कृषि में कोऑपरेटिव को बढ़ावा देना जरूरी, कलेक्टिव खेती से होगा फायदा
कृषि क्षेत्र की वृद्धि दर को तेज करने और किसानों की आर्थिक उन्नति के लिए कोऑपरेटिव को बढ़ावा देना जरूरी हो गया है। कलेक्टिव खेती के जरिये इस लक्ष्य को हासिल किया जा सकता है। रूरल वॉयस एग्रीकल्चर कॉन्क्लेव एवं नेकॉफ अवार्ड्स 2023 कार्यक्रम में शामिल पैनलिस्टों ने अपने विचार रखते हुए यह बात कही।
कृषि क्षेत्र की वृद्धि दर को तेज करने और किसानों की आर्थिक उन्नति के लिए कोऑपरेटिव को बढ़ावा देना जरूरी हो गया है। कलेक्टिव खेती के जरिये इस लक्ष्य को हासिल किया जा सकता है। रूरल वॉयस एग्रीकल्चर कॉन्क्लेव एवं नेकॉफ अवार्ड्स 2023 कार्यक्रम में शामिल पैनलिस्टों ने अपने विचार रखते हुए यह बात कही।
कार्यक्रम के दूसरे सत्र जिसका विषय “फार्मर्स कलेक्टिव एंड न्यू राइजिंग सेक्टर्स इन एग्रीकल्चर” था, में कृभको के चेयरमैन डॉ. चंद्रपाल सिंह यादव ने कहा, "आज खेती के प्रति नौजवानों में आकर्षण नहीं है। आज किसान का बेटा चपरासी बनना तो पसंद करता है लेकिन वह खेती नहीं करना चाहता। खेती के प्रति के आकर्षण तभी बढ़ेगा जब इसमें फायदा दिखेगा। हम किसी भी व्यवसाय में देखें तो व्यवसायी पूरे साल की बैलेंस शीट बनाता है, लेकिन अगर किसान अपनी बैलेंस शीट बनाए तो हमेशा घाटे की बैलेंस शीट बनेगी।"
उन्होंने सुझाव दिया कि किसान अगर कलेक्टिव खेती करे तो उससे फायदा हो सकता है। सरकार ने इस दिशा में एफपीओ बनाकर कदम उठाए हैं। इससे किसानों को फायदा हो रहा है। उन्होंने कहा कि कृषि को संगठित रूप देने के लिए कोऑपरेटिव बड़ी भूमिका निभा सकता है। आज किसानों को अच्छे बीज, फर्टिलाइजर, कीटनाशक तथा अन्य अनेक चीजों की आवश्यकता है। कोऑपरेटिव से खरीदने पर किसान को क्वालिटी या कीमत की चिंता नहीं करनी पड़ती है। कोऑपरेटिव के माध्यम से कर्ज भी दिया जा रहा है। उपज को एमएसपी पर सबसे ज्यादा कोऑपरेटिव के माध्यम से ही खरीदा जा रहा है।
उन्होंने कहा कि युवा कोऑपरेटिव से जुड़कर नई तकनीक से खेती करें। कृषि में वैल्यू एडिशन से युवा खुद को रोजगार देने के साथ दूसरों को भी रोजगार दे सकेंगे। इसके लिए हमें कोऑपरेटिव का इंफ्रास्ट्रक्चर बनाने में मदद करनी चाहिए। देश में 8 लाख कोऑपरेटिव सोसाइटी हैं जिनसे लाखों किसान जुड़े हुए हैं। सहकारिता मंत्रालय के गठन से इसे प्राथमिकता मिली है। हर पंचायत में कोऑपरेटिव सोसाइटी बनाने का फैसला किया गया है। नौजवान उनके साथ आगे बढ़ सकते हैं। कोऑपरेटिव सोसाइटी में 40 प्रकार के काम होंगे। यह युवाओं के लिए भी सुनहरा अवसर है। उन्होंने कहा कि अच्छे बीज उपलब्ध कराने के लिए राष्ट्रीय स्तर पर कोऑपरेटिव बनाया गया है। इसी तरह निर्यात के लिए भी अलग कोऑपरेटिव का गठन किया गया है। उम्मीद है कि आने वाले वर्षों में इसका कृषि क्षेत्र को बड़ा फायदा मिलेगा।
