प्याज की नर्सरी को नुकसान पहुंचा तो कर्नाटक के किसान जून में कम बारिश होने की वजह से बुवाई नहीं कर पाए। इसका नतीजा यह हुआ कि महाराष्ट्र के किसान मक्के जैसी फसल की तरफ चले गए और कर्नाटक के कम बारिश वाले इलाकों में किसानों ने कपास और ऊंचाई वाले इलाकों में गन्ने की फसल को अपनाया।
आंध्र प्रदेश में भी अधिक बारिश से खेतों में पानी भर गया जिससे पौधों का ट्रांसप्लांटेशन मुश्किल हो गया। इसलिए क्रिसिल का अनुमान है कि इस बार पैदावार में सुधार नहीं होगा और यह 2021-22 के सीजन के आस पास ही रहेगा।
रिपोर्ट में बताया गया है कि इस सीजन में प्याज के रकबे में भी कमी आई है। पिछले साल 6.7 लाख हेक्टेयर में प्याज की बुवाई हुई थी जबकि इस साल यह रकबा 5.8 लाख हेक्टेयर रहने के आसार हैं। इस तरह पिछले साल के मुकाबले रकबा 13% कम हुआ है। इसका एक कारण यह भी है कि 2021-22 की रबी की फसल के दाम काफी गिर गए थे।
मई 2022 में रबी की प्याज की फसल के दाम 27% कम होकर 8 रुपये प्रति किलो रह गए थे। रकबे में गिरावट और उत्पादकता में सुधार ने होने के कारण 2022-23 के खरीफ सीजन में प्याज का कुल उत्पादन पिछले साल की तुलना में 13% कम रहने की आशंका है।
रिपोर्ट में कहा गया है कि रबी की प्याज का पूरा स्टॉक सितंबर तक खत्म हो जाता है और उसके बाद खरीफ की फसल बाजार में आती है। लेकिन इस बार मध्य प्रदेश में रबी की 20% उपज, महाराष्ट्र में 25% और राजस्थान में 15% अभी उपलब्ध है। खरीफ की फसल की बाजार में आवक शुरू होने के बाद भी रबी का स्टॉक बना रह सकता है।
(लेखक नई दिल्ली में वरिष्ठ पत्रकार और पब्लिक पॉलिसी विश्लेषक हैं)