सत्र को संबोधित करते हुए नेशनल शुगर फेडरेशन एनएफसीएसएफ लि. के मैनेजिंग डायरेक्टर प्रकाश नायकनवरे ने कहा कि अगर किसी क्षेत्र में कोऑपरेटिव शुगर मिल लगता है, तो उस क्षेत्र के 20 हजार किसान इसके सदस्य होते हैं। ये किसान न सिर्फ उस मिल को अपना गन्ना बेचते हैं, बल्कि वे इसके मालिक भी होते हैं। चीनी सहित अन्य उत्पाद बनाने से मिल को जो मुनाफा होता है उसे इन किसानों में बांटा जाता है। इससे उन्हें दोहरी कमाई होती है। उन्होंने कहा कि आज शुगर मिलें न सिर्फ चीनी उत्पादन करती हैं, बल्कि एथेनॉल, सीएनजी, सीबीजी भी बनाती हैं जिससे उनकी कमाई में इजाफा हुआ है और इसका फायदा किसानों को भी मिल रहा है। इससे किसानों को गन्ने का भुगतान समय पर करने में आसानी हुई है।
नेशनल प्रोडक्टिवटी काउंसिल के पूर्व डायरेक्टर जनरल और राष्ट्रीय सहकारी विकास निगम (एनसीडीसी) के पूर्व मैनेजिंग डायरेक्टर संदीप नायक ने कहा कि जलवायु परिवर्तन आज कृषि एवं संबंधित क्षेत्र के लिए बड़ी चुनौती बनकर उभरा है। इस चुनौती से निपटने के लिए फार्मर्स कलेक्टिव को मजबूत बनाने की जरूरत है। यह उभरता हुआ क्षेत्र है और इसमें काफी अवसर हैं। चाहे एफपीओ हों, कोऑपरेटिव हो या फिर स्वयं सहायता समूह (एसएचजी) हों, इनके जरिये प्रोडक्टिविटी और एफिशिएंसी बढ़ाने की काफी गुंजाइश है। बढ़ती आबादी को देखते हुए प्रोडक्टिविटी बढ़ाना बड़ी चुनौती है जिसका समाधान कलेक्टिव फार्मिंग के जरिये किया जा सकता है।
सहकार भारती के राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ. डी.एन. ठाकुर ने कृषि और ग्रामीण क्षेत्र की भविष्य की समस्याओं पर चिंता जताते हुए कहा कि खाद्य सुरक्षा सबसे बड़ी चिंताओं में से एक है। उन्होंने सवाल उठाया कि आज भारत खाद्य सुरक्षा में आत्मनिर्भर है लेकिन क्या भविष्य में भी यह सुरक्षा बनी रहेगी। इसी तरह, विकास के लिए जरूरी ऊर्जा सुरक्षा क्या हमेशा मिलती रहेगी। उन्होंने कहा कि भविष्य के लिए पानी और बेरोजगारी की समस्या भी एक बड़ी चुनौती है। इन समस्याओं का समाधान सिर्फ सरकार नहीं कर सकती है, बल्कि सामूहिकता के जरिये इनका हल निकाला जा सकता है। उन्होंने कहा कि इसके लिए कोऑपरेटिव को समर्थन देने की जरूरत है। साथ ही, इतने बड़े देश में एक मॉडल नहीं, बल्कि अलग-अलग मॉडल अपनाने की जरूरत है। ऐसे मॉडल की जरूरत है जिसके जरिये किसानों को आसानी से लोन मिल सके, बैंक गारंटी मिल सके और हर गांव में कोऑपरेटिव के जरिये किसानों की उपज खरीदने की व्यवस्था हो सके।
दूसरे सत्र के अंत में एमसीएक्स के एग्रीकल्चर डिवीजन के हेड अभिषेक गोविलकर ने कहा कि कृषि क्षेत्र में ग्रोथ के लिए फार्मर्स कलेक्टिव जरूरी है। यह मार्केट में सकारात्मक भूमिका निभा सकता है। यह किसानों एवं कृषि क्षेत्र के लिए जरूरी है। इससे न सिर्फ बाजार में किसानों की मोलभाव की क्षमता बढ़ जाती है, बल्कि उन्हें उनकी उपज की अच्छी कीमत भी मिलती है। यह उत्पादन बढ़ाने के अलावा किसानों की आर्थिक उन्नति में भी मददगार है। साथ ही किसानों के कौशल विकास, उन्नत तकनीक के इस्तेमाल और मार्केट में उनके योगदान को भी इससे बढ़ावा मिलेगा।
पैनल चर्चा का संचालन सीनियर जर्नलिस्ट और समाचार एजेंसी पीटीआई के पूर्व एडिटर (ईस्ट) जयंता रायचौधुरी ने किया।